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कोलवारा में विषहरी पूजा में दूर-दराज से पहुंच रहे लोग

कोलवारा में विषहरी पूजा में दूर-दराज से पहुंच रहे लोग

प्रतिनिधि, परबत्ता प्रखंड क्षेत्र के कोलवारा गांव में अंग प्रदेश की लोकगाथा पर आधारित बिहुला-विषहरी पूजा को लेकर उत्साह है. कोलवारा पंचायत के वार्ड संख्या 18 में स्थापित विषहरी मंदिर इलाके में चर्चित है. बिहुला-विषहरी पूजा के अवसर पर काफी संख्या में लोग उपस्थित होते हैं. ग्रामीण अनरुद्ध दास, सुदीन दास, जयप्रकाश दास, सीताराम दास, मुन्नी लाल दास, मनीष कुमार, ज्ञानी दास आदि ने बताया कि बीते छह दशकों से बिहुला-विषहरी की पूजा श्रद्धा भक्ति से मनाते आ रहे हैं. इस पूजन के साथ साथ रात्रि में सभी उम्र तथा वर्ग के स्थानीय कलाकार बिहुला-विषहरी पर आधारित कथा पर नृत्य के साथ साथ झांकी का मंचन किया जाता है. इस परंपरा को स्थानीय लोग अनवरत निभाते आ रहे हैं. यहां ग्रामीणों के सहयोग से मंदिर का निर्माण किया गया है. प्रत्येक वर्ष श्रद्धा भक्ति के साथ हर्षोल्लास के साथ बिहुला-विषहरी पूजन किया जाता है. विषहरी पूजा समिति कोलवारा के सदस्य पूजा एवं मेला को लेकर काफी सक्रिय हैं. बिषहरी मंदिर कोलवारा में बीते 16 अगस्त की देर रात प्रतिमा को स्थापित किया गया. ग्रामीणों की मानें तो विषहरी पांच बहन जया विषहरी, पदुम कुमारी, दोतिला भवानी, मैना विषहरी, देवी विषहरी, सती बिहुला, बाला लखेंद्र, चंद्रधर सौदागर आदि की प्रतिमा प्रत्येक साल बनाई जाती है. इस पूजन में खगड़िया जिले ही नहीं अन्य जिलों से भक्त जन यहां पहुंचते हैं. पौराणिक कथा बिहुला-विषहरी की कहानी भागलपुर चंपानगर के तत्कालीन बड़े व्यवसायी और शिवभक्त चांदो सौदागर से शुरू होती है. विषहरी शिव की पुत्री कही जाती है, लेकिन उनकी पूजा नहीं होती थी. विषहरी ने सौदागर पर दबाव बनाया, लेकिन वह शिव के अलावा किसी और की पूजा को तैयार नहीं हुए. आक्रोशित विषहरी ने उनके पूरे खानदान का विनाश शुरू कर दिया. छोटे बेटे बाला लखेन्द्र की शादी उज्जैन नगरी के बिहुला से हुई थी. उनके लिए सौदागर ने लोहे बांस का एक घर बनाया, ताकि उसमें एक भी छिद्र न रहे. यह घर अब भी चंपानगर में मौजूद है. सुहागरात के दिन ही विषहरी के भेजे दूत नाग ने रात्रि 12 बजे सिंह नक्षत्र के प्रवेश करते ही बाला लखेंद्र को डस लिया. जिससे उनकी मौत हो गयी. बिहुला सती थी. इसलिए उसने हार नहीं मानी. सती बिहुला पति के शव को केले के थम से बने नाव में लेकर गंगा के रास्ते स्वर्गलोक तक चली गई. पति का प्राण वापस कर आयी. तब सौदागर भी विषहरी की पूजा के लिए राजी हुए. लेकिन बाएं हाथ से. तब से आज तक विषहरी पूजा में बाएं हाथ से ही होती है. इस परिक्षेत्र में बिहुला विषहरी की पूजा नाग पंचमी से शुरू होती है. लगातार एक माह तक चलती है. हर साल एक ही तिथि को होती है बिहूला-विषहरी पूजा ग्रामीण अनरुद्ध दास, संजय कुमार ने बताया कि हर साल एक ही तिथि बीते 16 अगस्त की देर रात्रि विषहरी व सती बिहुला की पूजा प्रारंभ होती है. मध्य रात्रि में सिंह नक्षत्र का प्रवेश होता है. पिंडी पर प्रतिमा स्थापित किया जाता है. 17- 18 अगस्त को हरेक साल लोग डलिया चढ़ाने के साथ दूध व लावा का भोग लगाते हैं. भगत की पूजा समाप्त हो जाती है. दोपहर में मनौन भजन कार्यक्रम होता है. 19 अगस्त की शाम को प्रतिमा का विसर्जन किया जाएगा. दो तरह से पूजा होती है. एक सामान्य रूप से प्रतिमा स्थापित करके पूजा की जाती है. भगत पूजा का कार्यक्रम होता है. मंजूषा स्थापित किया जाता है .

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