Pitru Paksha : पितृपक्ष का जिक्र गरुड़ पुराण में मिलता है. महाभारत के युद्ध में जब लाखो लोग मारे गए और उनका कोई नामलेवा तक नहीं बचा तो भीष्म पितामह ने युद्धिष्ठिर को बुलाकर उनका श्राद्ध करने को कहा. भीष्म पितामह ने उन्हें बताया कि गरुड़ पुराण में यह बताया गया है कि ऋषि नेमि अपने पुत्र के असमय मृत्यु से बहुत दुखी थे और उन्होंने अपने पूर्वजों का आह्वान करना शुरू कर दिया था, तब उनके पूर्वजों ने उन्हें आकर बताया कि तुम्हारा पुत्र पितृ देवों के बीच स्थान प्राप्त कर चुका है. आह्वान के दौरान उन्होंने भोजन भी अर्पित किए थे, उस समय से यह आह्वान पितरों को समर्पित माना गया और यह अवधि पितृ पक्ष का काल है.
क्या है पितृ पक्ष का महत्व?
पितृ पक्ष की अवधि के दौरान यह माना जाता है कि हमारे पूर्वजों भोजन और पानी मांग करने धरती पर आते हैं और जब उनकी यह उम्मीद पूरी होती है तो वे अपने परिजनों को आशीर्वाद देकर जाते हैं. हिंदू धर्म में देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण में पितृ ऋण को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है. माता-पिता किसी व्यक्ति को इस धरती पर लाते हैं और उसे संस्कारों से सुज्जित कर आदर्श मानव बनाते हैं. इसलिए उनका ऋण चुकाना अत्यावश्यक है और पितृपक्ष में पिंडदान करना भी पितृ ऋण चुकाने के कर्मों में शामिल है.
पिंडदान से जुड़ी है गयासुर की कहानी
आचार्य सूर्यनारायण पाठक ने बताया कि गया में ही पिंडदान क्यों किया जाता है इससे गयासुर की कहानी जुड़ी है. गयासुर एक विष्णुभक्त असुर था, वह हमेशा भगवान विष्णु की भक्ति किया करता था. उसकी भक्ति से देवता भयभीत हो गए और भगवान विष्णु के पास पहुंचे. भगवान विष्णु देवताओं के साथ उस स्थान पर गए जहां गयासुर तपस्या कर रहा था. भगवान विष्णु ने उससे तपस्या का कारण पूछा तो उसने यह बताया कि सभी देवताओं और स्थानों से पवित्र होने का आशीर्वाद चाहता है. भगवान ने उसे आशीर्वाद दे दिया. आशीर्वाद पाने के बाद गयासुर ने उसका दुरुपयोग शुरू कर दिया और पापियों को अपने शरीर का स्पर्श करवाकर उन्हें बैकुंठ भेजने लगा. तब यमराज ने ब्रह्मा, विष्णु, महेश से शिकायत की, जिसके बाद योजना बनाकर गयासुर से उसका शरीर यज्ञ के लिए मांगा गया. गयासुर ने अपने शरीर को पांच कोस तक फैलाकर दक्षिण मुख करके लेट गया और उसके शरीर पर यज्ञ हुआ. जिस जगह पर गयासुर लेटा था और यज्ञ हुआ था वह जगह आज का गया शहर है जो बिहार राज्य में स्थित है. जब भगवान विष्णु ने गयासुर के शरीर के टुकड़े किए तो वह विष्णुपद मंदिर में गिरा. गयासुर ने भगवान विष्णु से मृतात्माओं के लिए भी वरदान मांगा, यही वजह है कि जब पूर्वजों के उद्धार के लिए गया में पूजा की जाती है तो वह उसे मोझ की प्राप्ति होती है.
Also Read : झारखंड में बनीं 4-6 लेन सड़कें, जल्द खुलेगा सिरमटोली फ्लाई ओवर, अब रिंग रोड का इंतजार
हिंदू-मुसलमान के बीच क्यों है दीवार, इतिहास में ऐसा क्या हुआ जो अबतक है हावी?
अशुभ नहीं, पितृपर्व है पितृपक्ष
पंडित विष्णु वल्लभ नाथ मिश्र और आचार्य सूर्यनारायण पाठक दोनों ही यह कहते हैं कि पितपक्ष अशुभ नहीं है. पंडित विष्णु वल्लभ मिश्र कहते हैं कि यह पितृपर्व है. इसमें किसी भी तरह के मांगलिक कार्य की कोई मनाही नहीं है. जीतिया जैसा महापर्व इसी अवधि में होता है. चूंकि पितृपक्ष पूर्वजों का काल है उत्सव है इसलिए उस दौरान हम उनपर ज्यादा ध्यान देते हैं बनिस्पत किसी तरह के मांगलिक कार्य को समय देने के. इस काल में पूर्वजों का आदर करना चाहिए. उनके लिए प्रतिदिन भोजन और पानी देना चाहिए, साथ ही उनकी श्राद्ध तिथि के दिन पंडित से पिंडदान का आयोजन करवाना चाहिए.
पिंडदान क्या है?
आचार्य सूर्यनारायण पाठक बताते हैं कि पिंडदान में किसी कुल के वंशज अपने पूर्वजों को भोजन प्रदान करते हैं, इसमें चावल के आटे और तिल का प्रयोग कर गोलाकार आकृति बनाई जाती है, जिसे पिंड कहा जाता है और इसकी पूजा विधि को पिंडदान कहते हैं.यह पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति के लिए किया जाने वाला अनुष्ठान है. पंडित विष्णु का कहना है कि चूंकि यह पितरों का उत्सव है इसलिए प्रतिदिन उनके लिए भोजन और पानी की व्यवस्था करनी चाहिए. जो लोग गया में पिंडदान करना चाहते हैं उन्हें पहले अपने घर पर एकोदिष्ट श्राद्ध करना होता है तभी वह गया में पिंडदान का अधिकारी होता है. एकोदिष्ट श्राद्ध उसी दिन होता है जिस तिथि को व्यक्ति की मौत हुई हो.
Also Read : खुलेआम गला काटकर हुई हत्या, पर ‘प्ली ऑफ एलिबाई’ से मिली बेल, क्या है नियम