सुपौल
मनुष्य के शरीर में कोई सुंदरता नहीं होती. सुंदर होता है तो मनुष्य का विचार एवं व्यक्ति के कर्म. इसलिए जीवन में कथा आवश्यक है. कथा हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने का कार्य करता है. यह बातें गांधी मैदान में गणेश महोत्सव के अवसर पर आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन वृंदावन से आयी कथावाचिका देवी मुरलिका गौड़ ने कही. उन्होंने कहा कि यह संसार दुखालय है. यहां दुख ही दुख है. एक वस्तु के अभाव में दूसरे वस्तु की पूर्ति करने की चेष्टा करते रहते हैं. इसी पूर्ति के चक्कर में पूरा जीवन समाप्त हो जाता है. किसी भी सांसारिक प्राणी को अपनी परिस्थिति में पूर्ण सुख संतोष है ही नहीं. वह सदैव और सुख के लिए ललायित रहता है. मानव शरीर भगवान का भजन करने के लिए मिला है. मानव शरीर से ही भगवत की प्राप्ति हो सकती है. इस संसार में कोई भी सुख बिना भगवत कृपा के संभव नहीं है. देवी भगवत श्रवण करने से जीवन में सब कुछ प्राप्त हो जाता है. जीवन का आधार स्तंभ ही भगवत कथा है. कहा कि 84 लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ योनि मानव ही है. उसी प्रकार सभी पुराणों में सर्वश्रेष्ठ पुरान श्रीमद्भागवत पुराण है. इसलिये जीवन में सत्संग होना जरूरी है. यह जीवन क्षण भंगुर है. कहा कि मृत्यु निकट है. 24 घंटा में 21 हजार 600 बार मनुष्य सांस लेता है. जीव को हर पल ध्यान देना चाहिये. यह सांस व्यर्थ में खर्च तो नहीं हो रहा है. इस वास्तविक प्रसन्नता में लोग जिए जा रहे हैं. सत्य असत्य चीजों का बोध है. इसकी सार्थकता तभी है, जब भागवत पुणानुवाद गाये जाये. कहा कि जीवन से काम, क्रोध, मद, मोह की त्याग करे. इनके त्यागे बिना ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती है.
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