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Haritalika Teej: हरितालिका तीज पर 16 श्रृंगार और पारंपरिक परिधान का क्या महत्व है?

Haritalika Teej: हरितालिका तीज एक महत्वपूर्ण हिन्दू पर्व है, जिसमें महिलाएं अपने सुहाग की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं. इस लेख में जानें इस पर्व का धार्मिक महत्व, पारंपरिक परिधानों का महत्व, और 16 श्रृंगार का विशेष महत्त्व.

Haritalika Teej: हरितालिका तीज हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे मुख्य रूप से महिलाएं मनाती हैं। यह पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के प्रेम और समर्पण का प्रतीक है. हरितालिका तीज का व्रत रखने वाली महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं. इस दिन महिलाएं उपवास रखती हैं और भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं.इस साल हरितालिका तीज का पर्व 6 सितंबर को मनाया जाएगा. इस दिन व्रत रखने वाली महिलाओं के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 6:02 बजे से शुरू होकर 8:33 बजे तक रहेगा. यह समय 2 घंटे 31 मिनट का है, जो पूजा और अन्य धार्मिक कार्यों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है.

हरितालिका तीज की कथा और महत्व

हरितालिका तीज की कथा के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया. हरितालिका तीज का व्रत उसी कठिन तपस्या का प्रतीक है, जिसे माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए किया था. इस दिन महिलाएं माता पार्वती की तरह कठोर उपवास रखकर भगवान शिव की पूजा करती हैं, ताकि उन्हें अपने जीवनसाथी का सच्चा प्रेम और सुख मिल सके.

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पारंपरिक परिधान और श्रंगार का महत्व

आपने कभी सोचा है कि इस आधुनिक युग में भी हम पारंपरिक परिधान क्यों पहनते हैं? पूजा-पाठ में पारंपरिक कपड़े पहनने की अपनी अलग ही महत्ता है. पारंपरिक परिधान न केवल हमारी संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक होते हैं, बल्कि वे हमें अपनी जड़ों से भी जोड़े रखते हैं. हरितालिका तीज के दिन महिलाएं साड़ी, लहंगा, और अन्य पारंपरिक परिधानों में सजी-धजी होती हैं. इस दिन का विशेष श्रंगार भी बहुत महत्व रखता है. सिंदूर, चूड़ियां, बिंदी, मेंहदी, और आलता जैसी चीजें इस दिन के श्रंगार का हिस्सा होती हैं. यह सब न केवल सौंदर्य बढ़ाने के लिए होता है, बल्कि यह भगवान शिव और माता पार्वती के प्रति समर्पण और श्रद्धा का प्रतीक भी है.

पारंपरिक तरीके से पूजा का महत्व

हरितालिका तीज पर पारंपरिक तरीके से तैयार होकर पूजा करने का एक विशेष महत्व होता है. पारंपरिक परिधानों और श्रंगार के साथ पूजा करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक शांति मिलती है और वह अपनी संस्कृति से गहरे जुड़ाव का अनुभव करता है. यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संजोने और उसे अगली पीढ़ी तक पहुँचाने का भी एक माध्यम है.

सुहाग की निशानियां और 16 श्रृंगार का महत्व

हरितालिका तीज के दिन महिलाओं के लिए 16 श्रृंगार का विशेष महत्व होता है. यह श्रृंगार न केवल उनके सौंदर्य को निखारता है, बल्कि यह उनके सुहाग की निशानी के रूप में भी जाना जाता है. इसमें सिंदूर, मंगलसूत्र, चूड़ियां, बिंदी, मेंहदी, काजल, नथ, पायल, और अन्य आभूषण शामिल हैं. यह सब सुहागिन महिलाओं के लिए अत्यंत पवित्र माने जाते हैं.

हरितालिका तीज का व्रत और पूजा किसलिए किया जाता है?

हरितालिका तीज का व्रत और पूजा भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है. इस व्रत को करने से महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं. यह व्रत माता पार्वती की कठिन तपस्या की याद दिलाता है, जिससे उन्हें भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त हुआ.

हरितालिका तीज का शुभ मुहूर्त 2024 में कब है?

2024 में हरितालिका तीज का शुभ मुहूर्त 6 सितंबर को सुबह 6:02 बजे से 8:33 बजे तक है। इस समय के दौरान पूजा-अर्चना और व्रत का अनुष्ठान करना अत्यधिक शुभ माना जाता है

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