Samastipur News : रैगिंग की घटनाएं इन दिनों लगातार सुर्खियों में हैं. बेहतर भविष्य के लक्ष्य के साथ उच्च शिक्षा संस्थानों में दाखिला लेने वाले छात्रों को कैंपस में पहुंचते ही रैगिंग की इस विचित्र संस्कृति का सामना करना पड़ता है. रैगिंग से नए छात्रों में डर पैदा होता है, जिससे वे मानसिक रूप से उदास हो जाते हैं. अक्सर उनमें अपने संस्थान के प्रति नफरत पैदा हो जाती है. पीड़ित अवसाद, अकेलेपन का अनुभव करते हैं और हतोत्साहित हो जाते हैं. अब तक शिक्षण संस्थानों में रैगिंग पर रोक के लिए शिक्षण संस्थान के स्तर पर ही एंटी रैगिंग कमेटी या सेल बनता रहा है, लेकिन अब जिला स्तर पर शिक्षण संस्थानों में रैगिंग पर नजर रखी जाएगी. इसके लिए डीएम के नेतृत्व में कमेटी बनेगी. इसमें शिक्षण संस्थानों के प्रतिनिधियों के साथ एसपी, मीडिया के प्रतिनिधि, गैर सरकारी संस्थानों के प्रतिनिधि और छात्र संगठनों के प्रतिनिधि शामिल होंगे. यह व्यवस्था पूरे राज्य में लागू होगी और सूबे के सभी विश्वविद्यालय अपने-अनने क्षेत्र की जिला स्तरीय एंटी रैगिंग कमेटी में शामिल रहेंगे.
Samastipur News : उच्च शिक्षा निदेशक डॉ. रेखा कुमारी ने सभी विश्वविद्यालयों के रजिस्ट्रार को पत्र लिखा.
इसके लिए उच्च शिक्षा निदेशक डॉ. रेखा कुमारी ने सभी विश्वविद्यालयों के रजिस्ट्रार को पत्र लिखा है. यह व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट के आदेश और यूजीसी के निर्देश पर की जा रही है. उच्च शिक्षा निदेशक ने यूजीसी से तय ढांचे के तहत जिला स्तर की कमेटी में शामिल होने वाले अधिकारियों और विभिन्न इकाइयों के प्रतिनिधियों का जिक्र किया है. कमेटी आयुक्त या डीएम के नेतृत्व में बनेगी. वे ही कमेटी के प्रमुख होंगे. संबंधित विश्वविद्यालय और जिस जिले में विश्वविद्यालय नहीं है वहां के कॉलेज या मुख्य शिक्षण संस्थान के प्रमुख सदस्य होंगे. पुलिस अधीक्षक भी सदस्य होंगे जबकि एडीएम रैंक के अधिकारी सदस्य सचिव होंगे. स्थानीय मीडिया के प्रतिनिधि, जिलास्तरीय गैर सरकारी संस्थानों के प्रतिनिधि, छात्र संगठन के प्रतिनिधि भी कमेटी के सदस्य होंगे. पत्र में कहा गया है कि कमेटी स्थानीय पुलिस और जिला प्रशासन के साथ ही विभिन्न संस्थानों के अधिकारियों के साथ मिलकर रैगिंग के दायरे में आने वाली घटनाओं की निगरानी करेगी. छात्र नेता मुलायम सिंह यादव ने कहा कि रैगिंग एक जघन्य अपराध है जिसे केवल कानून के माध्यम से समाप्त नहीं किया जा सकता. इससे बचने के लिए छात्रों को अपनी आवाज़ उठानी चाहिए और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना चाहिए. विश्वविद्यालय प्रशासन और अन्य संबंधित हितधारकों को रैगिंग के संबंध में दंड से बचने की संस्कृति को समाप्त करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए.
रैगिंग कि वजह से छात्रों को छोड़नी पड़ती है पढ़ाई, हो जाते हैं अवसाद का शिकार
इस मामले की गहन जांच करना हमारा कर्तव्य है ताकि कोई अन्य छात्र परिसर में क्रूरता और हिंसा का शिकार न बने. विमेंस कॉलेज के सहायक प्राध्यापक डा. विजय कुमार गुप्ता ने बताया कि आम तौर पर विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों में नए छात्रों को मेल-मिलाप की आड़ में ही प्रताड़ित और अपमानित किया जाता है. कई बार प्रताड़ना और अपमान के शिकार छात्र अवसाद से ग्रस्त हो जाते हैं या फिर अपना आत्मविश्वास खो देते हैं. कुछ तो पढ़ाई छोड़ने के लिए बाध्य होते हैं. यह भी एक सच्चाई है कि कभी-कभार रैगिंग के दौरान हुई प्रताड़ना से क्षुब्ध होकर या फिर शर्मिंदगी के चलते छात्र आत्महत्या तक कर लेते हैं. यह एक विडंबना ही है कि रैगिंग वही छात्र करते हैं, जो खुद उससे पीड़ित हो चुके होते हैं. आखिर यह कौन सी मनोवृत्ति है कि जो छात्र रैगिंग का शिकार होते हैं, वही सीनियर बनते ही नए छात्रों की रैगिंग करने लगते हैं? यह चिंताजनक है कि यूजीसी के रैगिंग विरोधी दिशानिर्देशों के बाद भी उच्च शिक्षा संस्थानों में रैगिंग थमने का नाम नहीं ले रही है.
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