सरायकेला: सरायकेला-खरसावां जिले के आदिवासी समुदाय के लोगों ने अलग अलग क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है. चाहे वो खेल का क्षेत्र या फिर कला, संस्कृति से जुड़े क्षेत्र. इन्होंने कड़ी मेहनत से सफलता के झंडे गाड़े. अब ये लोग समाज के अन्य युवाओं को आगे बढ़ाने के लिए नयी राह दिखा रहे हैं. समाज के ऐसे युवाओं पर पढ़ें शचिंद्र कुमार दाश की ये खास रिपोर्ट.
बाइक से धूम मचा रही है माउंटेन बाइकर गर्ल कंचन उगुरसांडी
कुचाई प्रखंड के बिदरी गांव की कंचन उगुरसांडी की पहचान देश में माउंटेन बाइकर गर्ल के रूप में की जाती है. इसी क्षेत्र के छोटे से गांव बिदरी में जन्मी कंचन उगुरसांडी देश के सबसे ऊंचे 18 दर्रों को पार कर सुर्खियों में छा गई हैं. ‘हो’ आदिवासी समुदाय की कंचन सोशल मीडिया में बॉर्डर बाइकर गर्ल के नाम से लोकप्रिय है. जून 2021 में कंचन ने बाइक से डेढ़ माह तक राइड कर में देश की सबसे ऊंची सड़क लद्दाख के उमलिंग ला दर्रे तक पहुंची.
इसके लिए कंचन को 18 दर्रे पार करने पड़े थे. वहां पहुंच कर कंचन ने राष्ट्रध्वज फहराया. इसके साथ ही कंचन 19,300 फीट ऊंची सड़क तक बाइक से पहुंचने वाली पहली महिला बाइकर बन गयी. कंचन ने लद्दाख के अलावा गुजरात के रन ऑफ कच्छ और राजस्थान, पंजाब, हिमाचल और उत्तराखंड तक बाइक से यात्रा कर चुकी हैं. अपनी यात्रा के दौरान कंचन सेना के शिविर में ही विश्राम करती थीं.
वह बाइक से उत्तराखंड के चार धाम बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री तक भी सफर कर चुकी है. पिछले दिन कारगील विजय दिवस के 25 वें वर्ष गांठ पर वे बाइक से ही कारगील वार मेमोरियल पहुंच कर शहीदों को श्रद्धांजलि दी थी. 2019 से उन्होंने उत्तर भारत में कई मोटरसाइकिल यात्राएं पूरी की हैं.
कंचन यह यात्रा करने वाली पहली महिला बाइकर हैं. उन्होंने हिमालय पर्वतमाला में 18 खतरनाक पर्वतीय क्षेत्रों को पार करते हुए मनाली और लेह होते हुए दिल्ली से उमलिंग ला तक 3,187 किलोमीटर की दूरी तय की. अब आगे कंचन दिल्ली से सिंगापुर तक का सफर बाइक से पूरी करने की तैयारी कर रही हैं. कंचन ने कहा कि हौसले बुलंद हों तो बड़े से बड़े सपने पूरे हो सकते हैं. उन्होंने बताया कि मुझे बचपन से ही बाइक चलाने का शौक था. पिता ने ही बाइक चलाना सिखाया था. झारखंड में सिर्फ लड़के बाइक चलाते थे, वह इस धारणा को तोड़ना चाहती थीं. वह अभी दिल्ली में पदस्थापित है.
अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर के तीरंदाज तैयार कर चुके हैं प्रेमचंद मार्डी
सरायकेला के कांड्रा पिंड्राबेडा गांव के प्रेम चंद मार्डी पिछले 30 वर्षो से निशुल्क रूप से तीरंदाजी का प्रशिक्षण दे रहे हैं. पिंड्राबेड़ा स्थित सिदो-कान्हू आर्चरी ट्रेनिंग सेंटर के कोच प्रेम चंद मार्डी रोजाना सुबह-शाम नये तीरंदाजों को प्रशिक्षण देते हैं. प्रेम मार्डी स्वयं भी राष्ट्रीय स्तर के तीरंदाज रहे हैं. उन्होंने अब तक डेढ़ सौ से अधिक युवाओं को तीरंदाजी के गुर सीखा चुके हैं.
प्रेम चंद मार्डी द्वारा तैयार चार तीरंदाज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और 53 राष्ट्रीय स्तर के तीरंदाजी स्पर्द्धाओं मे भाग ले कर मेडल जीत चुके हैं. राष्ट्रीय खेल के तीरंदाजी में स्वर्ण पदक जीतने वाले कालीचरण बेसरा, गुरु चरण बेसरा, अमित मोदक, रोबिन सिंह हांसदा समेत कई तीरंदाजों को प्रेम चंद मार्डी ने ही आगे बढ़ाने का कार्य किया है. उनके आर्चरी एकेडमी से तीरंदाजी का प्रशिक्षण ले चुके 21 तीरंदाजों को खेल कोटा से अलग अलग विभागों में सरकारी नौकरी भी मिल चुकी है.
प्रेम चंद आगे जा कर बड़े पैमाने पर तीरंदाजी ट्रेनिंग सेंटर खोलना चाहते हैं. उनका कहना है कि आदिवासियों में पारंपरिक तीरंदाजी के गुण मौजूद रहते हैं. बस उन्हें तराश कर आगे बढ़ाने की आवश्यकता है. तीरंदाजी के क्षेत्र में भी बेहतर भविष्य बनाया जा सकता है.
यूरोप में छऊ नृत्य कर परचम लहरा चुकी है गीतांजलि हेंब्रम
छऊ नृत्यांगना गीतांजलि हेंब्रम आज किसी परिचय की मोहताज नहीं है. वह विदेशों में छऊ नृत्य प्रस्तुत करने वाली आदिवासी समुदाय की पहली महिला कलाकार है. मूल रूप से सरायकेला की रहने वाली गीतांजलि हेंब्रम वर्ष 2018 में पद्मश्री पं गोपाल दुबे के साथ यूरोप के कई शहरों में छऊ नृत्य प्रदर्शित कर चुकी है. उन्होंने दस वर्ष की उम्र में सरायकेला के राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र में गुरु तपन पटनायक व गुरु विजय साहू से छऊ नृत्य का प्रशिक्षण लेना शुरु किया.
गीतांजलि ने बताया कि उन्होंने ठान लिया था कि हर हाल में छऊ नृत्य सीखना है और आगे जा कर बड़े मंचों में इसका प्रदर्शन करना है. इससे पहले उन्होंने सरायकेला, ओड़िशा, बेंलगुरु, हरियाणा, एमपी, आंध्रप्रदेश, दिल्ली समेत देश के कई राज्यों में बड़े मंचों पर छऊ नृत्य का प्रदर्शन कर चुकी है. शादी के बाद जब उन्हें बेंगलुरु में रहना पड़ा, तो वहां भी छऊ नृत्य को नहीं छोड़ा. वह पं गोपाल दुबे के साथ देश के कई शहरों में नृत्य प्रदर्शित कर चुकी हैं.
दो बच्चों की मां होने के बाद भी गीतंजलि फिलहाल जमशेदपुर में रह कर छऊ नृत्य करती है और दूसरों को सिखाती है. वे छऊ नृत्य में पुरुष व महिला दोनों का किरदार निभाती है. देवदाशी उनका पसंदीदा नृत्य है. इसके अलावे वह राधा-कृष्ण, वर्षा-झमझम, नाविक, रात्रि आदि नृत्य भी कर चुकी है. उनका मानना है कि मन में कोई भी चीज ठान लें तो कुछ भी असंभव नहीं है. छऊ नृत्य हमारी संस्कृति व परंपरा से जुड़ा हुआ है. इसमें महिलाओं को आगे आ कर अपनी भागिदारी सुनिश्चित करनी होगी.
राष्ट्रीय स्तर के कई फुटबॉलर तैयार कर चुके हैं अशोक टुडू
अशोक टुडू फुटबॉल के कोच हैं. वह उन गिने चुने प्रशिक्षकों में है, जिन्होंने देश में कई राष्ट्रीय स्तर के फुटबॉल खिलाड़ी दिये हैं. आज झारखंड में वे किसी परिचय के मोहताज नहीं. उन्होंने पटना के बिहार फुटबॉल अकादमी से 1975 में अपने खेल जीवन की शुरुआत की और चंद्र वर्षों में ही संतोष ट्रॉफी जैसे मान्यता प्राप्त खेल में अपना प्रतिभा दिखाई.
अशोक ने 1989 में बैंकॉक और सिंगापुर में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया. जेसीटी फगवाड़ा, मेकॉन , सेल बोकारो, महिंद्रा ऐंड महिंद्रा जैसे कई प्रसिद्ध फुटबॉल क्लबों में अपनी प्रतिभा का परिचय देने के पश्चात वह अंततः टाटा स्टील से जुड़े. टाटा स्टील में कई सालों तक नौकरी करने के पश्चात उन्होंने कई लोगों को फुटबॉल के गुर सिखाये.
अशोक टुडू सरायकेला-खरसावां फुटबॉल टीम के भी प्रशिक्षक रहे हैं. उनके बेहतर प्रशिक्षण के कारण ही आज झारखंड के अलावा कई अन्य राज्यों के खिलाड़ी उनसे प्रशिक्षण लेने पहुंचते हैं. उनका मानना है कि झारखंड के परिवेश में ही फुटबॉल है. सरकार की ओर से इन खेलों को बढ़ावा मिले तो वे यहां के कई खिलाड़ियों को बेहतर प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं. वह हमेशा क्षमतावान खिलाड़ियों को ढूंढते हैं जिन्हें सहयोग की जरूरत होती है. उन्हें उम्मीद है कि वह दिन दूर नहीं जब फुटबॉल के क्षेत्र में भारत भी अपनी बादशाहत कायम करेगा और वहां झारखंड के खिलाड़ियों का दबदबा रहेगा.
अब तक 40 पुस्तकालय की स्थापना कर चुके हैं ‘लाइब्रेरी मैन’ संजय कच्छप
चाईबासा का रहने वाले 44 वर्षीय संजय कच्छप अब तक कोल्हान क्षेत्र में 40 पुस्तकालय की स्थापना करने में सफलता हासिल की है. जिसमें दो दर्जन डिजिटल लाईब्रेरी है. सरकारी नौकरी हासिल करने के बाद उन्होंने सबसे पहले पश्चिमी सिंहभूम जिला मुख्यालय चाईबासा में वार्ड नंबर-1 के पुलहातू में स्थित अपने पैतृक निवास स्थान पर ‘मुहल्ला पुस्ताकलय’ की स्थापना की.
इस सराहनीय काम में उन्हें कई समान विचारधारा वाले लोगों ने मदद की. तब से लेकर अब तक उन्होंने कोल्हान प्रमंडल के तीन जिलों पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां और पूर्वी सिंहभूम में लगभग 40 पुस्तकालयों की स्थापना कर चुके हैं. इन पुस्तकालयों की मदद से दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले गरीब और आदिवासी छात्रों को उनके जरूरत की सारी किताबें आसानी से उपलब्ध हो जा रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी 27 नवंबर 2022 को अपने मन की बात कार्यक्रम में संजय कच्छप की सराहना कर चुके हैं.
दरअसल संजय कच्छप ने 2002 में स्नातक की पढ़ाई के वक्त आईएएस अधिकारी बनने का सपना देखा. इसके लिए इन्होंने अपने स्तर से हरसंभव कोशिश की, लेकिन गरीबी व अच्छी पुस्तकें नहीं मिल पाने के कारण उनका यह सपना अधूरा रह गया. हालांकि बाद में उन्हें रेलवे और कृषि विभााग में नौकरी मिल गई. सरकारी नौकरी मिलने के बाद उन्होंने गरीब बच्चों की परेशानियों को देखते हुए पुस्तकालय स्थापित करने का अभियान शुरू किया. अपने पैतृक गांव से लेकर जहां भी नौकरी के दौरान पदस्थापित रहें, वहां बच्चों के लिए पुस्तकालय खोलने का काम किया. इस कारण इन्हें अब लोग ‘लाइब्रेरी मैन’ के नाम से जानने लगे.
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