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Interview: पद्मश्री शांति देवी ने गोदना पेंटिंग को दिलाई वैश्विक पहचान, दीवारों तक सीमित कला को कैनवास तक पहुंचाया

दीवारों तक सिमटी गोदना पेंटिंग की कला को पद्मश्री शिवन पासवान और उनकी पत्नी पद्मश्री शांति देवी ने वैश्विक पहचान दिलाई है. इन्हें इस कला का जनक कहा जाता है. पद्मश्री शांति देवी से उनकी कला यात्रा पर पेश है बातचीत के प्रमुख अंश.

Interview: पद्मश्री शिवन पासवान और उनकी पत्नी पद्मश्री शांति देवी को गोदना पेंटिंग का जनक कहा जाता है. इनकी ही बदौलत दीवारों तक सिमटी कला अब कागजों और कपड़ों पर उकेरी जाने लगी, जिसके कारण इस कला को एक वैश्विक पहचान मिली. कई ऐसे मौके भी आये जब पद्मश्री शांति देवी की पेंटिंग्स ने देश-दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया.

पिछले साल भारत की अध्यक्षता में हुए G20 सम्मेलन में भी इनकी कला को दुनिया ने देखा और सराहा. इनके आर्ट वर्क को अमेरिका, जापान, हॉन्गकॉन्ग समेत कई देशों में ख्याति मिल चुकी है. रामायण, महाभारत और परंपरागत कहानियों के किरदारों तक सिमटी रहने वाली मिथिला की पेंटिंग्स को गोदना कला के जरिए चुनौती दी. बिहार संग्रहालय के स्थापना पर ‘सीता की जीवनी’ पर लगने वाली प्रदर्शनी में इनकी पेंटिंग भी शामिल है.

Q. आपने इस कला की शुरुआत कैसे की? इसके बारे में बताएं.

मैं पिछले चालीस साल से भी ज्यादा समय से इस कला से जुड़ी हुई हूं. यही हमारी परंपरा और धरोहर है. जिसे हमने अपनी दादी-नानी से सीखा है. 1976 में मेरी शादी शिवन पासवान से हुई थी. मैं बहुत संघर्ष और गरीबी से गुजरी हूं. समाज की ओर से हमें कभी स्वीकारा नहीं गया. मैं और मेरी पति की मेहनत ही है, जो हमने मिथिला पेंटिंग और गोदना शैली की परंपरा को एक वैश्विक पहचान दी. इस दौरान चुनौतियां भी काफी आयीं, लेकिन हमने एक दूसरे का साथ दिया, जिसकी बदौलत हम इस मुकाम तक पहुंच पाएं हैं.

Q. आप दलित समुदाय से हैं. ऐसे में सामाजिक तौर पर कितनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा?

मैं जब गांव के विद्यालय में पढ़ती थी, तो मुझे अन्य बच्चों से दूर बिठाया जाता था. यहां तक की पीने का पानी भी अलग होता था. एक बार मुझे बहुत प्यास लगी और मैंने ऊंची जाति के एक घर के कुएं से पानी पी लिया. मुझे जियानंद झा ने पानी पीते हुए देख लिया और मुझे मारने लगें. मैं वहां से भाग निकली. उसी दिन कुंए की उड़ाही की गयी. दूसरे दिन मां को बुलाकर डंडे से पिटा गया और जुर्माने के तौर पर 100 रुपये लिए गये. मां ने घर का कुछ सामान बेचकर जुर्माना भरा और मेरा स्कूल जाना बंद करवा दिया. शादी के बाद मिथिला पेंटिंग की शुरुआत की और पति-पत्नी मिलकर देवी-देवताओं की तस्वीर बनाने लगे. इस पर भी समाज के लोगों ने आपत्ति जतायी. दोनों को काफी जलील किया. इसी को लेकर पंचायत बुलायी गयी. जिस पर निर्णय लिया गया कि दलितों के भी देवी-देवता हैं. आप उनकी तस्वीर बनाएं न कि दुर्गा व काली की.

Q. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ भी आप एक बार अपनी पेंटिंग लेकर डेनमार्क प्रतिनिधिमंडल के संग गयी थीं, इसके बारे में बताएं?

हां, दस बाय दस की एक पेंटिंग राजा सलहेस को लेकर बनायी थी. उसी को लेकर 1983 में मैं डेनमार्क गयी. वह मेरी पहली विदेश यात्रा थी. बाद में जापान, जर्मनी, नॉर्वे, मलेशिया, दुबई के अलावा भारत के सभी राज्यों में गयी.

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Q.आप चंद्रयान-तीन को लेकर भी एक पेंटिंग बनायी थीं. जिसके बाद आपकी मुलाकात प्रधानमंत्री से हुई थी?

मुझसे पिछले साल जब जी 20 के लिए पेंटिंग बनाने को कहा गया तब मैंने कहा कि राजा सलहेस, गीता -रामायण जिंदगी भर बनायी है. कुछ नया बनाने की इच्छा है. मैंने कहा कि पोते-पोती के संग टीवी पर मैंने चंद्रयान को देखा है, उसे ही बनाना चाहती हूं. मैंने रॉकेट को उड़ते देखा था, कल्पना चावला के बारे में सुना था. उसी सब को अपनी पेंटिंग में उतारा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मेरी मुलाकात हुई और मैंने उन्हें अपनी पेंटिंग के बारे में विस्तार से बताया.

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