सुमित/अरशद, बारियातू . कहते हैं कि जिंदगी भी कई रंग दिखाती है. प्रखंड के टोंटी पंचायत अंतर्गत इटके गांव स्थित कटहल टोला से जिंदगी की एक अजीबो गरीब दास्तां सामने आयी है. यहां रहनेवाले 70 वर्षीय बिगन पाहन पिछले 42 वर्ष से अपने एक कटे हाथ को जतन से बक्से में संभाल कर रखे हुए है. कभी-कभार वे बक्सा खोलते हैं और कटे हुए हाथ की साफ-सफाई कर वहीं रख देते हैं. आश्चर्य की बात यह है कि अपने हाथ के उक्त हिस्से को बिगन ने खुद ही कुल्हाड़ी से काटकर अलग किया था. बिगन पाहन ने बताया कि करीब 42 वर्ष पहले वे बारा जंगल में जलावन लेने गये थे. लकड़ी काटने के दौरान पेड का एक बड़ा हिस्सा उसके दाहिने हाथ पर गिरा, जिससे हाथ उसके नीचे दब गया. बायें हाथ से उन्होंने उस लकड़ी को हटाने का काफी प्रयास किया, पर दबा हुआ हाथ निकल नहीं पा रहा था. वे अकेले जंगल में पड़े थे. शाम होता देख उसकी आंख से आंसू आ गये. उन्हें कोई मदद नहीं मिल रही थी. इसके बाद उन्होंने कुल्हाड़ी से दबे हाथ (कलाई से ऊपर का हिस्सा) को काटकर अलग कर दिया. इसके बाद किसी प्रकार लकड़ी को हटाकर कटे हाथ को उठाया. वह काफी कुचल गया था. कटे हाथ से काफी खून बह रहा था. दुधलर लरी (एक प्रकार का जंगली लता) से अपने हाथ को बांध लिया. कटे हाथ के हिस्से को लेकर घर आया. इसके बाद परिजन मुझे लेकर बालूमाथ अस्पताल ले गये. वहां डॉ गुप्ता ने इलाज किया. 42 दिन के बाद मुझे अस्पताल से छुट्टी मिली थी. तब से आज तक अपने हाथ को मैंने संभाल कर रखा है. बिगन ने बताया कि उन्होंने अपने सभी परिजनों को कहा है कि मृत्यु के बाद मेरे इस हाथ के हिस्से का भी अंतिम संस्कार कर देना.
नहीं मिलती विकलांगता व वृद्धा पेंशन
बिगन ने बताया कि वह एक ही हाथ से मेहनत-मजदूरी कर पत्नी फुदकी देवी, पुत्र विश्वनाथ गंझू, लालदीप गंझू, संदीप गंझू, पुत्री कौशीला व चिंता कुमारी का लालन-पालन व शादी-विवाह किया. आज तक मुझे विकलांगता पेंशन नहीं मिलता. बताया कि पत्नी फुदकी देवी (65 वर्ष) को भी वृद्धा पेंशन नहीं मिलता. इसके लिए कई बार आवेदन दे चुका हूं. प्रभात खबर के माध्यम से उन्होंने उपायुक्त गरिमा सिंह व सिविल सर्जन अवधेश कुमार सिंह से हाथ की सर्जरी व पेंशन दिलाने की मांग की है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है