सृजन साहित्यिक मंच नेे सावन की सप्तमी तिथि के अवसर पर रविवार की शाम दानरो नदी तट स्थित मेलोडी मंडप में तुलसी जयंती मनायी. इस अवसर पर उपस्थित रचनाकारों व समाजसेवियों ने आज के परिवेश में तुलसीदास के जीवन व उनकी रचनाओं की प्रासंगिकता पर विचार-साझा किये. कार्यक्रम का उद्धाटन मुख्य अतिथि सेवानिवृत शिक्षक जनेश्वर दूबे, विशिष्ट अतिथि सेवानिवृत बीसीओ अजय कुमार शुक्ला, आरएसएस के प्रदेश बौद्धिक प्रमुख ज्वाला तिवारी, समाजसेवी डॉ पतंजलि केसरी, समाजसेवी उमाकांत तिवारी, मंच के उपाध्यक्ष राजमणि राज, सचिव सतीश कुमार मिश्र व मीडिया प्रभारी दयाशंकर गुप्ता ने किया. इस अवसर पर विषय प्रवेश कराते हुए सचिव सतीश कुमार मिश्र ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदासजी संत जगत के सूर्य हैं, उनकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती है. उनकी रचना रामचरित मानस एक जीवन पद्धति है. इसका अनुकरण कर हम अपने परिवार, समाज व राष्ट्र सभी को संवार सकते हैं. मुख्य अतिथि जनेश्वर द्विवेदी ने कहा कि संत तुलसीदास का प्रादुर्भाव ऐसी स्थिति में हुआ, जब देश दुर्दशा झेल रहा था. तुलसीदास जी की सभी रचनायें अद्वितीय हैं. उन्होंने कहा कि तुलसीदास ने कठिनाईयों को अपने लक्ष्य के आड़े नहीं आने दिया. माता-पिता व गुरु को मानने वालों की कमी : अजय कुमार शुक्ला ने कहा कि संत तुलसीदास संस्कृति के नायक थे. उन्होंने मानव को सबसे अच्छा रास्ता दिखाया. लेकिन दुख की बात है कि आज भारत के सनातनी स्वयं अपनी संस्कृति से भटक गये हैं. माता-पिता व गुरु को मानने वालों की कमी हो गयी है. आरएसएस के प्रदेश बौद्धिक प्रमुख ज्वाला तिवारी ने कहा कि तुलसीदास जी की रचना सामाजिक समरसता का प्रतीक है. रामचरित मानस पूरे समाज को जोड़ने की क्षमता रखता है. समाजसेवी उमाकांत तिवारी, अधिवक्ता आशीष कुमार दूबे डॉ पतंजलि केसरी, पर्यावरण परिवार के संयोजक नितिन तिवारी, गीतकार राजकिशोर राय व समाजसेवी अमित शुक्ला सहित अन्य लोगों ने भी अपने विचार व्यक्त किये. मौके पर राजमणि राज ने विभिन्न रचनाओं से सबको प्रभावित किया.
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