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पड़ोसी देशों का विकास भारत के बिना संभव

अफगानिस्तान में तालिबान की पैठ बनाने के बाद भारत का रोडमैप सीमित हुआ है. प्रश्न उठना लाजिमी है कि क्या यह भारत की विदेश नीति की उम्मीदों पर काली घटा का विस्तार है या समय का एक दौर है, जिसका कोई विशेष महत्व नहीं है. विदेश नीति और पड़ोसी देशों के संदर्भ में यह स्थापित सत्य है कि पड़ोसी देशों का आर्थिक विकास और उनकी राजनीतिक स्थिरता भारत के बिना संभव नहीं है, चाहे इन देशों को मदद अमेरिका से मिले या चीन से.

India: बांग्लादेश के हालिया घटनाक्रम के बाद यह प्रश्न उठने लगा है कि क्या भारत की ‘पड़ोसी प्रथम’ की नीति हाशिये पर आ गयी है. दो साल पहले श्रीलंका में ऐसा ही कुछ हुआ था, जो आज बांग्लादेश में हो रहा है. मालदीव में भारत विरोध की लहर समय-समय पर गूंजती है. नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार है. पाकिस्तान 1947 से भारत विरोध के जरिये अपनी पतवार को खींचने की कोशिश में है.

अफगानिस्तान में तालिबान की पैठ बनाने के बाद भारत का रोडमैप सीमित हुआ है. प्रश्न उठना लाजिमी है कि क्या यह भारत की विदेश नीति की उम्मीदों पर काली घटा का विस्तार है या समय का एक दौर है, जिसका कोई विशेष महत्व नहीं है. विदेश नीति और पड़ोसी देशों के संदर्भ में यह स्थापित सत्य है कि पड़ोसी देशों का आर्थिक विकास और उनकी राजनीतिक स्थिरता भारत के बिना संभव नहीं है, चाहे इन देशों को मदद अमेरिका से मिले या चीन से. बांग्लादेश ने पिछले डेढ़ दशक में इस बात की पुष्टि दुनिया के सामने कर दी है. भारत के कारण उसकी प्रति व्यक्ति आय एक समय भारत से बेहतर हो गयी थी. क्या ऐसा अमेरिका या चीन के अनुदान से हो सकता था? अगर अनुदान की राशि से अमीर होना होता, तो पाकिस्तान शीत युद्ध के दौरान ही अमेरिकी पैसे से ऐसा हो चुका होता. पिछले पांच दशक से चीन के सहयोग से पाकिस्तान चल रहा है. इसके बावजूद उसकी आर्थिक तंगी बढ़ती जा रही है.


यह प्रश्न भी है कि क्या भारत पड़ोसी देशों के बिना दुनिया की अहम शक्ति बन सकता है. भारत की शक्ति उसकी आर्थिक क्षमता है. कोरोना महामारी की विपदा में भी भारतीय अर्थव्यवस्था नहीं थमी. आर्थिक विशेषज्ञ यह मानते है कि आत्मनिर्भर भारत एक नये विकसित भारत की रूपरेखा बनाने में सक्षम होगा. भारत अपने व्यापार को विकेंद्रित भी कर रहा है. किसी एक नाव पर आश्रित होना घाटे का सौदा होगा. इसलिए रक्षा क्षेत्र में अन्य देशों की नयी टीम खोजी जा रही है. हरित ऊर्जा में भी भारत चीन से हटकर यूरोप के साथ अपने समीकरण को जोड़ने में लगा हुआ है. दूसरी तरफ ग्लोबल साउथ में कई ऐसे देश हैं, जिनके साथ भारत व्यापार बढ़ा रहा है. ऐसी हालत में भारत की तुलना में पड़ोसी देशों की संकीर्णता और हठधर्मिता उनके लिए ज्यादा नुकसानदेह होगी. बांग्लादेश में भारत की सोच को ठुकराया जा रहा है. जो गलती पाकिस्तान ने की थी, वही बांग्लादेश में दोहरायी जा रही है. भारत संवाद के जरिये बेहतरी की कोशिश करता रहा है, जिसमें कोई मजबूत और कोई कमजोर नहीं होगा. भारतीय संस्कृति की धारणा एक नये विश्व को बनाने का आधार बन रही है.


हिंदू संस्कृति का जो विरोध बांग्लादेश में हो रहा है, वह एक सुनियोजित नाटक का हिस्सा है. वर्तमान शासक मोहम्मद यूनुस कोई फरिश्ता नहीं हैं. उनकी जन्मपत्री सबके सामने है. उनके पीछे कौन है, वह भी सबको मालूम है. हिंदू समुदाय बांग्लादेश में निरंतर हाशिये पर रहा है. हर राजनीतिक उथल-पुथल का दंश इस समुदाय को झेलना पड़ता है. कई ऐसे दर्द भरे दास्तान हैं, जो किसी भी अल्पसंख्यक समुदाय के लिए हजम कर पाना संभव नहीं है. विडंबना यह रही है कि हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार के विरुद्ध में कोई अंतरराष्ट्रीय आवाज नहीं उठी है. बांग्लादेश में इस अत्याचार का एक आर्थिक सिद्धांत है. लाखों हिंदुओं की जमीन और संपत्ति हड़पने के लिए वहां कानून बनाये जाते रहे हैं, जिससे परेशान होकर वे बांग्लादेश छोड़ने के लिए विवश हो जाएं. बांग्लादेश की आबादी में हिंदू लगभग आठ प्रतिशत हैं, जो उस मुस्लिम बहुल राष्ट्र का सबसे बड़ा धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय है.


पिछले 10 वर्षों में 15 बार शेख हसीना भारत के प्रधानमंत्री से मिल चुकी थीं. बिजली योजना से लेकर बहुमुखी परियोजनाओं के लिए प्रयास हो रहे थे. भारत के पूर्वोत्तर की कड़ी सीधा बांग्लादेश से जुड़ी हुई है. भारत बिम्सटेक पहल को मजबूत करना चाहता है, जिसमें बांग्लादेश एक अहम कड़ी है. लेकिन राजनीतिक समीकरण बदलने के साथ व्यापार की धारा और दिशा भी बदल जायेगी. वहां कट्टरपंथी ताकतें सर उठाने लगी हैं. बेगम खालिदा जिया दशकों से पाकिस्तान की भाषा बोलती रही हैं. अमेरिका के लिए लोकतंत्र और आतंकवाद एक मोहरे से ज्यादा कुछ भी नहीं है. साल 2021 और 2023 में जब अमेरिका में लोकतंत्र पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित हुए थे, उसमें पाकिस्तान को निमंत्रण दिया गया था, लेकिन बांग्लादेश को नहीं बुलाया गया था. अमेरिका पाकिस्तान और म्यांमार के तानाशाही में फर्क करता रहा, इसलिए अमेरिकी हिसाब दक्षिण एशिया के हित से अलग है. दक्षिण एशिया को भारतीय उपमहाद्वीप भी समझा जाता है. यहां बाहरी शक्तियों का हस्तक्षेप भारत के लिए मुश्किलें पैदा करेगा. हमारी सबसे बड़ी सीमा बांग्लादेश के साथ ही है, इसलिए वहां के राजनीतिक हलचल की कंपन भारत में सुनाई देती है. भारत की विदेश नीति पड़ोसी देशों के कारण तंग जरूर होगी, लेकिन वह गिरेगी नहीं. भारत की शक्ति का संवर्द्धन निरंतर होता रहेगा. दिक्कत पड़ोसियों को ही होगी. यह बात जितनी जल्दी वे समझ लेंगे, उतना ही बेहतर होगा.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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