दरभंगा. लनामिवि के प्राचीन भारतीय इतिहास पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग में “पुरावशेषों का संरक्षण एवं रखरखाव ” विषय पर हुई कार्यशाला में मुख्य वक्ता गौतम प्रकाश ने कहा कि 100 वर्ष से प्राचीन हर एक वस्तु पुरावशेष की श्रेणी में आते हैं. इसके संरक्षण की जिम्मेवारी सरकार की होती है. पुरातत्ववेत्ता प्राचीन टीलों एवं स्थलों को खोजते हैं, फिर परीक्षण कर खुदाई करते हैं. परिणाम स्वरूप जो अवशेष हमें प्राप्त होते हैं, उनके आधार पर ही क्रमवार सांस्कृतिक अध्ययन संभव हो पता है. किंतु, इन पुरावशेषों का लंबे अंतराल तक अध्ययन एवं नवीन तथ्यात्मक शोधकार्य के लिये अगली पीढ़ी को सौंपने के लिए संरक्षित करना सबसे आवश्यक है. विभागाध्यक्ष डॉ अमीर अली खान ने अध्यक्षता करते हुये कहा कि हमारी संस्कृति अक्षुण्ण रहे इसके लिए पुरावशेषों को संरक्षित करना सबसे महत्वपूर्ण है. जब हम अपनी सभ्यता और संस्कृति को संरक्षित करेंगे, तब ही भारत विश्वगुरु बनेगा. संरक्षण के कारण ही आज हम लोग सिंधु घाटी सभ्यता से प्राप्त अभिलेखों, सिक्कों, मृदभांडावशेषों सहित कतिपय पुरावशेषों के शोधकार्य एवं अध्ययन से ही उस कालखंड को जान पाये हैं. कहा कि अगर ससमय इन्हें संरक्षित नहीं किया गया होता, तो आज हम इस महान सभ्यता और संस्कृति से परिचित नहीं हो पाते. बाद में सभी प्रतिभागियों को विभाग में मौजूद पुरावशेषों को संरक्षित करने को लेकर प्रशिक्षित किया गया. कार्यक्रम का संचालन डॉ प्रतिभा किरण एवं धन्यवाद ज्ञापन शोधार्थी अविनाश कुमार ने किया. कार्यशाला में इतिहास विभाग के शोधार्थी, छात्र-छात्राएं आदि शामिल हुए.
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