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प्रधानमंत्री आवास योजना : 914 आवेदकों को पाया गया था योग्य, 800 मकान बनकर तैयार

आरएमसी ने अपने सोशल मीडिया पेज पर बताया है कि राउरकेला में कुल 914 आवेदकों को पीएम आवास के योग्य पाया गया था. इनके लिए कुल 800 घर बनकर तैयार हो चुके हैं.

राउरकेला. प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत गरीबों को आवास उपलब्ध कराने की महत्वाकांक्षी परियोजना को लेकर शहर में 800 मकान तैयार कर लिये गये हैं. यह जानकारी राउरकेला महानगर निगम (आरएमसी) की ओर से अपने आधिकारिक सोशल मीडिया पेज पर साझा की गयी है. इसमें बताया गया है कि कुल 914 लाभुकों का चयन किया गया था. जिनके लिए मकान तैयार होने थे. इनमें से 800 मकान तैयार कर लिए गये हैं. गौरतलब है कि इस योजना के तहत सबसे बड़ी कॉलोनी छेंड में तैयार हुई है. बिरसा मुंडा अंतरराष्ट्रीय हॉकी स्टेडियम जानेवाले मार्ग पर स्थित इस कॉलोनी में करीब पांच सौ मकान तैयार किये गये है. यहां पर काम लगभग पूरा हो चुका है और आवास आवंटन के लिए तैयार हो चुके हैं.

विश्वकप से पहले शुरू हुआ था निर्माण कार्य

स्मार्ट सिटी में हॉकी विश्वकप-2023 के आयोजन से पहले ही इस परियोजना पर काम शुरू किया गया था. छेंड आवासीय कॉलोनी के इस बेहद प्राइम लोकेशन पर जमीन की पहचान करने के बाद परियोजना पर काम शुरू हुआ था, जिसके बाद लगातार काम कर इसे अब पूरा कर लिया गया है. करीब 500 मकान इस कॉलोनी के अंदर बनाये गये हैं.

योजना में 2015 से शुरू हुआ था कार्य

राउरकेला शहरी क्षेत्रों में रहने वाले आर्थिक रूप से वंचित लोगों को आवास उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार के आवास और शहरी विकास विभाग की ओर से जून 2015 में प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी (पीएमएवाइ-यू) लागू की गयी थी. इसका उद्देश्य शहरी क्षेत्रों में रहने वाले गरीबों को अपनी जमीन पर घर बनाने के लिए दो लाख रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान करना था. अगर घर का निर्माण कार्य ऑर्डर मिलने के तीन महीने के अंदर पूरा हो जाता है, तो अतिरिक्त 20 हजार रुपये और अगर छह महीने के अंदर पूरा हो जाता है, तो अतिरिक्त 10 हजार रुपये देने का प्रावधान किया गया था.

1332 में से 418 आवेदन हुए खारिज, लाभुकों के पास जमीन नहीं होना मुख्य कारण

स्मार्ट सिटी राउरकेला में यह योजना लक्ष्य के मुकाबले फेल नजर आ रही है. दरअसल, हजारों लाभुकों के पास अपनी जमीन नहीं होने के कारण वे आवास से वंचित हैं. राउरकेला महानगरीय क्षेत्र में योजना के कार्यान्वयन के बाद कुल 1332 लाभार्थियों ने आवेदन जमा किये. हालांकि, जमीन का पट्टा नहीं होने और अन्य कारणों से 418 आवेदन खारिज कर दिये गये. कुल 914 लाभार्थियों को आवास पाने के लिए योग्य माना गया. लाभार्थियों ने 2018 में अपना घर बनाना शुरू कर दिया. इस बीच 840 (91.90%) मकान बन चुके हैं, जबकि अभी भी 74 (8.10%) मकान अधूरे हैं. करीब सात साल हो गये, लाभुकों ने निर्माण कार्य शुरू ही नहीं किया और जहां का तहां लटका पड़ा है. इस योजना में कम संख्या में लोगों को शामिल करने के पीछे जमीन की समस्या मुख्य कारण है. राउरकेला महानगर निगम के अंतर्गत सैकड़ों स्लम क्षेत्र हैं. यह बस्तियां ओडिशा सरकार, रेलवे और राउरकेला स्टील प्लांट की जमीन पर स्थित हैं. लोग दशकों से अलग-अलग बस्तियों में रह रहे हैं. लेकिन उन्हें जमीन का पट्टा नहीं मिल पाया है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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