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Everest Summit Ranchi : 60 साल की उम्र में सबसे ऊंची चोटी को किया फतह, जिस जगह पत्नी की मौत हुई थी, वहां जाकर श्रद्धांजलि दी

जैप वन स्थित शौर्य सभागार में रविवार को 18 एवरेस्ट विजेता रांचीवासियों से रूबरू हुए. किसी का मकसद ही पर्वतारोहण था, तो कोई अपनी पत्नी को श्रद्धांजलि देने के लिए एवरेस्ट पर लौटा.

एवरेस्ट फतह की जिद और जुनून की कहानियां

रांची. जैप वन स्थित शौर्य सभागार में रविवार को 18 एवरेस्ट विजेता रांचीवासियों से रूबरू हुए. इनमें अपने समय में मिस इंडिया की फाइनलिस्ट थी, जिसने एवरेस्ट फतह किया. किसी ने 13 साल की उम्र में ही एवरेस्ट पर तिरंगा लहराया. किसी का मकसद ही पर्वतारोहण था, तो कोई अपनी पत्नी को श्रद्धांजलि देने के लिए एवरेस्ट पर लौटा. ये पर्वतारोही पूरे देश से थे और इनके साथ थी अनुभव, एवरेस्ट फतह करने की जिद और जुनून की कहानियां. 50 साल से ज्यादा की उम्र में शरद कुलकर्णी और उनकी पत्नी एवरेस्ट अभियान पर थे. शरद की बायीं आंख बर्फ से खराब हो चुकी थी. इस अभियान में उनकी आंखों के सामने ही पत्नी ने खराब मौसम की वजह से दम तोड़ दिया. इस घटना के बाद शरद डिप्रेशन में चले गये, लेकिन पत्नी के साथ एवरेस्ट फतह करने का जुनून खत्म नहीं हुआ था. फिर 60 वर्ष की उम्र में दोबारा लौटे. कारोबार बेटे को सौंप दिया. सबकुछ छोड़ सिर्फ ट्रेनिंग की. फिर एवरेस्ट पर चढ़ाई की. उसी जगह पर जहां पत्नी की मौत हुई थी, उसके नाम का प्लेट छोड़ा और श्रद्धांजलि दी. एवरेस्ट की चोटी तक पहुंचे और पत्नी को किया वादा निभाया. जब शरद अपना अनुभव सुना रहे थे, तो पूरे हॉल में सन्नाटा था.

सागरमाथा ने मेरी जिंदगी बदल दी, मुझे प्रार्थना में विश्वास करना सिखाया

मैसूर की डॉ उषा हेगड़े की जिंदगी का फलसफा था 90 प्रतिशत कड़ी मेहनत, पांच प्रतिशत प्रार्थना और पांच प्रतिशत भाग्य. पहले आयरनमैन ट्राइथलॉन जैसी प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुकी थीं. ऐसी ही प्रतियोगिताओं में एक बार हाथ फ्रैक्चर हो गया. फिर 52 वर्ष की उम्र में एवरेस्ट पर चढ़ाई करने का फैसला लिया. ट्रेनिंग ली. पहाड़ों पर चढ़ना शुरू किया और फिर इसी साल मई में एवरेस्ट पर चढ़ाई की. शेरपा की मदद के बिना यह चढ़ाई संभव नहीं थी. डॉ उषा ने कहा : सागरमाथा (एवरेस्ट) ने मेरी जिंदगी बदल दी. उसने मुझे प्रार्थना पर भरोसा करना सिखाया. लोग पूछते हैं कि एवरेस्ट पर चढ़ने का फैसला क्यों लिया? तो उसका जवाब है, खुद की क्षमताओं को परखने के लिए. खुद को और बेहतर समझने के लिए. मैं मैसूर की पहली महिला हूं, जो एवरेस्ट पर चढ़ी.

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