बोधगया. महापुरुषों की जयंतियां मनाने की सार्थकता तभी है जब हम उनके बताए रास्तों पर चलें. अगर आज़ादी के पहले के भारत को समझना है तब हमें प्रेमचंद को पढ़ना ही होगा. यदि मनुष्य साहित्य से अपने को वंचित कर रहा है तो वह अपने को मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं है. उक्त बातें कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो पुष्पा रानी ने कहीं. प्रेमचंद जयंती माह के उपलक्ष में एमयू के हिंदी विभाग द्वारा आयोजित ””साहित्य की मशाल और हिंदी समाज”” विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में उन्होंने अपने विचार व्यक्त किये. उन्होंने प्रेमचंद के उस कथन को भी याद किया जहां वे साहित्य को राजनीति से आगे की मशाल होने का आह्वान करते हैं. समाज भाषा और साहित्य से हीन होकर राजनीति से अत्यधिक प्रेरित हो रहा है, इसलिए आज समाज में संवेदनहीनता की स्थिति बढ़ रही है. प्रेमचंद के सभी पात्र आज भी अलग रूपों में अपनी प्रासंगिक उपस्थिति दर्ज कराते नजर आते हैं. एमयू स्थित हिंदी विभाग के पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष प्रो विनय कुमार ने अपने वक्तव्य में प्रेमचंद को संकीर्ण दायरे से मुक्त होकर देखने-समझने की बात कही. जेडी वीमेंस कॉलेज की पूर्व आचार्य प्रो उषा सिंह ने प्रेमचंद की विभिन्न रचनाओं के माध्यम से साहित्य और समाज के अंर्तसंबंध को रेखांकित किया. वरिष्ठ आचार्य प्रो सुनील कुमार ने प्रेमचंद को नित नवीन दृष्टि से देखने का आग्रह किया, भले ही उन पर काफी विचार-विमर्श हो चुका हो. उन्होंने कहा कि आज के अनेक विमर्शों के गहरे संकेत प्रेमचंद की रचनाओं में स्पष्ट दृष्टिगोचर होते हैं. सद्गति, दूध का दाम, पूस की रात, कफन , रंगभूमि, गोदान आदि रचनाएं इसकी गवाह हैं. अतिथियों का स्वागत हिंदी-मगही विभागाध्यक्ष सह डीएसडब्ल्यू प्रो ब्रजेश कुमार राय ने अंगवस्त्र और पुष्पगुच्छ प्रदान कर किया. उन्होंने स्वागत और परिचय वक्तव्य भी दिया. मंच संचालन डॉ परम प्रकाश राय ने और आभार ज्ञापन डॉ आनंद कुमार सिंह ने किया. इस अवसर पर सहायक परीक्षा नियंत्रक डॉ राकेश कुमार रंजन, सहायक आचार्य डॉ अम्बे कुमारी, डॉ किरण कुमारी और मीनाक्षी, बंटी, प्रदीप, प्रियंका, धनंजय आदि विद्यार्थी भी उपस्थित रहे. मौके पर परवेज, मुन्ना, इंद्रजीत, रोहित आदि शिक्षकेतर कर्मचारी भी मौजूद थे.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है