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11 अगस्त 1942: बिहार के जब सात नौजवान पुलिस की गोलियाें से हो गए थे शहीद, पढ़िए उनकी पराक्रम की कहानी…

August Kranti: 1942 की अगस्त क्रांति भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास के पन्नों में सदा अमर रहेगी. महान क्रांति के दिनों में पटना ने दृढ़ संकल्प, आदम्य साहस व शौर्य का परिचय दिया था. जिसमे सात नौजवानों को अपनी प्राण की आहुति देनी पड़ी थी.

August Kranti: 1942 की अगस्त क्रांति भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास के पन्नों में सदा अमर रहेगी. महान क्रांति के दिनों में पटना ने दृढ़ संकल्प, आदम्य साहस व शौर्य का परिचय दिया था. बिहार विधानसभा के पूर्वी द्वार पर 11 अगस्त 1942 को हजारों लोग, जिसमें स्कूल और कॉलेज के छात्र भी शामिल थे, पटना सचिवालय भवन पर राष्ट्रीय झंडा फहराने के दृढ़ संकल्प के साथ एक विशाल जुलूस लेकर चले.

पुलिस ने गोलियां चलाई, जिसमें सात नौजवान शहीद हो गए. इन सातों नौजवानों ने पुलिस की अन्यायपूर्ण गोलियों का सामना करते हुए प्राणों की आहुति देकर एक अनोखा उदाहरण प्रस्तुत किया. पटना सचिवालय का अहाता जहां से शुरू होता है, वहां शहीदों का एक स्मारक बना हुआ है.

सेना के जवान भीड़ को खदेड़ रहे थे लेकिन भीड़ बढ़ती जा रही थी

शहादत का यह ऐतिहासिक दिन आज भी इतिहास के पन्नों में अमिट है. अंग्रेजों को हिंदुस्तानी सिपाहियों पर भरोसा कम था. इसलिए पटना शहर में गोरखा टुकड़ी तैनात की गई थी. सचिवालय की ओर जुलूस नहीं बढ़ पाए. इसके लिए पुलिस का विशेष बंदोबस्त किया गया था. दिन के साढ़े बारह बजे सेना के जवान व पुलिस ने भीड़ को खदेड़ना शुरू किया. लेकिन भीड़ के जोश में कोई कमी नहीं आई. हार्डिंग पार्क होते हुए लाखों लोग सचिवालय की ओर आने लगे.

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उमाकांत के मुंह से निकला अंतिम वाक्य था- भारत माता की जय

विधानसभा के फाटक के सामने कलेक्टर डब्ल्यूजी आर्चर गोरखा फौज के साथ तैनात था. जो लोग आगे बढ़ रहे थे वे गिरफ्तार कर लिए जाते थे. उमाकांत को गोली लगी, तो झंडा जगतपति ने थाम लिया दिन के 2:15 बजे सचिवालय के पूर्वी फाटक पर युवक तिरंगा फहराने में सफल हो गए.

वह झंडा गोरखा फौज के जवानों ने तुरंत उतार दिया. लेकिन भीड़ का दबाव बढ़ता ही गया. करीब ढाई घंटे तक सचिवालय परिसर में घुसने के लिए संघर्ष चलता रहा. इस बीच युवकों की टोली फौज के घेरे को तोड़ ललकारते हुए भीतर घुस पड़ी. फौज के जवानों ने 13-14 राउंड गोलियां चलाई. उमाकांत सिंह नामक युवक हाथ में झंडा लिए सबसे आगे थे, इसलिए उन्हें ही गोली लगी और वे धराशायी हो गये. उनके मुंह से निकला अंतिम वाक्य था- भारत माता की जय.

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गोली लगने से एक के बाद एक धराशायी होते जा रहे थे नौजवान

उमाकांत के धराशायी होने के बाद भी भीड़ सचिवालय के भीतर घुसने लगी. सचिवालय के अहाते में जगतपति कुमार, जो अब झंडा लिए जुलूस का नेतृत्व कर रहे थे, उन्हें और उनके साथियों को प्रवेश करने से रोका गया. वे डटे रहे. उसी समय जिला मजिस्ट्रेट आर्चर ने पुलिस के घेरे में प्रदर्शनकारियों को आगे बढ़ने दिया, ताकि जब वे तंग जगह में आ जाएंगे तो आगे पीछे नहीं जा सकेंगे.

जगतपति सबसे आगे थे व प्राणों की परवाह किए बिना बढ़ते गए. वन्दे मातरम के नारों से आकाश गूंज उठा.झंडा ले बढ़ते हुए एक के बाद दूसरे साथी गोली लगने से गिरते जा रहे थे. रामानंद सिंह, सतीश प्रसाद झा, देवीपद चौधरी, राजेंद्र सिंह और रामगोविंद सिंह भी पुलिस की गोली से शहीद हो गए.

शहीद नौजवानों के नाम पर सड़क का नाम रखा गया ’42 क्रांति मार्ग’

सात नौजवान शहीद हो गये. सातों शहीदों की याद और सम्मान में उस सड़क का नाम 42 क्रांति मार्ग रखा गया. ये 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के समय विस भवन पर भारतीय तिरंगा फहराने के प्रयास में मारे गए. इन शहीदों को याद रखने के लिए बिहार के पहले राज्यपाल जयरामदास दौलतराम ने 15 अगस्त 1947 को स्मारक की नींव रखी थी. मूर्तिकार देवी प्रसाद राय चौधरी ने राष्ट्रीय ध्वज के साथ सात विद्यार्थियों की कांस्य की प्रतिमा का निर्माण किया.

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