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JamshedpurNews : आदिवासी उरांव समाज की युवतियों ने नदी से जावा के लिए बालू का उठाव किया

Jamshedpur News : करम पर्व आदिवासी समाज की सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है. यह त्योहार न केवल प्रकृति के प्रति आदर और आस्था को प्रकट करता है, बल्कि समुदाय के लोगों को एक साथ लाने का अवसर भी प्रदान करता है. इस पर्व के माध्यम से आदिवासी समाज अपने पुराने रीति-रिवाजों और परंपराओं को संजोए रखता है

Jamshedpur News : करम पर्व 14 सितंबर को है. आदिवासी-मूलवासी बहुल इलाकों में करम पर्व को लेकर काफी उत्साह है. समाज के लोगों ने करम देवता की स्वागत की सारी तैयारी शुरू कर दी. घर-आंगन की साफ-सफाई व रंग-रोगन किया जा रहा है. रविवार को सीतारामडेरा आदिवासी उरांव समाज के युवाओं ने सुवर्णरेखा नदी घाट जाकर जावारानी माता के लिए बालू का उठाव किया. इसके अलावा शहर के सटे बिरसानगर, हुरलुंग, गदड़ा, गोविंदपुर, कदमा, शास्त्रीनगर समेत अन्य बस्तियों में युवाओं ने जावा के लिए बालू का उठाव किया. युवतियों ने नदी घाट से बालू का उठाव कई उसमें कई तरह की बीज की बुआई की. युवतियां अब हर दिन जावारानी माता को घर-आंगन में निकालकर सेवा व जागरण करेंगी.

करम पर्व आदिवासी-मूलवासी समुदायों का एक प्रमुख त्योहार है, जिसे खासकर झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, बिहार, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाकों में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है. करम पर्व खेती, प्रकृति और भाईचारे का प्रतीक है, जो मुख्य रूप से करम वृक्ष और उसकी पूजा से जुड़ा हुआ है. इस पर्व का मूल उद्देश्य प्रकृति के प्रति सम्मान प्रकट करना और कृषि कार्यों की सफलता के लिए आशीर्वाद प्राप्त करना है.

त्योहार का महत्व: करम पर्व का विशेष संबंध खेती-बाड़ी से है, और इसे फसल कटाई के समय मनाया जाता है. आदिवासी समाज में करम वृक्ष को पवित्र माना जाता है और इसे कृषि और वनस्पति से जोड़ा जाता है. करम देव को इस वृक्ष का प्रतीक माना जाता है, जो सुख-समृद्धि और अच्छी फसल का आशीर्वाद देते हैं. इस दिन लोग करम वृक्ष की टहनी की पूजा करते हैं और उसे अपने घर या गाँव के पूजा स्थल पर स्थापित करते हैं.

उत्साह और तैयारी: करम पर्व के पहले गांव के लोग बड़े उल्लास के साथ तैयारी करते हैं. महिलाएं खास तौर पर इस पर्व के लिए नए वस्त्र धारण करती हैं और पारंपरिक गीत गाती हैं. युवक और युवतियां सामूहिक रूप से नृत्य और संगीत का आयोजन करते हैं, जिसमें पारंपरिक वाद्ययंत्रों का भी इस्तेमाल होता है. करम नृत्य और गीत इस पर्व की विशेष पहचान हैं, जो जीवन के उल्लास और सामूहिकता का प्रतीक होते हैं.

पूजा विधान: करम पर्व की पूजा विधि बेहद खास होती है. गांव के पुजारी या कोई बुजुर्ग व्यक्ति करम वृक्ष की पूजा करता है. लोग करम देव से प्रार्थना करते हैं कि वह अच्छी फसल और परिवार की समृद्धि का आशीर्वाद दें. पूजा के दौरान चावल, फल, फूल और महुआ का विशेष महत्व होता है, जो प्रकृति और कृषि का प्रतीक होते हैं. पूजा के बाद प्रसाद वितरण किया जाता है और लोग मिलजुल कर पर्व का आनंद लेते हैं.

सांस्कृतिक धरोहर: करम पर्व आदिवासी समाज की सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है. यह त्योहार न केवल प्रकृति के प्रति आदर और आस्था को प्रकट करता है, बल्कि समुदाय के लोगों को एक साथ लाने का अवसर भी प्रदान करता है. इस पर्व के माध्यम से आदिवासी समाज अपने पुराने रीति-रिवाजों और परंपराओं को संजोए रखता है और नई पीढ़ी को इनसे अवगत कराता है. यह पर्व उनकी संस्कृति, प्रकृति प्रेम और सामाजिक सहयोग का प्रतीक है.

वर्तमान संदर्भ में करम पर्व: आधुनिकता के इस दौर में भी करम पर्व अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए है. आज भी आदिवासी-मूलवासी बहुल इलाकों में यह पर्व बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है, जो उनकी संस्कृति, पहचान और सामूहिकता को मजबूती प्रदान करता है.

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