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सतसंबंध होता है जीवन उत्थान का कारण : स्वामी निरंजनानंद

हार योग विद्यालय के परमाचार्य स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने कहा है कि इस वर्ष हम अपने दादा गुरु स्वामी शिवानंद सरस्वती का संन्यास शताब्दी मना रहे हैं. वे कहा करते थे कि सतसंबंध का निर्माण करने के लिए अच्छा बनो, अच्छा करो. यह ही हमारा इस वर्ष का विषय है.

प्रतिनिधि, मुंगेर. बिहार योग विद्यालय के परमाचार्य स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने कहा है कि इस वर्ष हम अपने दादा गुरु स्वामी शिवानंद सरस्वती का संन्यास शताब्दी मना रहे हैं. वे कहा करते थे कि सतसंबंध का निर्माण करने के लिए अच्छा बनो, अच्छा करो. यह ही हमारा इस वर्ष का विषय है. वे पादुका दर्शन संन्यास पीठ में आयोजित श्रीलक्ष्मी नारायण महायज्ञ के पहले दिन समारोह को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि जीवन के उत्थान का कारण ही सतसंबंध होते हैं. यह हर व्यक्ति के जीवन का प्रमुख विषय है. क्योंकि अच्छे संबंध तो हर किसी को चाहिए. लेकिन सामाजिक स्तर पर सतसंबंध का नाम मान-सम्मान व अपेक्षाओं से जुड़ा होता है. भौतिक जगत में इसे खोज पाना बहुत ही कठिन होता है्. उन्होंने कहा कि सतसंबंध का मतलब होता है जो सत्य से जुड़ा हो, जो शाश्वत हो, जो सनातन हो और इसकी शुरूआत तक होती है. जब हम अपना नाता ईश्वर व गुरु से जोड़ते हैं. हमारे हृदय से जो प्रेम उमड़ता है. वह ही इस संबंध को निर्धारित करता है. सभी में ईश्वर की अनुभूति का भाव ही सतसंबंध की अनुभूति कहलाता है. उन्होंने कहा कि संतों के जीवन की प्रेरणा भी यही होती है कि जीवन में अच्छे संबंध की स्थापना करना. सतसंबंध ईश्वर और गुरु के साथ आरंभ होता है. उसमें कोई सकाम भावना नहीं होती, केवल समर्पण की भावना होती है. उन्होंने कहा कि हमारा इस यज्ञ में आने का कारण खुद को ईश्वर व गुरु के साथ जोड़ना है. हमारे मन में यह संकल्प होना चाहिए कि यह यज्ञ ईश्वर का आह्वान नहीं, बल्कि जीवन का उत्सव है. वर्ष का जितना समय शेष है उसमें यह भाव होना चाहिए कि हम अच्छे संबंधों को स्थापित करें. इधर वाराणसी से आये विद्वान आचार्यों ने यज्ञ का प्रारंभ अग्नि स्थापन से किया. बाल योग मित्र मंडल के बच्चों ने कीर्तन की प्रस्तुति की. देश-विदेश से पहुंचे 54 पुरुषों और 54 महिलाओं ने सहस्त्रार्चन में भाग लिया.

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