कोलकाता. लोगों की नाराजगी और आंदोलन से परेशान सत्तापक्ष की ओर से अब लोगों को भी निशाना बनाया जा रहा है. अपनी टिप्पणी के लिए तृणमूल कांग्रेस की सांसद काकोली घोष दस्तीदार को अपने बयान के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी पड़ी.
वहीं, विवादास्पद बयान देने के कारण अशोकनगर से तृणमूल नेता अतीश सरकार को पार्टी ने एक साल के बहिष्कृत कर दिया. लेकिन यह सूची छोटी होने का नाम नहीं ले रही. न ही सरकार या फिर सत्तापक्ष की ओर से इस बारे में पहल की जा रही है. अपशब्द कहनेवालों की सूची लगातार लंबी होती जा रही है. बांकुड़ा के सांसद अरूप चक्रवर्ती, उत्तर बंग विकास मंत्री उदयन गुहा, उत्तरपाड़ा के विधायक कंचन मल्लिक और अभिनेत्री तथा सोनारपुर की विधायक लवली मित्रा के बयानों ने तृणमूल कांग्रेस को परेशान कर रखा है. जनता में इससे पार्टी की छवि खराब हो रही है. इस बात को तृणमूल कांग्रेस की पहली कतार के नेता भी मान रहे हैं. लेकिन इस पर लगाम लगाने या फिर रोकने का रास्ता वे लोग खोज नहीं पा रहे हैं. इधर, आरजी कर को लेकर नागरिक आंदोलन से लगातार सरकार व पार्टी पर दबाव बढ़ रहा है. आंदोलन मुहल्लों के आम लोगों के बीच पहुंच गया है. इससे सत्तापक्ष में बेचैनी साफ दिख रही है. इस बीच तृणमूल सांसद अभिषेक बनर्जी ने एक्स हैंडल पर मेसेज देते हुए पार्टी नेताओं को कहा है कि वे आरजी कर मसले पर सिविल सोसाइटी को लेकर बयानबाजी न करें.वाममोर्चा के शासनकाल में भी बनी थी ऐसी ही स्थिति
उल्लेखनीय है कि वाममोर्चा सरकार के विदाई का जब वक्त आया था, तो उस समय सिंगूर-नंदीग्राम, रिजवानुर रहमान की मौत जैसे कई मुद्दे उभर कर सामने आये थे. उस वक्त भी लोगों ने नागरिक आंदोलन किया था. जो बाद में राजनीतिक आंदोलन में बदल गया था. उस वक्त माकपा के दिवंगत नेता अनिल बसु, विनय कोनार व जिला के नेता अपने कार्यकर्ताओं को चंगा करने के लिए अपशब्दों का सहारा लेते थे. उसका असर क्या हुआ, सब जानते हैं. अब वही दौर आरजी कर कांड के बाद देखने को मिल रहा है. आम लोग खुद को इस आंदोलन से जुड़ा महसूस कर रहे हैं. नागरिक आंदोलन जिस स्तर पर पहुंचा है, वह हाल के दिनों में देखने को नहीं मिला था. राजनीतिक दल अपने स्तर पर आंदोलन तो कर ही रहे हैं, लेकिन आम लोगों जिस तरह से खुद सड़कों पर उतर रहे हैं, वैसा कम ही देखने को मिलता है. 14 अगस्त को रात दखल के बाद यह आंदोलन लगातार तेज हो रहा है. लोग ””””वी वांट जस्टिज”””” का नारा लगा रहे हैं. लोग खुद को राजनीतिक नारेबाजी से दूर रख रहे हैं. तकरीबन दो हफ्ते का वक्त हो गया है. लोग सवाल कर रहे हैं कि अब तक न्याय क्यों नहीं मिला. ऐसे में सत्तापक्ष द्वारा महिलाओं को धमकी देने व अपशब्द कहने पर तीखी प्रतिक्रिया हो रही है. कुल मिलाकर नागरिक आंदोलन ने राज्य की कमान संभाल रही तृणमूल कांग्रेस को पसोपेश में डाल दिया है. स्थिति से निबटने के लिए तृणमूल कांग्रेस अपने शाखा संगठनों को सड़कों पर उतर कर जनता के भावनाओं का सम्मान करते हुए आंदोलन करने की बात कह रही है. जानकारों का कहना है कि ममता बनर्जी के तीसरे कार्यकाल में जो स्थिति बन रही है, वह वाममोर्चा सरकार की विदाई के वक्त भी बनी थी.
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