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जन्म के बाद शुरुआती 42 दिन नवजात के जीवन के लिए बेहद महत्वपूर्ण

आशा घर पर रखती हैं बच्चों की सेहत का ध्यान

एचबीएनसी के सफल क्रियान्वयन से नवजात मृत्यु संबंधी मामलों पर प्रभावी नियंत्रण संभव

फोटो-24- नवजात की निगरानी करतीं आशा.

प्रतिनिधि, अररिया

शिशु मृत्यु दर में कमी लाना राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के प्रमुख उद्देश्यों में से एक है. कई अध्ययनों में पाया गया है कि कुल शिशु मृत्यु दर में नवजात शिशुओं की मृत्यु का बहुत बड़ा अनुपात होता है. और शिशु मृत्यु दर में अपेक्षित कमी लाने के लिये नवजात शिशुओं के लिये प्रमाणिक स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता व प्रभावी उपायों का क्रियान्वयन जरूरी है. हाल के वर्षों में संस्थागत प्रसव संबंधी मामलों में काफी बढ़ोतरी हुई है. बावजूद इसके प्रसव के उपरांत बड़ी संख्या में नवजात की मौत घर पर हो जाती है. मौत संबंधी ऐसे मामलों को नियंत्रित करने में सरकार द्वारा संचालित नवजात शिशु की घर पर देखभाल यानी एचबीएनसी कार्यक्रम बेहद उपयोगी है. जिले में भी इस कार्यक्रम के सफल क्रियान्वयन पर विशेष जोर दिया जा रहा है.

आशा घर पर रखती हैं बच्चों की सेहत का ध्यान

जिला सामुदायिक समन्वयक सौरव कुमार ने बताया कि नवजात शिशु की घर पर देखभाल कार्यक्रम एचबीएनसी के तहत आशा कार्यकर्ता गृह भ्रमण करते हुए नवजात की सेहत का समुचित ध्यान रखती हैं. संस्थागत प्रसव संबंधी मामलों में में आशा कार्यकर्ता जन्म के 3, 7, 14, 21, 28 व 42 वें दिन कुल 06 बार गृह भ्रमण करती हैं. वहीं गृह प्रसव के मामले में 1, 3, 7, 14, 21, 28, व 42 वें दिन कुल सात बार गृह भ्रमण करती हैं. सभी नवजात को आवश्यक देखभाल सुविधा उपलब्ध कराना व उन्हें किसी तरह की जटिलताओं से बचाना एचबीएनसी कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य है. उन्होंने बताया कि इसके लिए सभी आशा कार्यकर्ताओं को विशेष रूप से प्रशिक्षित किया गया है. इस क्रम में नवजात शिशु के वजन, शरीर का तापमान, रख-रखाव, पूरी तरह केवल स्तनपान को बढ़ावा देना सहित बच्चों की देखभाल, स्वच्छता, सेप्सिस सहित अन्य बीमारियों का समय से पता लगाना व इसका उपचार सुनिश्चित कराना आशा कार्यकर्ताओं का प्रमुख दायित्व होता है.

जन्म के बाद शुरुआती 42 दिन बेहद महत्वपूर्ण

जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ मोईज ने बताया कि लगभग तीन चौथाई नवजात की मौत जन्म के पहले सप्ताह में ही हो जाती है. शेष 25 प्रतिशत मौतें दूसरे व चौथे सप्ताह के बीच होती है. लगभग 40 प्रतिशत नवजात की मौत जन्म के 24 घंटे के अंदर या पहले दिन ही हो जाती है. अगली संवेदनशील अवधि तीरे दिन के आसपास की होती है. इसमें करीब 10 प्रतिशत मौत होती है. शिशु मृत्यु दर पर प्रभावी नियंत्रण के लिए प्रसव के उपरांत नवजात शिशुओं की बेहतर देखभाल बेहद जरूरी है. संस्थागत प्रसव के मामले में तो शुरुआती दो दिन तक मां व नवजात को अस्पताल में ही रहने की सलाह दी जाती है. गृह प्रसव के मामलों में तो शिशुओं की बेहतर देखभाल ज्यादा जरूरी हो जाता है. जन्म के बाद शुरुआती 42 दिन नवजात के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है.

कार्यक्रम के सफल क्रियान्वयन की हो रही पहल

सिविल सर्जन डॉ केके कश्यप ने कहा कि नवजात मृत्यु संबंधी मामलों को नियंत्रित करने में एचबीएनसी कार्यक्रम के सफल क्रियान्वयन पर विशेष जोर दिया जा रहा है. जुलाई महीने में आशा से संबंधित क्षेत्रों में जन्म लेने वाले कुल 4336 नवजात में 3882 नवजात के घर एचबीएनसी कार्यक्रम के तहत आशा द्वारा होम विजिट किया गया है. इस क्रम में 17 कमजोर नवजात को चिह्नित करते हुए उनका समुचित इलाज सुनिश्चित कराया गया है. एचबीएनसी कार्यक्रम के तहत शत प्रतिशत घरों में आशा कार्यकर्ताओं का होम विजिट सुनिश्चित कराने की दिशा में विभाग जरूरी पहल कर रहा है.

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