जहानाबाद नगर.
किशोर न्याय परिषद् के अपर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी सह प्रधान दंडाधिकारी निवेदिता कुमारी ने डॉ उदय शंकर, डॉ सोनी कुमारी, डॉ सुनील कुमार राय और डॉ प्रमोद कुमार को कारण बताओ नोटिस दाखिल करने का निर्देश देते हुए कहा कि बोर्ड में पूरी तरह से गलत रिपोर्ट तैयार करने और प्रस्तुत करने के लिए कानून के प्रासंगिक प्रावधान के तहत चारों डॉक्टरों पर मुकदमा क्यों नहीं चलाया जाना चाहिए तथा उन्हें यह भी कारण बताओ नोटिस दाखिल करने का निर्देश दिया है कि इन मामलों को उनके मेडिकल पंजीकरण संख्या को रद्द करने के लिए बिहार चिकित्सा पंजीकरण परिषद और भारतीय चिकित्सा परिषद पंजीकरण को क्यों नहीं भेजा जाना चाहिए. दरअसल पूरा मामला है कि एक मामले में पीड़ित लड़की की दो अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट दाखिल कि गयी थी. साथ ही पीड़िता ने बोर्ड के समक्ष बयान दिया था कि पिछले एक साल से विधि विरुद्ध वालक शादी का झांसा देकर उसके साथ यौन संबंध बना रहा था. पीड़िता की दोनों मेडिकल रिपोर्ट एक दूसरे का खंडन करती हैं. बोर्ड ने माना कि उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता. डॉ उदय शंकर, डॉ सोनी कुमारी, डॉ सुनील कुमार राय और डॉ प्रमोद कुमार (चिकित्सा अधीक्षक) ही स्थिति स्पष्ट कर सकते हैं कि अगर पीड़िता पहली रिपोर्ट में गर्भवती नहीं थी, तो दूसरी मेडिकल रिपोर्ट में उसकी गर्भावस्था 12 सप्ताह और छह दिन कैसे बतायी गयी. ऐसा प्रतीत होता है कि उपरोक्त सभी चार डॉक्टरों ने एक दूसरे की मिलीभगत और एसडीपीओ और इस मामले के आईओ की मिलीभगत से पीड़िता की पूरी तरह से झूठी और भ्रामक मेडिकल रिपोर्ट तैयार की गयी थी, ताकि विधि विरुद्ध बालक को अभियोजन से बचाया जा सके. झूठी रिपोर्ट उपरोक्त डॉक्टरों द्वारा सीजेएम की अदालत में प्रस्तुत की गई थी, लेकिन मामले को किशोर न्याय परिषद में स्थानांतरित कर दिया गया था, क्योंकि कथित अपराध विधि विरुद्ध बालक द्वारा किया गया था. बोर्ड ने बताया कि इन डॉक्टरों का कृत्य अपराध के दायरे में आता है और साथ ही उपरोक्त सभी चार डॉक्टरों का आचरण चिकित्सा पेशे की नैतिकता के खिलाफ है. उक्त तथ्य के आलोक में, डॉ उदय शंकर, डॉ सोनी कुमारी, डॉ सुनील कुमार राय और डॉ प्रमोद कुमार को कारण बताओ नोटिस दाखिल करने का निर्देश दिया है कि बोर्ड में पूरी तरह से गलत रिपोर्ट तैयार करने और प्रस्तुत करने के लिए सभी डॉक्टरो पर कानून के प्रासंगिक प्रावधान के तहत मुकदमा क्यों नहीं चलाया जाना चाहिए. बताते चलें कि पीड़िता के पिता के लिखित आवेदन पर टाउन थाना (कल्पा ओपी) ने विधि विरुद्ध बालक के विरुद्ध मामला दर्ज किया था और इस मामले के आईओ ने कथित तथ्य की गलती के आलोक में अंतिम प्रपत्र समर्पित किया था. उन्होंने पाया था कि विधि विरुद्ध बालक के विरुद्ध कोई अपराध नहीं है. इस तथ्य के बावजूद कि पीड़िता के दिए गए बयान से स्पष्ट था कि विधि विरुद्ध बालक ने शादी का झांसा देकर पीड़िता के साथ यौन संबंध बनाये थे. बोर्ड ने कहा कि हमें समझ में नहीं आता कि एसडीपीओ और इस केस के आइओ दोनों इतनी जल्दी में क्यों थे कि एफआईआर दर्ज होने के एक सप्ताह के अंदर ही विधि विरुद्ध बालक के खिलाफ फाइनल फॉर्म जमा कर दिया गया. एसडीपीओ और इस मामले के आइओ को भी स्पष्टीकरण दाखिल करने का निर्देश दिया गया था कि इस मामले को वरीय पदाधिकारी एवं डीजीपी, बिहार को क्यों नहीं भेजा जाए.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है