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धन्य हुई थी करमाटांड़, जहां पड़े थे बापू के पांव

धन्य हुई थी करमाटांड़, जहां पड़े थे बापू के पांव

राकेश वर्मा, बेरमो :

28 अप्रैल 1934 को महात्मा गांधी बेरमो अनुमंडल के गोमिया आये थे. करमाटांड़ निवासी स्वतंत्रता सेनानी होपन मांझी के नेतृत्व में हजारों लोगों के जत्थे ने गांधीजी को बैलगाड़ी जुलूस के साथ उन्हें करमाटांड़ गांव लाया था. बापू होपन मांझी के कार्यों से काफी प्रभावित थे. इसलिए जब इन्होंने यहां आने का निमंत्रण दिया तो वह अस्वीकार नहीं कर सके. इस दौरान बापू ने कोनार नदी के किनारे गोमीबेड़ा में जनसभा को संबोधित किया था. प्रचंड गर्मी के बावजूद हजारों लोग उन्हें देखने व सुनने जुटे थे. लोग दूर-दूर से बैलगाड़ी, साइकिल या पैदल पहुंचे थे. गोमीटांड़ के सामने इमली पेड़ के निकट तोरण द्वार बनाया गया था. मचान पर चढ़ कर बापू ने टीन के भोंपू से सभा को संबोधित करते हुए लोगों से स्वतंत्रता आंदोलन को सफल बनाने की अपील की थी. बापू के भाषण से प्रभावित होकर कई आंदोलन में कूद पडे़ थे. बापू के भाषण से प्रेरित होकर कई लोगों ने मांस-मदिरा का भी त्याग कर दिया था. स्वदेशी अपनाने की मुहिम चल पड़ी थी. लोग खुद चरखा से सूत काटकर वस्त्र बनाने लगे थे. बापू करमाटांड़ गांव में होपन मांझी व उनके पुत्र लक्ष्मण मांझी के टूटे-फूटे खपरैल मकान में रात को रुके भी थे. संताल बहुल करमाटांड़ गांव में पैर पुजाई व लोटा पानी देकर बापू का स्वागत किया गया था. दोपहर में बापू को होपन मांझी के परिजन ने खाने में महुआ व बाजरे की रोटी और महुआ का लाठा परोसा था, जिसे बाबू ने चाव से खाया था. होपन मांझी के घर के आंगन में तुलसी पिंडा की बापू ने पूजा भी की थी. वह तुलसी पिंडा आज भी है.

बापू के सिद्धांतों व अहिंसावादी नीतियों से थे प्रेरित होपन मांझी

होपन मांझी बापू के सिद्धांतों व अहिंसावादी नीतियों से प्रेरित थे. उनके चार पुत्र थे. लक्ष्मण मांझी, जवाहर मांझी, देशबंधु मांझी व चंद्रशेखर मांझी. लक्ष्मण मांझी का निधन वर्ष 1990 में हुआ था. स्वतंत्रता सेनानी लक्ष्मण मांझी के पुत्र भगवान दास मांझी का भी निधन हो चुका है. होपन मांझी दो भाई थे. बड़े भाई का नाम बड़का मांझी था. इनके वंशज हैं. होपन मांझी के पोता का नाम गुना राम मांझी है. होपन मांझी पर अंग्रेजी हुकूमत ने दो हजार रुपये का जुर्माना लगाया था और जुर्माना नही देने पर 27 जुलाई 1930 से लेकर 31 मार्च 1931 तक उन्हें हजारीबाग केंद्रीय कारा में रखा गया था. 26 जून 1972 को हजारीबाग केंद्रीय कारा के काराधीक्षक ने उन्हें स्वतंत्रता सेनानी का प्रमाण पत्र दिया था. 1950 से लेकर 1952 तक होपन मांझी एमएलसी रहे. उनके पुत्र लक्ष्मण मांझी 1952 से लेकर 1957 तक मनोनीत विधायक रहे. वर्ष 2003 में गोमिया के पूर्व विधायक माधवलाल सिंह ने होपन मांझी के नाम पर तोरणद्वार बनाया था.

यासिन अंसारी ने कहा था-आजादी की लड़ाई में कर्तव्य निभाया है, इसकी कीमत नहीं चाहिए

गोमिया प्रखंड के मो यासिन अंसारी ने जमींदार परिवार के होने के बावजूद जमींदारी व महाजनी प्रथा का विरोध किया था. साथ ही स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था. आजादी के बाद वर्ष 1973-74 में स्वतंत्रता सेनानियों को दी जाने वाली पेंशन के लिए अधिकारी उनके पास आवेदन पर हस्ताक्षर लेने आये थे. उन्होंने पेंशन लेने से यह कह कर इंकार कर दिया था कि आजादी की लड़ाई में कर्तव्य निभाया है, इसकी कीमत नहीं चाहिए. यासिन अंसारी महात्मा गांधी से प्रेरित होकर आगे की पढ़ाई छोड़ कर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पडे़ थे. वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में विद्यानंद झा, केबी सहाय व अनुग्रह बाबू के साथ मिल कर बढ़-चढ़ कर भाग लिया. 40 के दशक में जब महात्मा गांधी गोमिया प्रखंड के करमाटांड़ गांव आये थे तो यासिन अंसारी व अन्य लोगों ने उनके ठहरने की व्यवस्था की थी. वर्ष 1918 में जन्मे यासिन अंसारी ने 1946 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में हजारीबाग ग्रामीण सीट से चुनाव लड़ा था और मुस्लिम लीग के प्रत्याशी को हरा कर विधायक बने थे. 1946 से 1952 तक विधानसभा सदस्य रहे. यासिन अंसारी के दो पुत्र स्व अजहर अंसारी व इफ्तेखार महमूद झारखंड आंदोलनकारी रहे हैं. झारखंड सरकार ने दोनों को सम्मानित किया है. इसी तरह गोमिया के स्वतंत्रता सेनानी रामदास चेला गोमिया में घूम-घूमकर लोगों को जागरूक करते थे. खुदगड़ा निवासी डोका महतो व महादेव महतो तथा ब्लॉक कॉलोनी गोमिया निवासी सर्वजीत शर्मा ने भी स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभायी थी.

नावाडीह के भी कई लोग जुड़े थे स्वतंत्रता आंदोलन से

नावाडीह में कांग्रेस पार्टी से जुडे़ राम प्रसाद कसेरा स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्हें इसके लिए पेंशन भी मिलती थी. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभायी थी. गांव-गांव पैदल घूम कर लोगों को देश की आजादी का महत्व समझाते थे. उनके सहयोगी में पूर्व मुखिया जगदीश महतो, देवी महतो, रामटहल साव आदि थे. सभी स्वतंत्रता आंदोलन से जुडे़ कार्यक्रमों में भाग लेते थे. नावाडीह प्रखंड के पिलपिलो निवासी टेको महतो भी स्वतंत्रता सेनानी पेंशनर थे. कहते है स्वतंत्रता आंदोलन के समय पूर्व मुख्यमंत्री केबी सहाय कई माह तक ऊपरघाट में छुप कर रहा करते थे. भाकपा नेता व पूर्व मुखिया अनंतलाल महतो बताते हैं कि टेको महतो उन्हें लाकर खाना खिलाते थे. कहते हैं एक बार डुमरी के एक कार्यक्रम में केबी सहाय आये हए थे तो मंच के नीचे से टेको महतो ने उन्हें आवाज दी तो उन्होंने उन्हें मंच पर बुला लिया. बाद में केबी सहाय ने टेको महतो को बेरमो स्थित स्वांग-पिपराडीह कोलियरी में नौकरी दी थी.

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