प्रतिनिधि, मुंगेर. बिहार योग विद्यालय के परमाचार्य स्वामी निरंजनानंद ने कहा कि यज्ञ देवताओं को प्रसन्न करने का साधन है. वे हमें पवित्रता और पूर्णता का अनुभव कराते हैं. जिस स्थान पर यज्ञ होता है वह स्वयं ही आमंत्रण का क्षेत्र बन जाता है. वे सोमवार को श्री लक्ष्मीनारायण महायज्ञ के दूसरे दिन उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि स्वामी सत्यानंद ने यज्ञ का अर्थ बताते हुए कहा था कि यज्ञ शब्द के तीन भाग हैं. ”य ” जिसका अर्थ है उत्पन्न करना, ” ज्ञ” जिसका अर्थ है ग्रहण करना और ”न” जिसका अर्थ है आनंद लेना. श्रीकृष्ण ने भी भगवत गीता में कहा है कि जीवन का प्रत्येक कर्म, प्रत्येक विचार यज्ञ ही है. यह पूरा जीवन ही यज्ञ के समान है. सतसंबंध जो इस वर्ष का मुख्य विषय है पर उस पर बोलते हुए स्वामी निरंजनानंद ने कहा कि अगर हम लोग खुद के साथ सकारात्मक संबंध को स्थापित करेंगे तो हम चिंता व परेशानियों के घेरे से मुक्त हो सकेंगे. जब हम खुद को सकारात्मक भाव से जोड़ेंगे तभी हम अपने आस-पास के लोगों का भी उत्थान कर पायेंगे. तभी हम दूसरों के जीवन में अच्छाई की खोज कर पायेंगे. शिव का संदेश भी तो यहीं है कि अच्छाई, भलाई और सत्य से खुद को जोड़े और एक दिव्य जीवन व्यतीत करें. पिछला वर्ष जो स्वामी सत्यानंद का जन्म शताब्दी वर्ष था और जो सेवा वर्ष के नाम से घोषित किया गया था. इसमें स्वामी जी ने तीन सिद्धांतों को सामने रखा था. वे तीन सिद्धांत थे स्वास्थ्य, प्रसन्नता व सामंजस्य. पूरे विश्व में इन तीनों को आधार रखते हुए अनेकों आउटरिच कार्यक्रम आयोजित किये गये. सत्संग के साथ ही वेदन पूजन किया गया और वाराणसी के विद्वान पंडितों ने श्रीसूक्तमव नारायण सुक्तम से हवन प्रारंभ किया.
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