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सरकारी अधिकारियों की व्यक्तिगत पेशी अनिवार्य नहीं

कलकत्ता हाइकोर्ट के न्यायाधीश जयमाल्य बागची व न्यायाधीश गौरांत कांत की खंडपीठ ने एक मामले की सुनवाई करते हुए राज्य के सरकारी अधिकारियों को बड़ी राहत प्रदान की है.

संवाददाता, कोलकाता

कलकत्ता हाइकोर्ट के न्यायाधीश जयमाल्य बागची व न्यायाधीश गौरांत कांत की खंडपीठ ने एक मामले की सुनवाई करते हुए राज्य के सरकारी अधिकारियों को बड़ी राहत प्रदान की है. खंडपीठ ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि किसी भी मामले में, चाहे वह आपराधिक हो या दीवानी, अब तक सभी स्तरों पर संबंधित सरकारी अधिकारियों के लिए अदालत में उपस्थित होना और गवाही देना अनिवार्य था. लेकिन अब से किसी भी सरकारी अधिकारी के लिए अदालत में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना और साक्ष्य देना अनिवार्य नहीं है.

राज्य की सभी अदालतों में नौकरशाहों से लेकर पुलिस, डॉक्टर, फॉरेंसिक विशेषज्ञ तक सभी स्तर के सरकारी अधिकारी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से गवाही दे सकते हैं. हाइकोर्ट ने सभी अदालतों में वर्चुअल माध्यम से सुनवाई के लिए भी पर्याप्त व्यवस्था रखने का आदेश दिया है. वकीलों का मानना है कि इस फैसले से न्याय व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन आयेगा और मुकदमों का त्वरित निस्तारण संभव हो सकेगा. राज्य की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक रुद्रदीप्त नंदी ने दावा किया कि निचली अदालतों में एक नियम था, जहां सरकारी अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से गवाही देने की आवश्यकता होती थी, जिससे मुकदमे की प्रक्रिया में देरी होती थी.

इसलिए तकनीक की मदद से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये साक्ष्य लेने की प्रक्रिया जरूरी है. इस आवेदन के मद्देनजर खंडपीठ ने निर्देश में कहा, राज्य के सभी निचली अदालतों के न्यायाधीशों को अदालतों के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के नियमों और बीएनएसएस के अनुच्छेद 254 (2) को तुरंत लागू करना चाहिए.

ताकि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से साक्ष्य लेने की प्रक्रिया शुरू की जा सके.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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