Weather News : मानसून की बारिश साल 2024 में डरा रही है. बारिश इतनी भयावह तरीके से हो रही है कि जलप्रलय जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई है. बिहार, झारखंड, गुजरात, महाराष्ट्र, केरल, दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा में भी भारी बारिश हुई है, जिसकी वजह से आम जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है. पहाड़ी राज्यों जिसमें हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड प्रमुख हैं, वहां भारी बारिश की वजह से भूस्खलन बड़ी समस्या बनकर उभरी है. देश में बारिश की वजह से बाढ़ आना कोई नई बात नहीं है, कई राज्य हर वर्ष भारी बारिश की वजह से बाढ़ के शिकार बनते हैं, परेशानी है अनियमित बारिश, एकाएक अत्यधिक बारिश, बादल फटने की स्थिति इत्यादि. अगस्त महीने में मानसून ने कई राज्यों में जलप्रलय जैसी स्थिति उत्पन्न की. गुजरात और महाराष्ट्र अभी उसी तरह की स्थिति में हैं और अगस्त के अंतिम तीन-चार दिन इनके लिए और भी ज्यादा भारी साबित होने वाले हैं.
मानसून का पैटर्न बिगड़ा
मौसम के स्वभाव में आए इस विनाशकारी बदलाव ने धरती पर कई प्राणियों के लिए जीवन दूभर कर दिया है. मानसून का पैटर्न इतना बदल गया है कि किसान परेशान हैं. आमतौर पर जून से शुरू होकर मानसून सितंबर तक सक्रिय रहता था, लेकिन अब मानसून के आगमन में देरी हो रही है और अगस्त-सितंबर में भारी बारिश दिख रही है और बारिश का मौसम नवंबर तक खिंच जा रहा है. क्लाइमेट चेंज के कारण और उसके प्रभावों पर रिसर्च करने वाली संस्था आईपीसीसी ने भी अपनी नवीनतम रिपोर्ट में यह कहा है कि भारत में मौसम का मिजाज जिस तरह से बिगड़ा है और मानसून का पैटर्न बुरी तरह प्रभावित हुआ है, वह आने वाले समय में और खतरनाक हो सकता है, क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव विकासशील देशों पर सबसे ज्यादा देखने को मिलता है. जबकि सच्चाई यह है कि ग्लोबल वार्मिंग के लिए विकसित देश ज्यादा जिम्मेदार हैं, लेकिन उन्होंने अपने यहां मौसम के प्रभाव से निपटने के लिए बंदोबस्त करके रखा है.
Flash flood की स्थिति से गुजर रहा है देश
पर्यावरणविद् डाॅ सीमा जावेद का कहना है कि देश इन फ्लैश फ्लड ( Flash flood) जैसी स्थिति से गुजर रहा है. फ्लैश फ्लड यानी अचानक अत्यधिक बारिश से पैदा हुई बाढ़ की स्थिति. इसी तरह की स्थिति से केरल का वायनाड प्रभावित हुआ. उत्तराखंड में भी यह स्थिति देखने को मिली. कई राज्यों में भी फ्लैश फ्लड दिख रहा है. फ्लैश फ्लड यानी अचानक अत्यधिक बारिश की वजह हिंद महासागर के पानी का औसत से अधिक गर्म होना है. आईपीसीसी ने भी अपनी रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया है कि हिंद महासागर औसत से अधिक गर्म हो रहा, जिसकी वजह से वाष्पीकरण ज्यादा हो रहा है. वाष्पीकरण (Evaporation) यानी समुद्र के पानी का वाष्प बनना. जब समुद्र का पानी ज्यादा गरम हो रहा है तो वाटर वेपर भी ज्यादा बन रहा है और यह वाटर वेपर काॅलम कहीं भी बरस रहा है. चूंकि इस काॅलम में पानी की मात्रा बहुत अधिक होती है, इसलिए जब बारिश होती है, तो वह अतिवृष्टि की स्थिति उत्पन्न करती है, जो बादल फटने जैसी होती है.
बर्बाद हो रहा है बारिश का पानी, बढ़ेगा पेयजल संकट
अत्यधिक बारिश से जहां मानव जीवन अस्त-व्यस्त होता है, वहीं इसका कोई फायदा भी नहीं होता है, क्योंकि यह पूरा पानी बह जाता है, इससे ना तो ग्राउंड वाटर रिचार्ज होता है और ना ही इससे खेती को कोई फायदा होता है. चूंकि मानसून का पूरा पैटर्न बदला हुआ है, लेकिन हमारे देश के किसान अभी भी पुराने पैटर्न में ही खेती कर रहे हैं इसलिए उन्हें बहुत नुकसान होता है. कभी सुखाड़ तो कई अतिवृष्टि से बाढ़ उन्हें परेशान करता है. हमारे देश में बारिश के पानी को एकत्र करने की कोई योजना नहीं है और ना इसपर कोई काम ही हो रहा है. शहरी इलाके इस तरह बसाए गए हैं जहां ना तो नाली की उचित व्यवस्था है और ना ही वाटर हार्वेस्टिंग ही हो रहा है. इसलिए यह अतिवृष्टि जो जल प्रलय जैसी है वो सिर्फ और सिर्फ नुकसान कर रही है. कुछ समय में जब बारिश रूक जाएगी तो हमें पानी की संकट, खासकर पीने के पानी की समस्या होगी.
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ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं और नदियों में पानी बढ़ रहा है. ग्रामीण इलाके तो बाढ़ जैसी समस्या को झेल लेते हैं, लेकिन शहरी पर इसका बहुत बुरा प्रभाव दिखता है. क्लाइमेंट चेंज के परिणाम इंसान के अस्तित्व पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं और आने वाले समय में मौसम का बदलाव विनाशकारी होता जाएगा, इसमें कोई संदेह नहीं है.
अत्यधिक गर्मी की वजह से हो रही है विनाशकारी बारिश
पर्यावरणविद और क्लाइमेट कहानी के संचालक निशांत सक्सेना का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में हम मौसम के पैटर्न में जो बदलाव देख रहे हैं उसकी वजह ग्लोबल वार्मिंग है. अतिवृष्टि भी उसी का परिणाम है. एक रिसर्च में इस बात का खुलासा हो चुका है कि जब तापमान में एक डिग्री की वृद्धि होती है तो हवा में पानी को सोखने की या होल्ड करने की क्षमता सात प्रतिशत तक बढ़ जाती है. इसका अर्थ यह हुआ जितनी गर्मी पड़ेगी उसी अनुपात में बारिश में भी ज्यादा होगी. मौसम किस तरह का होगा यह हवाओं के मूवमेंट से तय होता है. वायुमंडल का जो ऊपरी सतह है वह हवाओं के रुख को तय करता है. मौसम गर्म होगा तो वायु गर्म होकर ऊपर उठेगी और निम्न दाब का क्षेत्र बनेगा, जिसमें आकाश में बादल छाए रहेंगे और मौसम में आर्द्रता रहेगी जबकि मौसम ठंडा रहने से उच्च दाब का क्षेत्र बनता है और स्पष्ट एवं स्वच्छ आकाश होता है.
काम के घंटों का हो रहा है नुकसान
1976 के बाद से मौसम पर इंसानों के क्रियाकलापों की वजह से कई तरह के दुष्प्रभाव पड़े हैं. कभी हीट वेव का खतरा, कभी बहुत ठंड तो कभी अत्यधिक बारिश. इन सबका प्रभाव ना सिर्फ भौगोलिक या विज्ञान के जरिए से महत्वपूर्ण है बल्कि इसके सामाजिक और आर्थिक परिणाम भी हैं. अगर अत्यधिक बारिश होती है तो बाजार पर प्रभाव पड़ता है. इंसान की प्रोडक्टविटी पर प्रभाव पड़ता है. ग्लोबल वार्मिंग भारत में आर्थिक उत्पादकता को कई तरीकों से गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है. बढ़ते तापमान के कारण श्रम उत्पादकता में गिरावट आ रही है, जिससे विनिर्माण क्षेत्र में वार्षिक उत्पादन में प्रत्येक डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि पर लगभग 2% की कमी हो रही है. अत्यधिक गर्मी और आर्द्रता के कारण 2030 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) पर प्रभाव पड़ेगा क्योंकि काम के घंटों का नुकसान होगा. इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन कृषि उत्पादन में बाधा उत्पन्न कर रहा है, जो अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिससे अगले 30 वर्षों में GDP में 3% की कमी हो सकती है. कुल मिलाकर, जलवायु परिवर्तन कृषि और औद्योगिक क्षेत्रों दोनों के लिए गंभीर जोखिम पैदा कर रहा है, जो आर्थिक विकास को प्रभावित कर सकता है.
सच्चाई यह है कि जो एक्ट्रीम वेदर कंडीशन आज पूरा देश झेल रहा है हम उसके लिए तैयार नहीं है. आपदा आती है, तो उससे कैसे निपटा जाए यह हम नहीं जानते बस दुष्परिणाम दिखने लगते हैं. एक्ट्रीम वेदर से निपटने के तरीके हमें ईजाद करने होंगे क्योंकि क्लाइमेट चेंज तो हो रहा है और होगा, लेकिन उसके असर को कम कैसे किया जाए यह सबसे बड़ी चिंता है.