दाउदनगर. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में न जाने कितने महान सेनानियों ने भाग लिया और अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया. परंतु हम सिर्फ उन महान स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जान पाये, जिनके बारे में हमें बताया गया. पर अभी भी ऐसे कई गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी हैं, जिनके बारे में न हमें किसी ने बताया और न हमने जाना. इसी क्रम में दाउदनगर शहर के निवासी कैलाश राम का नाम आता है, जिन्होंने देश को आजाद कराने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया. वे त्याग व समर्पण की प्रतिमूर्ति थे. दाउदनगर के वार्ड 12 के निवासी कैलाश राम मात्र 13 वर्ष के उम्र में अग्रेजो के खिलाफ लड़ाई में उतर पड़े थे. राम विष्णु राम के दो संतान थे. एक पुत्र एवं एक पुत्री. उनके इकलौते पुत्र कैलाश राम का जन्म 11 फरवरी 1920 को हुआ था. उस समय अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ाई उफान पर थी. वे बचपन से अंग्रजों के जुल्म देखते आ रहे थे. जैसे-जैसे बड़े हो रहे थे, उनके मन मे अंग्रजों के प्रति नफरत बढ़ती जा रही थी. आखिरकार 13 वर्ष के उम्र में वे घर छोड़कर भाग गये. उन्होंने गया में एक डॉक्टर के यहां शरण ली. वहीं, डॉक्टर से कम्पाउंडरी सीख कर योगदान देने के साथ -साथ आजादी के लिए हो रहे आंदोलन में हिस्सा लेने लगे. उसी दौरान अंग्रेजों भारत छोड़ों आंदोलन में नारा लगाने एवं जुलूस निकालने के कारण इंडिया डिफेंस एक्ट के तीन धाराओं के तहत गया में गिरफ्तार करके गया जिला कारागार में डाल दिया गया था. दो साल जेल में रहने के बाद वे फिर से स्वतंत्रता आंदोलन में जुड़ गये. 1942 में जब पटना गोलीकांड के खिलाफ पूरे देश में उग्र प्रदर्शन किया जा रहा था .देश को आजाद कराने के लिए स्वतंत्रता सेनानी दृढ़ संकल्पित होकर अपनी भूमिका का निवर्हन कर रहे थे तो उस दौरान कैलाश राम ने भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. दाउदनगर के मौलाबाग रोड स्थित आबकारी गोदाम को जलाने में शामिल रहे. तब अंग्रेजी हुकूमत ने इन पर जिंदा या मुर्दा पकड़ने का इनाम घोषित कर दिया. उसके बाद कभी अंग्रेजों के हाथ नही आए.आखिरकार, 15 अगस्त 1947 को हमारा देश आजाद हुआ.
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