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Chanakya Niti: जानिए चाणक्य के अनुसार माता-पिता को अपने बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए

Chanakya Niti: इस लेख में आपको यह बताने का प्रयास किया जा रहा है कि आचार्य चाणक्य के अनुसार किसी बच्चे के जीवन के हर पड़ाव पर, माता-पिता को उसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए.

Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र के मध्यम से कई ऐसी बातें कहीं हैं, जिनमें उन्होंने यह बताने का प्रयास किया है कि मनुष्यों को अपना जीवन कैसे व्यतीत करना चाहिए, उन्हें क्या चीजें करनी चाहिए और किन चीजों से बिल्कुल दूर रहना चाहिए. आचार्य चाणक्य की यही बातें कई मनुष्यों का मार्गदर्शन करती हैं. समाज में रिश्तों को कैसा होना चाहिए इस बारे में भी आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों में बहुत कुछ लिखा है, माता-पिता का व्यवहार अपने बच्चों के प्रति कैसा होना चाहिए इस बात की शिक्षा भी आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों के मध्यम से दी है. इस लेख में आपको यह बताने का प्रयास किया जा रहा है कि आचार्य चाणक्य के अनुसार किसी बच्चे के जीवन के हर पड़ाव पर, माता-पिता को उसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए.

पांच साल तक ऐसा रखें व्यवहार

आचार्य चाणक्य का यह मानना है कि जब बच्चा अपने बाल्यकाल में रहता है यानि उसकी उम्र पांच साल तक की होती है, तब तक माता-पिता को अपने बच्चों को खूब प्यार और दुलार के साथ पालना चाहिए, क्योंकि यह वह समय होता है, जब बच्चे को केवल प्यार की भाषा ही समझ आती है. इस अवस्था में बच्चे को ज्यादा डांटने का या उसके साथ सख्ती से पेश आने का कोई मतलब नहीं होता है.

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दस साल तक ऐसे आयें पेश

आचार्य चाणक्य के नीति शास्त्र के अनुसार जब बच्चा पांच साल से बढ़ कर दस साल के बीच हो तो माता-पिता को उनके साथ थोड़ी सख्ती से पेश आना चाहिए, यानि उन्हें छड़ी की मार से डराना चाहिए, क्योंकि यही वह समय होता है जब बच्चों के अंदर संस्कार की बीज बोए जाते हैं और अगर इस समय उन्हें सही और गलत का मतलब ना समझाए जाए तो, उनका भविष्य में अंधकारमय हो सकता है.

16 साल तक ऐसा रखें व्यवहार

आचार्य चाणक्य का मनना है कि जब बच्चे की उम्र 10 साल से 16 साल के बीच हो तो माता-पिता को उनके साथ दोस्त की तरह व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि ये उम्र किसी भी व्यक्ति के जीवन का वह समय होता है, जब उसे अच्छे मित्रों की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, इसलिए माता-पिता को यह कोशिश करनी चाहिए कि अपने बच्चे के जीवन के इस पड़ाव में वो उनके दोस्त बनकर रहें, ताकि बच्चे उनके साथ अपनी सारी परेशानी बिना किसी हिचक के बांट सकें.

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