World Tribal Day Special: कोल्हान आदिवासी बहुल प्रमंडल है और 9 अगस्त को हम विश्व आदिवासी दिवस मनायेंगे. लेकिन यहां के आदिवासियों के उत्थान की बात केवल कागजों में सिमट कर रह गयी है. इसका जीता जागता उदाहरण कोल्हान विश्वविद्यालय (केयू) है. इसकी स्थापना 13 अगस्त 2009 को रांची विश्वविद्यालय से अलग करके की गयी थी.
इससे पहले सरायकेला-खरसावां और पूर्वी व पश्चिमी सिंहभूम जिले के कॉलेजों का संचालन रांची विश्वविद्यालय के अधीन होता था. केयू के गठन को लेकर दलील दी गयी थी कि इसकी स्थापना होने से प्रमंडल के गरीब और आदिवासी छात्र-छात्राओं को कोल्हान में ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलेगी.
आदिवासी बहुल कोल्हान में विद्यार्थियों को जनजातीय और क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई के लिए टीआरएल ( ट्राइबल एंड रीजनल लैंग्वेज ) विभाग का गठन किया गया. इस विभाग में हो, कुड़माली और संताली विषय की स्नातकोत्तर की पढ़ाई होती है. लेकिन शिक्षकों की कमी है.
टीआरएल विभाग में शिक्षकों के कुल सात स्वीकृत पद हैं. इसमें हो विषय का अलग से एक पद स्वीकृत है, जबकि अन्य छह पद टीआरएल के नाम से है. लेकिन स्थिति यह है कि विभाग में करीब 2.5 साल से एक भी स्थायी शिक्षक नहीं है.
बगैर स्थायी शिक्षक के ही पूरे विभाग का संचालन हो रहा है. इसका खामियाजा विश्वविद्यालय के करीब 500 विद्यार्थियों को उठाना पड़ रहा है. इसे लेकर विभिन्न छात्र संगठनों द्वारा आंदोलन किया गया. मामला राजभवन तक पहुंचा, लेकिन आज तक स्थिति जस की तस है. सरकार भाषा, संस्कृति और परंपरा बचाने के लिए स्थानीय स्तर पर एजेंडा तैयार कर रही है. लेकिन बुनियादी स्तर पर किसी प्रकार की सुविधा नहीं दिये जाने से जनजातीय विद्यार्थियों को काफी नुकसान हो रहा है.
सीएम दे चुके हैं 159 पद की स्वीकृति
केयू अंतर्गत आने वाले अंगीभूत कॉलेजों और पीजी में संताली, हो, कुडुख, कुड़माली व मुंडारी भाषा के लिए शिक्षकों के पद सृजन संबंधी प्रशासी पदवर्ग समिति के लिए संलेख प्रस्ताव को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पूर्व में स्वीकृति दे दी है. संताली, हो, कुडुख, कुड़माली तथा मुंडारी भाषा में शिक्षकों के कुल 159 पद सृजन का प्रस्ताव है. इसमें सहायक अध्यापक के 147, सह प्राध्यापक के आठ और प्राध्यापक के चार पद शामिल हैं.
यूनिवर्सिटी में 80 हजार विद्यार्थी, लेकिन स्थायी कुलपति नहीं
केयू में कुलपति का पद मई 2023 से खाली है. डॉ गंगाधर पांडा के रिटायर होने के बाद से अब तक किसी की नियुक्ति नहीं हुई है. राजभवन की ओर से कुलपति का प्रभार कोल्हान आयुक्त को सौंपा गया है. एक साल से आयुक्त प्रभार में हैं. उन्हें सिर्फ वेतन, पेंशन व अन्य रुटीन कार्य की जिम्मेदारी दी गयी है. नीतिगत फैसले लेने का अधिकार नहीं है.
इससे विश्वविद्यालय में कई महत्वपूर्ण कार्य ठप हो गये हैं. विश्वविद्यालय का समग्र विकास नहीं हो रहा है. विश्वविद्यालय में प्रोवीसी, रजिस्ट्रार, फाइनांस ऑफिसर के साथ-साथ सीसीडीसी का पद भी रिक्त है. सभी पद प्रभारी के भरोसे चल रहे हैं. विश्वविद्यालय में स्थायी कुलपति नहीं रहने का खामियाजा छात्र-छात्राओं को भुगतना पड़ रहा है. ना तो समय पर डिग्री सर्टिफिकेट मिल रहा है और ना ही किसी तरह का प्रमाण पत्र. प्रशासनिक दृष्टिकोण से भी कई काम प्रभावित हो रहे हैं.
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