Haryana Politics: जिन राज्यों में चुनाव की घोषणा हो चुकी है और जिन राज्यों में चुनाव इस साल के अंत तक होना है, उसमें हरियाणा ऐसा राज्य है, जिसमें भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला दिख रहा है. यही कारण है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों दल इस चुनाव में जी जान से जुट चुके हैं. हालांकि जिन राज्यों में भाजपा और कांग्रेस का सीधा मुकाबला होता है, उन राज्यों में भाजपा फायदे में रहती है. हालांकि इस बार ना ही भाजपा आश्वस्त दिख रही है, और ना ही कांग्रेस चिंतित.
जाट बनाम गैर जाट मुद्दा
हरियाणा में हमेशा की तरह इस बार भी जाट बनाम गैर जाट मुद्दा हावी है. यहां लगभग 23 फीसदी जाट बिरादरी है, जो लगभग 35 विधानसभा क्षेत्रों पर अपना प्रभाव रखती है. दलित आबादी का प्रतिशत भी लगभग इतनी ही है. भाजपा ने गैर जाट जाति की आबादी को बढ़ावा देकर सत्ता पर काबिज हुई और आगे भी वह इस प्रयोग को दोहरायेगी. लेकिन चुनाव में सफल होने के लिये और कई फैक्टर है, जिसपर दोनों दल मेहनत कर रहे हैं. अलग-अलग समूह और खास वर्ग के नेताओं को अपने पाले में करने का दांव भी चला जा रहा है. अंतिम समय तक कौन दल कितना सफल होता है और इसका लाभ किसे मिलता है, यह तो चुनाव परिणाम ही बताएगा.
किसान सरकार से अब भी नाराज
हरियाणा को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों कॉन्फीडेंट नहीं है. भाजपा जहां एंटी इनकंबेंसी से अब तक उबर नहीं सकी है, वहीं कांग्रेस में अंतर्कलह चरम पर है. लोकसभा चुनाव से पूर्व ही इसका असर कम करने के लिये वर्तमान मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की जगह पर नायब सिंह सैनी को सीएम बनाया गया. तब भाजपा ने बहुत ही नुकसान होने का अनुमान लगाया गया था, लेकिन उस नुकसान को काफी हद तक कम कर लिया गया और लोकसभा की 10 में से पांच सीट बचाने में भाजपा कामयाब रही. वर्तमान सरकार ने भी कई घोषणाएं की है. हरियाणा ऐसा पहला राज्य है, जहां पर सभी फसलों पर एमएसपी देने की घोषणा की गयी है, लेकिन इसका असर अभी किसानों पर दिख नहीं रहा है. किसान सरकार से अब भी नाराज चल रहे हैं. हरियाणा बॉर्डर पर किसान सरकार के खिलाफ अपना धरना प्रदर्शन जारी रखे हुए हैं. भाजपा सांसद कंगना रनौत के किसानों पर दिये गये बयान से पार्टी ने किनारा करते हुये रनौत को इस तरह के बयानबाजी पर कार्रवाई करने तक की बात कही.
अंतर्विरोध से जूझ रही कांग्रेस
कांग्रेस में तीन खेमा सक्रिय है. पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा,कांग्रेस महासचिव रणदीप सुरजेवाला और शैलजा. पार्टी आलाकमान तमाम कोशिशों के बाद भी इन तीनों के बीच के गुटबाजी को अब तक खत्म नहीं करा पाया है. कांग्रेस को भय है कि अंतर्कलह की वजह से तमाम सर्वे में भाजपा से आगे रही कांग्रेस अपनी सीट न गंवा दे और फिर उसे अगले पांच साल तक कुर्सी का इंतजार करना पड़े. हुड्डा साधन संपन्न और संगठन में पकड़ रखते हैं. सुरजेवाला गुट नये लोगों को मौका देने की वकालत कर रहा है. वहीं लोकसभा चुनाव में दलित वर्ग का वोट कांग्रेस को ज्यादा मिलने की दुहाई देकर शैलजा खुद को सीएम के रूप में प्रोजेक्ट करने की बात कह रही है. भाजपा भी कांग्रेस की इसी अंतर्कलह का फायदा उठाने की कोशिश कर रही है, तभी तो कांग्रेस से सवाल करती है कि क्या कांग्रेस किसी दलित को सीएम बनाएगी.
डिसाइडिंग फैक्टर का काम करेंगे अन्य दल
हरियाणा में भाजपा कांग्रेस के आलावा भी कई दल है, जो डिसाइडिंग फैक्टर का काम करते हैं. राज्य में पहले संयुक्त मोर्चा की सरकार बनती रही है. लेकिन वर्तमान में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही लग रहा है. जेजीपी नेता दुष्यंत चौटाला ने पिछली बार भाजपा सरकार बनाने में काफी अहम रोल अदा किया था. लेकिन इस बार भाजपा ने उसे बहुत ही कमजोर कर दिया है. इनलो, बसपा के साथ चुनाव लड़ रही है. वहीं आम आदमी पार्टी अकेले चुनाव लड़ रही है. इन दलों का वोट भी भाजपा और कांग्रेस के जीत-हार में अहम भूमिका निभाएगा.