दुमका. विश्व आदिवासी दिवस पर रांची के बिरसा मुंडा स्मृति पार्क में आयोजित झारखंड आदिवासी महोत्सव में जादोपटिया चित्रकला शैली की नेशनल सीनियर फेलोशिप अवॉर्डी दुमका की चित्रकार नीलम नीरद और उनकी टीम के चित्रकारों की पेंटिंग ने गहरी छाप छोड़ी. इस महोत्सव के अवसर पर डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान द्वारा छह दिवसीय जनजातीय चित्रकला कार्यशाला-सह-प्रदर्शनी का आयोजन किया गया. इसमें झारखंड की चार चित्रकला शैलियों जादोपटिया, सोहराय, पटकर और खोहबर को विशेष रूप से प्रमोट किया गया. छत्तीसगढ़ की उरांव पेंटिंग और बीएचयू एवं शांति निकेतन के समकालीन चित्रकला शैली के कलाकारों ने भी आदिवासी जीवन, सामाजिक प्रथाओं और मूल्यों पर केंद्रित चित्र उकेरे. नीलम नीरद और उनकी टीम के अन्य सात कलाकारों ने जादोपटिया चित्रकला शैली के विभिन्न विषयों को नवोन्मेषी चाक्षुष प्रभाव के साथ बड़े कैनवास पर उतारा. नीलम नीरद की कलाकृतियों में संताल समाज के सोहराय पर्व और गोड़ टांडी अनुष्ठान के लयबद्ध दृश्यों को रैखिक गतिशीलता के साथ चित्रित किया गया, जिसमें रंग-संयोजन और रंग-संतुलन की विशिष्टता दिखी. इनकी एक अन्य कलाकृति में विशाल जलराशि के मध्य पृथ्वी की रचना और मनुष्य की उत्पत्ति की गाथा दर्शायी गयी है.
दुमका की अर्पिता ने जादोपटिया चित्रकला की ओर ध्यान खींचा
वहीं, अर्पिता राज नीरद ने अपनी कलाकृतियों में जादोपटिया चित्रकला के प्रमुख विषय ””””””””काराम विनती”””””””” के विशिष्ट तत्वों को उनके मिथकीय पक्षों के साथ कैनवास पर उतारा. इसमें सृष्टि की रचना-प्रक्रिया के आरंभिक जीवन-तत्वों की क्रमित उत्पत्ति को दर्शाया गया. इसमें यह दर्शाया गया कि संताल मिथक के अनुसार, मानव की उत्पत्ति पक्षी-युगल (हांस-हांसिन), पादप (काराम का पौधा) और चार जलचरों (केकड़ा, मछली, केचुआ और कछुआ) के बाद सातवीं अवस्था में हुई, जहां से संतालों के आदि माता-पिता पिलचू हाड़ाम और पिलचू बूढ़ी के अवतरण की कथा आरंभ होती है और इन्हीं की संतान पृथ्वी पर प्रथम मानव जीवन की अवधारणा को सिद्ध करती हैं. निताई चित्रकार, गणपति चित्रकार, दयानंद चित्रकार, दशरथ चित्रकार और जियाराम चित्रकार ने बाहा, काराम विनती और घोड़ा-पट के विभिन्न विषयों को एक्रिलिक और फैब्रिक कलर से कैनवास पर चित्रित किया. इन चित्रों को महोत्सव के कला-दीर्घा में प्रदर्शित किया गया, जहां राजधानी के लोगों ने इनका अवलोकन किया और इनकी सराहना की. इन कलाकरों का हौसला तब और भी बढ़ा, जब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, उनकी धर्मपत्नी विधायक कल्पना सोरेन, कला-संस्कृति मंत्री हफीजुल हसन, सांसद महुआ मांजी और अन्य विशिष्ट लोगों ने देखा और सराहा.
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