भारत सरकार पेट्रोलियम आधारित बिटुमेन (Bitumen) में 35 प्रतिशत तक लिग्निन मिलाने की अनुमति देगी, जिसका एक बड़ा हिस्सा दूसरे देशों से आयात किया जाता है. ये जानकारी केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) ने बुधवार को दी.
Nitin Gadkari: 50 प्रतिशत बिटुमेन का आयात किया जाता है
नितिन गडकरी ने राज्यसभा में कहा, ‘हमारे पास दुनिया का सबसे बड़ा सड़क नेटवर्क है. 90 प्रतिशत सड़कें बिटुमिनस परतों का उपयोग कर रही हैं. 2023-24 में बिटुमेन की खपत 88 लाख टन थी. 2024-25 में इसके 100 लाख टन होने की उम्मीद है. 50 प्रतिशत बिटुमेन का आयात किया जाता है. और वार्षिक आयात लागत ₹25,000-30,000 करोड़ है.” मंत्री ने कहा कि किसान अब न केवल खाद्यान्न पैदा कर रहे हैं बल्कि वे ऊर्जा उत्पादक भी बन गए हैं. केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (सीआरआरआई) और भारतीय पेट्रोलियम संस्थान, देहरादून ने धान की पराली से बायो-बिटुमेन विकसित किया है.
बिटुमेन (Bitumen) क्या होता है?
बिटुमेन (Bitumen), पेट्रोलियम आधारित एक चिपचिपा और सघन हाइड्रोकार्बन है. यह प्राकृतिक रूप से तेल रेत और पिच झीलों में पाया जाता है या फिर कच्चे तेल को आसवन करके भी तैयार किया जा सकता है. बिटुमेन के डिस्टिलेशन (Distillation) के दौरान, गैसोलीन और डीज़ल जैसे हल्के तेल के घटक वाष्पित हो जाते हैं और केवल भारी बिटुमेन बचता है. बिटुमेन के ग्रेड को बेहतर बनाने के लिए, इसे कई बार रिफाइन भी किया जाता है.
Nitin Gadkari ने पराली जलाने पर चिंता व्यक्त की
राज्यसभा में केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने पराली जलाने को लेकर चिंता व्यक्त की, उन्होंने कहा, “एक टन पराली (धान की पराली) 30 प्रतिशत बायो-बिटुमेन, 350 किलोग्राम बायो-गैस और 350 किलोग्राम बायोचार दे रही है.” उन्होंने कहा कि 35 प्रतिशत तक बायो-बिटुमेन को बिटुमेन में बदलना सफल रहा है. मंत्री ने कहा कि इससे 10,000 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा की बचत होने की उम्मीद है और पेटेंट पहले ही जमा किया जा चुका है. उन्होंने बताया कि पेट्रोलियम आधारित बिटुमेन की कीमत 50 रुपये प्रति किलोग्राम है, जबकि बायोमास (चावल की पराली) से बायो-बिटुमेन की कीमत 40 रुपये प्रति किलोग्राम है.
Nitin Gadkari: भूसे से प्रतिदिन एक लाख लीटर इथेनॉल बनाने की परियोजना
गडकरी ने कहा कि इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के पास पानीपत में चावल के भूसे से प्रतिदिन एक लाख लीटर इथेनॉल बनाने की परियोजना है, इसके अलावा प्रतिदिन 150 टन बायो-बिटुमेन और प्रति वर्ष 88,000 टन बायो-एविएशन ईंधन भी बनाया जा रहा है. मंत्री ने कहा, “…अब हमारे पास 450 परियोजनाएं हैं, जहां हम पराली (चावल के भूसे) को बायो-सीएनजी में बदल रहे हैं और हमें लिग्निन मिल रहा है. अब मेरा विभाग एक अधिसूचना आदेश जारी करने जा रहा है, जिसके तहत हम इस लिग्निन का इस्तेमाल पेट्रोलियम बिटुमेन में 35 प्रतिशत तक कर सकते हैं.”
उन्होंने कहा कि बायो-बिटुमेन के संभावित लाभों में बिटुमेन आयात में कमी, ग्रीन हाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन में कमी और किसानों/एमएसएमई के लिए राजस्व उत्पन्न करने और रोजगार प्रदान करने का अवसर शामिल है.
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