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100 में मात्र 13.8 बच्चों की ही मिलता है पौष्टिक आहार

हर दूसरा बच्चा अंडरवेट, कुपोषण के मामले में कटिहार की स्थिति गंभीर

सूरज गुप्ता, कटिहार. केंद्र व राज्य सरकार के निर्देश पर रविवार से राष्ट्रीय पोषण माह की शुरुआत की जायेगी. केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने वर्ष 2018 से सितंबर को राष्ट्रीय पोषण माह के रूप में मनाने का फैसला लिया. इस दौरान समेकित बाल विकास सेवाएं (आइसीडीएस) व स्वास्थ्य महकमे की ओर से लोगों को जागरूक करने के लिए कई तरह के आयोजन होंगे.

जिले में 2216 आंगनबाड़ी केंद्र हैं भवनहीन

बच्चों के समग्र विकास का केंद्र सरकारी स्तर पर आंगनबाड़ी केंद्र को ही माना गया है. महिलाएं जब गर्भवती होती हैं, उसके बाद से बच्चे के जन्म लेने के छह वर्ष तक बच्चों की देखभाल के लिए आंगनबाड़ी केंद्र सरकारी टूल के रूप में काम करते हैं. हालांकि कटिहार जिले के अधिकांश आंगनबाड़ी केंद्र झोपड़ी में संचालित होते हैं. जिले में कुल 3399 आंगनबाड़ी केंद्र स्वीकृत हैं. इसमें 3263 आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हैं. संचालित आंगनबाड़ी केंद्रों में से 1047 को अपना भवन है. यानी 2216 आंगनबाड़ी केंद्र भवनहीन है. झोपड़ी में संचालित आंगनबाड़ी केंद्र के जरिये ही कुपोषण से जंग का दावा किया जा रहा है. जबकि पोषण के मामले में कटिहार की स्थिति अत्यंत खराब है. नवजात शिशु, बच्चे, किशोरी व महिलाओं में न केवल पोषण के प्रति समझ कम है, बल्कि कुपोषण के शिकार भी है. केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से जारी नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे- पांच की रिपोर्ट के मुताबिक कटिहार जिले में अंडरवेट बच्चों की तादाद बढ़ गयी है.

जिले का हर दूसरा बच्चा अंडरवेट

रिपोर्ट के मुताबिक, कटिहार जिले का हर दूसरा बच्चा अंडरवेट है. साथ ही महिलाओं में खून की कमी के मामले में भी वृद्धि हो गयी है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे एनएफएचएस चार की तुलना में एनएफएचएस पांच की रिपोर्ट के मुताबिक पोषण के मामले में कटिहार की स्थिति अत्यंत खराब है. नवजात शिशु, बच्चे, किशोरी व महिलाओं में न केवल पोषण के प्रति समझ कम है. बल्कि कुपोषण के शिकार भी हैं. जिले के 6-23 महीने की आयु समूह के 100 में मात्र 13.8 बच्चे को ही पौष्टिक आहार मिल पाता है. जिले में बच्चों के पोषण एवं स्वास्थ्य की स्थिति राष्ट्रीय मानक की तुलना में ठीक नहीं है. यद्यपि इस सर्वे के अनुसार पिछले सर्वे की तुलना में कई सूचकांक पर स्थिति में सुधार पायी गयी है. एनएफएचएस- चार के अनुसार जिले में स्तनपान करने वाले छह से 23 महीने के बच्चों में से मात्र 13.6 प्रतिशत को ही पर्याप्त पौष्टिक आहार प्राप्त हो रहा है.

दो तिहाई बच्चे में है खून की कमी

एनएफएचएस-पांच के अनुसार, 6-59 महीने की उम्र में लगभग दो तिहाई बच्चे यानी 65.6 प्रतिशत बच्चे एनीमिया से ग्रसित हैं. जबकि 2015-16 में जारी एनएफएचएस चार की रिपोर्ट में इस आयुवर्ग के 61.3 प्रतिशत बच्चे एनीमिया से पीड़ित थे. दूसरी तरफ 15-49 आयु वर्ग समूह की 61.0 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं. चार-पांच साल पहले 57.8 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं एनीमिया से ग्रसित थीं. यह इस बात की ओर इशारा करता है कि पीढ़ी दर पीढ़ी कुपोषण चक्र बना हुआ है. इस रिपोर्ट के अनुसार बिहार में केवल 16.2 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं ने गर्भावस्था के दौरान सौ दिनों या उससे अधिक दिनों तक आयरन और फोलिक एसिड की दवा का सेवन किया. इस सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, बच्चों के बीच कुपोषण की जानकारी का आधार उम्र के अनुसार कम ऊंचाई, ऊंचाई के अनुसार कम वजन, उम्र के अनुसार कम वजन के आधार पर बच्चों के कुपोषण का आकलन किया गया है. पिछले सर्वे की तुलना इस बार पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों के वजन में भी गिरावट दर्ज की गयी है. पिछले सर्वे में कटिहार जिले में 45.1 प्रतिशत बच्चे का वजन निर्धारित वजन से कम था. लेकिन इस सर्वे के अनुसार इस जिले में में 48.1 प्रतिशत बच्चे कम वजन वाले है.

सेवाओं को मजबूती से लागू करने की जरूरत

बच्चों के खराब पोषण की स्थिति के कारणों पर प्रकाश डालते हुए बाल अधिकार कार्यकर्ता राजीव रंजन ने कहा कि बाल कुपोषण बच्चों के जीवन में बहुत बड़ी क्षति है. यह किशोरावस्था व वयस्क अवस्था पर प्रभाव डालता है. आंगनबाड़ी केंद्रों से गर्भवती व शिशुवती महिलाओं को पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक आहार कम ही मिल पाता है. आंगनबाड़ी केंद्रों की आधारभूत संरचना में भी काफी कमी है. इसलिए नीतियों को पारदर्शी और योजनाओं में और अधिक बजट को बढ़ाकर कुपोषण से संबंधित सेवाओं को मजबूत करने की आवश्यकता है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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