Katihar News : सूरज गुप्ता, कटिहार. जश्न-ए-आजादी की तैयारी जोर-शोर से चल रही है. 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाने को लेकर हर तरफ उत्साह का माहौल है. दरअसल, स्वाधीनता संग्राम में अगस्त महीने का अलग ही महत्व है. इसी महीने आजादी की लड़ाई में कटिहार का भी बड़ा योगदान रहा है. हालांकि अलग-अलग क्षेत्रों में आजादी की लड़ाई की अलग-अलग कहानियां हैं. हर तबके ने जंग-ए-आजादी में अपने हिसाब से योगदान दिया है. स्वाधीनता संग्राम में कटिहार जिले के लोगों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. कई युवाओं ने हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहुति दे दी.
क्रांति की चिंगारी कटिहार के शहर व गांवों में फैली
जानकारों की मानें, तो आठ अगस्त 1942 को कांग्रेस के बंबई अधिवेशन में जब करो या मरो व भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा हुई थी, उसके बाद कटिहार के क्रांतिकारी भी उसमें शामिल हो गये थे. बंबई अधिवेशन में महात्मा गांधी, पं जवाहर लाल नेहरू, डॉ राजेंद्र प्रसाद आदि नेताओं ने भाग लिया था. उद्घोषणा की रात में ही गांधी समेत अनेक प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था. अगले दिन यानी नौ अगस्त 1942 को पूरे भारतवर्ष में क्रांति की आग भड़कउठी. क्रांतिकारियों ने उग्र रूप धारण कर लिया. रेल की पटरियां उखड़नेलगीं. डाकघर, थाना, रेलवे स्टेशनों और सरकारी कार्यालयों पर हमले होने लगे. आग लगायी जाने लगी, अंग्रेज अफसरों को पकड़ कर जलती आग में फेंका जाने लगा. उसकी चिंगारी कटिहार भी पहुंची. कटिहार के शहरी व ग्रामीण क्षेत्र की आजादी के दीवानों ने सक्रिय भूमिका निभायी. लगातार कई दिनों तक यहां के वीर सपूतों ने जंग-ए-आजादी में संघर्ष किया व कई लोग शहीद भी हो गये.
थाने की ओर बढ़ा था क्रांतिकारियों का जुलूस
जानकारों की मानें तो 11 अगस्त 1942 को कटिहार रजिस्ट्री ऑफिस के सभी कागजात जला देने के बाद क्रांतिकारियों ने कटिहार थाना को जला देने के इरादे से उसे घेरे रखा था. जोशीले नारे लगाये जा रहे थे. करो या मरो, अंग्रेजो भारत छोड़ो, भारत माता की जय, स्वतंत्र भारत की जय, महात्मा गांधी की जय, पंडित जवाहरलाल नेहरू की जय, सुभाष चंद्र बोस की जय… आदि नारे लग रहे थे. मुंसिफ कोर्ट पर तिरंगा झंडा फहराने के बाद एक जुलूस थाने की ओर बढ़ा. उस समय पूर्णिया के सदर एसडीओ फणी भूषण मुखर्जी सशस्त्र बल के साथ कटिहार थाना पर डटे थे. पुलिस को उनके आदेश का इंतजार था. उस समय नक्षत्र मालाकार कटिहार थाना के पूर्वी गेट पर क्रांतिकारियों का नेतृत्व करते हुए हमला करने का इंतजार कर रहे थे. एक सिपाही का निशाना मालाकार जी की ओर था. मालाकार जी भी सीना ताने जान की बाजी लगा कर खड़े थे और उस सिपाही की ओर कड़ी निगाहों से देख रहे थे.
ध्रुव कुंडू की जांघ में आ लगी गोली
जानकारों की मानें तो उस दिन विद्यार्थियों के एक विशाल जुलूस का नेतृत्व कटिहार के जाने माने चिकित्सक डॉ किशोरी लाल कुंडू के सुपुत्र ध्रुव कुमार कुंडू कर रहे थे. ध्रुव स्थानीय महेश्वरी एकेडमी कटिहार की आठवीं कक्षा के छात्र थे. वे अन्य साथियों के साथ थाना पर आ धमके. पुलिस ने आसमानी फायर करते हुए उसे रोकने के लिए चेतावनी दी. लेकिन 13 वर्ष के उस वीर बालक ने हाथ में तिरंगा लिए भारत माता का जयकारा लगाते थाने पर हमला बोल दिया. एसडीओ फणी भूषण मुखर्जी ने गोली चलाने का आदेश दिया. धांय-धांय गोलियां चलने लगीं. एक गोली ध्रुव कुंडू की बांयीं जांघ पर लगी. अन्य कई क्रांतिकारी वहीं शहीद हो गये. भारत की आजादी के लिए अंग्रेजों से लड़ते हुए अपनी जान गंवाने वाले सैकड़ों वीर सपूत हैं. लेकिन सबसे कम उम्र के शहीद ध्रुव कुंडू ने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी. ध्रुव कुंडू डॉक्टर किशोरी लाल कुंडू के छोटे बेटे थे. जानकारों की मानें तो डॉ किशोरी लाल स्वयं एक स्वतंत्रता सेनानी थे.