Dogs Terror: भभुआ. बिहार का भभुआ जिला कुत्तों के खौफ से आक्रांत है, बूढ़े-बच्चे सभी खौफ में जी रहे हैं. कुत्तों का झुंड कब किस पर हमला कर दे, यह कहना मुश्किल है. कुत्तों का आतंक इस आंकड़े से समझा जा सकता है कि भभुआ में लावारिस कुत्ते हर महीने औसतन 1150 लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं. आंकड़े बताते हैं कि पिछले सात माह में पांच हजार से अधिक लोगों को कुत्ते ने काटा है. इस वर्ष अब तक 223 दिनों में 8225 लोगों ने सदर अस्पताल में एंटी रैबिज इंजेक्शन लिया है. शहर की कोई ऐसी गली या सड़क नहीं हैं, जहां आवारा कुत्तों की फौज नहीं होती. सुरक्षा के मद्देनजर से कुत्तों को पाला जाता था. गलियों के कुत्तों को दो रोटियां खिलाई जाती थी, ताकि वह पहरेदारी कर सके. लेकिन, अब तो वो आतंक का पर्याय बन चुके हैं. रात में बच्चे गलियों में निकलने में डरते हैं.
बच्चे और बुजुर्ग को लेकर अधिक चिंता
भभुआ शहर का कोई ऐसा वार्ड नहीं है जहां लोग कुत्तों से डरे सहमे नहीं है. स्थानीय मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पिछले दो दिनों में ही वार्ड नंबर 24 में कई लोगों को कुत्ते से काटा है. किसी को सुबह टहलने के दौरान कुत्ते ने काटा तो किसी को बाजार जाते वक्त कुत्तों के झुंड ने काटकर जख्मी कर दिया. सदर अस्पताल में पहुंचे लोगों ने एआरबी का इंजेक्शन लगवाया. सदर अस्पताल के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2024 के जनवरी माह से 10 अगस्त तक 8225 लोगों को एआरबी इंजेक्शन दिया गया है. कुत्तों के सबसे अधिक शिकार बच्चे और बुजुर्ग हो रहे हैं.
2024 में कब कितने लोगों को लगी सुई
- जनवरी 1533
- फरवरी 1484
- मार्च 1507
- अप्रैल 1118
- मई 849
- जून 812
- जुलाई 716
- अगस्त 10 तक 186
(स्रोत सदर अस्पताल)
रैबीज से बचाव के लिए नहीं हो रहे उपाय
सदर अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि कुत्तों के काटने से होनेवाली मौतों की तुलना में रैबीज से बचाव के लिए टीकाकरण और नसबंदी किए हुए कुत्तों की संख्या बहुत कम है. घरों में पाले जानेवाले कुत्तों का ही टीकाकरण कराया जाता है. बचाव के उपायों के प्रति जनचेतना के अभाव, अपर्याप्त कुत्ता टीकाकरण तथा कुत्ते के काटने के बाद रोगी की देखभाल में कमी के कारण समस्या उत्पन्न हो रही है. कुत्तों की नसबंदी के लिए प्रयास ही नहीं किए गए हैं. अगर इस उपाय को अपनाया जाए, तो कुत्तों की संख्या नियंत्रित होगी.
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प्रशासन नहीं सुन रहा कोई गुहार
कुत्तों के खौफ में जी रहे शहर के लोगों में प्रशासन पर गुस्सा है. लोगों का कहना है कि यह नगर परिषद की जिम्मेदारी है. वो आवारा कुत्तों को पकड़े. उसकी नसबंदी कराए. वन विभाग से सामंजस्य बैठाकर खतरनाक बन चुके कुत्तों को जंगलों में छोड़े. नागरिकों को जागरूक करने के लिए अभियान चलाए. लेकिन, नगर परिषद ने अब तक इस संबंध में कोई काम नहीं किया है. परिषद के सामने जब भी यह मामला उठता है वो कर्मियों की कमी का रोना रो लेते हैं. पशुपालन विभाग के पास भी आवारा कुत्तों की नसबंदी करने की कोई सुविधा नहीं है. ऐसे में लोगों को इन खतरनाक कुत्तों के बीच ही आने जाने की मजबूरी है.