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बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले के पीछे राजनीति, मदरसा और मौलवी : तसलीमा नसरीन

Attack on Hindus in Bangladesh : कोटा के खिलाफ आंदोलन जब भड़का तो बांग्लादेश में तख्ता पलट हुआ और उसके साथ ही अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हमला और अत्याचार भी बढ़ा. हिंदू दहशत में हैं और बाॅर्डर पार भारत भी आना चाहते हैं, वहीं हजारों हिंदू सड़क पर उतरे हैं और सरकार से सुरक्षा की मांग की है. बांग्लादेश की प्रसिद्ध लेखिका तसलीमा नसरीन ने प्रभात खबर के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत में बताया कि क्यों वहां हिंदुओं पर हमले बढ़े हैं और कैसे उनकी आबादी 30 से आठ प्रतिशत पर आ गई है.

Attack on Hindus in Bangladesh : बांग्लादेश में आरक्षण विरोधी आंदोलन इतना जोर पकड़ा कि पीएम शेख हसीना का तख्ता पलट हो गया और वे इस्तीफा देकर भारत की शरण में आ गई. तख्ता पलट के बाद बांग्लादेश में अराजकता की स्थिति उत्पन्न हुई और फिर वहां शुरू हुआ हिंदू परिवारों और मंदिरों पर हमले का सिलसिला. भारत सरकार ने कई बार बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे हमले का विरोध किया और इसपर चिंता भी जताई, लेकिन स्थिति में कोई बदलाव नजर नहीं आया है, हालांकि हिंसा के खिलाफ बांग्लादेशी हिंदुओं के सड़क पर उतरने के बाद वहां की अंतरिम सरकार ने उन्हें सुरक्षा देने का वादा किया है. बांग्लादेश में हिंदुओं पर जो हमले हो रहे हैं और वहां के राजनेताओं के रवैये पर प्रभात खबर के साथ बांग्लादेश की प्रसिद्ध लेखिका तसलीमा नसरीन ने लंबी बातचीत की. पढ़िए उस बातचीत के प्रमुख अंश-

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बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले के पीछे राजनीति, मदरसा और मौलवी : तसलीमा नसरीन 2

बांग्लादेश में आज हिंदुओं पर जो हमले हो रहे हैं क्या वे तात्कालिक हैं या इसका पुराना इतिहास है?

बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमला नया नहीं है. जब से देश स्वाधीन हुआ, हिंदुओं पर अटैक बहुत बार हुए हैं, तभी तो देश की स्वाधीनता के समय हिंदू 30 प्रतिशत थे और अब मात्र आठ प्रतिशत शेष हैं. मैंने अपने नाॅवेल लज्जा में भी हिंदुओं पर हुए अटैक का जिक्र किया है, किस तरह बाबरी मस्जिद टूटने के बाद बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार हुआ और सरकार ने कुछ नहीं किया. तो मेरा कहना यह है कि हिंदुओं पर अत्याचार बांग्लादेश में हमेशा से रहे हैं, कुछ कट्टर पंथी लोग हिंदुओं को निशाने पर रखते हैं. जब 1947 में देश का भाग हुआ, उस वक्त भी खूब दंगे हुए थे. जहां तक बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ अटैक का सवाल है, तो सच्चाई यह है कि विभिन्न राजनीतिक नेताओं ने अपने फायदे के लिए धर्म का इस्तेमाल किया और इसकी वजह से ही देश में हिंदुओं पर अटैक हुए.

आपने धर्म का राजनीतिक इस्तेमाल की बात कही है, इसे थोड़ा और स्पष्ट करके बताएंगी?

जी, आप देखिए कि जब बांग्लादेश स्वाधीन हुआ तो वह एक सेक्यूलर देश था जहां राज्य का अपना कोई धर्म नहीं था. लेकिन 80 के दशक में इस्लाम को देश का धर्म बना दिया गया. इसके साथ ही ‘बिस्मिल्लाह उर रहमान उर रहीम’ शब्द को संविधान में जोड़ दिया गया. यह सबकुछ हुआ जिया उर रहमान और जनरल हुसैन मुहम्मद इरशाद के समय में. ये दोनों और इनके बाद भी जो लोग सत्ता में आए उन्होंने जीवनपर्यंत सत्ता में बने रहने के लिए इस्लाम के मानने वालों को यह दिखाया कि वे उनके हितैषी हैं इसलिए हिंदुओं या अन्य धर्म को मानने वालों के खिलाफ नफरत फैलाई गई. मस्जिद बनाए गए मदरसे बनाए गए, लेकिन इन शासकों ने कभी भी देश  में शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास के कार्यों पर ध्यान नहीं दिया. जब मदरसों में मुल्ला-मौलवियों ने बच्चों का ब्रेन वाॅश किया, उन्हें कट्टपपंथी बनाने का काम किया, तो बांग्लादेश की किसी भी सरकार ने उसे रोकने की कोशिश नहीं की, क्योंकि मुसलमानों का हितैषी बनने से उनकी सरकार ज्यादा दिनों तक सत्ता में रह सकती है. बांग्लादेश एक ऐसा देश है, जहां की बहुसंख्यक आबादी मुसलमान है.

क्या बांग्लादेश के समाज में भी हिंदू विरोधी मानसिकता है, या फिर सिर्फ राजनीतिक लोग ही ऐसी सोच रखते हैं?

देखिए, मैंने आपसे क्या कहा-मदरसों में मौलवियों ने बच्चों को इस्लाम की शिक्षा दी और उन्हें कट्टरवाद सिखाया. बच्चों का ब्रेन वाॅश किया. जब वही बच्चे समाज का हिस्सा हैं और समाज में अहम भूमिका निभा रहे हैं, तो समाज में हिंदू विरोधी भावना क्यों नहीं दिखेगी? मौलवियों के ब्रेन वाॅश से बच्चे कट्टरपंथी हो गए और सरकार ने इनपर कोई रोक नहीं लगाई, यह सरकारों की गलती है. राज्य को इस्लाम धर्म स्वीकार करने की क्या जरूरत थी. एक आदमी का रिलीजन होता है, वह अपने रिलीजन के अनुसार आचरण करता है, लेकिन देश का रिलीजन क्यों होना चाहिए. जैसे ही बांग्लादेश ने खुद को इस्लामिक स्टेट घोषित किया, देश के अन्य धर्म के लोग दूसरे दर्जे के नागरिक हो गए. क्या यह स्थिति हिंदुओं पर होने वाले हमले के लिए जिम्मेदार नहीं है. बांग्लादेश में मिलिट्री के लोग शासन में आए और देश के लिए दुर्नीतियां बनाईं.
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शेख हसीना तो खुद को हिंदू समर्थक के रूप में पेश करती थीं, उनके शासनकाल में क्या स्थिति थी?

देखिए, जब शेख हसीना सत्ता में आई, तो हिंदू काफी खुश थे अब उनके खिलाफ हमले बंद जाएंगे. लेकिन यह संभव नहीं हुआ. शेख हसीना को सत्ता चाहिए, थी तो वो मुसलमानों को नाराज नहीं कर सकती थी. वे चाटुकारों से घिरीं थीं, एक भ्रष्टाचारी शासक, जिसने अपने खिलाफ बोलने वालों को गोलियों से भूनवा दिया. उन्होंने इतने साल शासन किया, लेकिन सत्ता की भूख समाप्त नहीं हुई, परिणाम यह हुआ कि जब स्टूडेंट्‌स ने आरक्षण का विरोध किया, तो हसीना ने उन्हें गोली से मारने का आदेश दे दिया. इससे स्टूडेंट्‌स गुस्सा हो गए. शेख हसीना की लोकप्रियता आम लोगों में नहीं थी, इसलिए वे कुछ तारीफ करने वाले लोगों से घिर गई और कई दुर्नीति किया.

बांग्लादेश का आम हिंदू कितना डरा हुआ है?

देश में जब हमले होंगे तो कोई भी डरेगा. बांग्लादेश के हिंदुओं की स्थिति कुछ इसी तरह की है. ऐसा नहीं है कि हर हिंदू पर हमले हुए, लेकिन उन्होंने सुना कि हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं, तो वे डरे हुए है. मैंने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में भी लिखा है. एक डरा हुआ आदमी क्या करेगा, वे बाॅर्डर पर पहुंच जाते हैं कि अब बांग्लादेश में नहीं रहेंगे और हिंदुस्तान चले जाएंगे. जब भी देश में दंगे हुए हैं, यह स्थिति सामने आई है. लेकिन पिछले दिनों देश में जो कुछ हुआ, वह बहुत ही अच्छा संकेत है. हजारों बांग्लादेशी हिंदू सड़क पर उतरे और सरकार से मांग की कि उन्हें सुरक्षा दी जाए, वे अपना देश छोड़कर क्यों जाएंगे. सरकार उन्हें बताए कि उनपर हमले क्यों हुए. बांग्लादेश के कई जिलों में जागो हिंदू जागो का स्लोगन गूंजा तो सरकार को सामने आकर कहना पड़ा कि वे उनकी रक्षा करेंगे. हिंदुओं का यह प्रदर्शन बहुत ही खास है, क्योंकि उन्होंने अपने हक की बात की है. आखिर वे अपना देश क्यों छोड़ें. किसी देश का धर्म कैसे हो सकता है और कोई शासक अपने लोगों में धर्म के आधार पर भेदभाव क्यों करेगा? हां,ये तो सच है कि हिंदू डरा हुआ है क्योंकि उनके घरों पर हमले हुए हैं, मंदिरों पर हमले हुए हैं और उनके प्रतीक चिह्नों को भी तोड़ा गया है.

बांग्लादेश में कबतक स्थिति सामान्य होने की संभावना है?

तख्ता पलट के बाद वहां अंतरिम सरकार बनी है , जिसमें आवामी लीग के अलावा अन्य दलों के लोग शामिल हैं. कुछ एनजीओ के लोग हैं, स्काॅलर है. इन्होंने कहा है कि तीन महीने बाद इलेक्शन करवाया जाएगा. जब लोकतांत्रिक तरीके से इलेक्शन होगा और सरकार बनेगी, तो उम्मीद है कि स्थिति सामान्य हो जाएगी और देश को एक बेहतर सरकार मिलेगी.

भारतीय उपमहाद्वीप में आप सबसे अच्छी स्थिति में कहां की महिलाओं को देखती हैं, भारत, पाकिस्तान या फिर बांग्लादेश?

देखिए, भारतीय उपमहाद्वीप में तीनों ही देश में महिलाओं पर हमले होते हैं और उनकी सामाजिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. लेकिन जहां तक कंपरिजन का सवाल है, तो भारत में महिलाओं को ज्यादा अधिकार प्राप्त है. वे ज्यादा स्वतंत्र हैं और उनपर हमले कम हैं. पाकिस्तान और बांग्लादेश की महिलाओं को कई अधिकार इसलिए प्राप्त नहीं है क्योंकि उनपर इस्लामिक कानूनों से बंदिश लगाई जाती है. भारत में महिलाओं को पिता की संपत्ति में भाई के बराबर अधिकार है, लेकिन हमारे देश में उन्हें यह अधिकार नहीं है. प्रोपर्टी का अधिकार लेकिन भाई के बराबर नहीं. उन्हें उतनी स्वतंत्रता भी नहीं है. हां भारतीय मुसलमान महिलाओं को तलाक का अधिकार नहीं है, लेकिन पाकिस्तान और बांग्लादेश में उन्हें यह अधिकार प्राप्त है. फिर भी तुलना करेंगे तो भारतीय महिला ज्यादा अधिकारों से संपन्न है.
जहां तक बात सुरक्षा की है, तो चूंकि बांग्लादेश में लंबे समय तक महिला शासक रही हैं, तो महिलाएं सुरक्षित हैं, उन्हें रात को सड़क पर असुरक्षित महसूस नहीं होता है. घटनाएं तो हर जगह होती हैं, बांग्लादेश में भी हो रही हैं.

क्या बांग्लादेश में हिंदुओं को जबरदस्ती कंवर्ट किया जाता है?

नहीं, कंवर्ट करने की परंपरा वहां नहीं है. हां, अगर कोई किसी के प्रेम में है और वह अपना धर्म परिवर्तन करता है, तो अलग मैटर है. लेकिन जबरदस्ती कंवर्ट करने का मामला नहीं है. 
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