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एसएनसीयू में 16 बेड पर एक दिन में भर्ती हो रहे 40 से अधिक नवजात बच्चे

सदर अस्पताल में स्थित एसएनसीयू यानी सिक न्यू बार्न केयर यूनिट पर बच्चों का लोड ज्यादा है, जबकि एसएनसीयू में आउटबोर्न और इनबोर्न मिलाकर कुल बेड मात्र 16 ही हैं. इसके चलते आये दिन एक बेड पर चार-चार बच्चों को भर्ती कर इलाज करने की मजबूरी बन जा रही है.

भभुआ सदर. सदर अस्पताल में स्थित एसएनसीयू यानी सिक न्यू बार्न केयर यूनिट पर बच्चों का लोड ज्यादा है, जबकि एसएनसीयू में आउटबोर्न और इनबोर्न मिलाकर कुल बेड मात्र 16 ही हैं. इसके चलते आये दिन एक बेड पर चार-चार बच्चों को भर्ती कर इलाज करने की मजबूरी बन जा रही है. यानी बेड कम होने के बावजूद एसएनसीयू में एक दिन में 40 से 42 नवजात बच्चों का इलाज किया जा रहा है. सदर अस्पताल स्थित एसएनसीयू में मंगलवार को विभिन्न संक्रमण की चपेट में आये 37 नवजात बच्चों का भर्ती कर इलाज किया जा रहा था. जबकि, इसके एक दिन पहले 40 बच्चों का इलाज किया गया. अब एक बेड पर चार-चार बच्चों के भर्ती किये जाने से इसमें संक्रमण के खतरे भी हैं, लेकिन बच्चों की जिंदगी बचाने का कोई दूसरा रास्ता न होने के चलते डाॅक्टर और माता-पिता की खतरे को नजरअंदाज करना मजबूरी है. लोगों का कहना था कि यदि सरकार एसएनसीयू की बेड क्षमता को और अधिक बढ़ा दे, तो नवजातों को स्वस्थ जिंदगी मिल सकेगी. वैसे भी एक बेड पर दूसरे बीमार बच्चे को भर्ती करना खतरनाक है. इस बात को डाॅक्टर भी मानते हैं. क्योंकि, इससे कोई गंभीर बीमारी दूसरे बच्चे को हो सकती है और उसकी जान के लिए खतरा बन सकती है. = संक्रमण से ग्रसित 30 प्रतिशत नवजात बच्चों का होता है हर दिन इलाज दरअसल, एसएनसीयू में 30 प्रतिशत बच्चे ऐसे आते हैं, जो संक्रमण की बीमारी से ग्रसित होते हैं. अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ डाॅ निशांत कुमार ने बताया कि जब कोई संक्रमण का शिकार बच्चा भर्ती होता है, तो प्रयास रहता है कि उसे अन्य बच्चों से दूर रखा जाये. लेकिन सीट की कमी के चलते चार बच्चों को एक ही बेड पर रखकर इलाज करने की मजबूरी बन रही है. मंगलवार को दोपहर ढाई बजे तक एसएनसीयू में 37 नवजात इलाजरत थे. एसएनसीयू में कार्यरत एक कर्मी के अनुसार संध्या तक नवजात बच्चों की संख्या 40 से ऊपर चली जाती है. अब इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि सीट की कमी के बीच नवजातों का इलाज किस परेशानी और खतरे के साथ होता होगा. गौरतलब है कि सदर अस्पताल के एसएनसीयू वार्ड में बेड बढ़ाने का प्रस्ताव राज्य मुख्यालय को भेजे कई माह हो चुके हैं. मुख्यालय को भेजे गये प्रस्ताव में वार्ड में और बेड बढ़ाने की मांग की गयी है, लेकिन अब तक इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की जा सकी है. = तीन यूनिट में बंटा है एसएनसीयू वार्ड सदर अस्पताल के एसएनसीयू वार्ड तीन यूनिट में बंटा है. एक यूनिट उन शिशुओं के लिए है, जिनका जन्म सदर अस्पताल में होता है और दूसरी यूनिट उन शिशुओं के लिए है, जिनका जन्म जिले के अन्य स्वास्थ्य केंद्रों या अस्पतालों में हुआ हो और गंभीर अवस्था में यहां भेजे गए हों. इसके अलावा कंगारू मदर केयर यूनिट में जच्चा-बच्चा को रहने की सुविधा उपलब्ध करायी गयी है. सिरसी चैनपुर निवासी शहबान, भटौली निवासी मनोज कुमार आदि का कहना था कि अस्पताल के एसएनसीयू वार्ड में सुविधा की कमी नहीं है, लेकिन कभी-कभी बेड ही खाली नहीं रहते हैं. बेड को बढ़ा दिया जाये तो लोगों को लाभ मिलेगा. रामप्रकाश ने कहा कि बच्चे अधिक बीमार होते हैं, इसलिए उनके भर्ती करने की व्यवस्था पर्याप्त होनी चाहिए. = नाजुक हालत के नवजात को मिलता है नया जीवन जिले में जन्म लेने वाले अस्वस्थ नवजातों के लिए सदर अस्पताल का एसएनसीयू वरदान है. एसएनसीयू के सारे 16 बेड रेडिएंट वार्मर, आक्सीजन कंसंट्रेटर, फोटोथेरेपी, पल्स आक्सीमीटर तथा इंफ्युजन पंप आदि आधुनिक चिकित्सीय उपकरणों से लैस है. इन्हीं उपकरणों के सहारे जन्म लेने के बाद मौत से जूझते बच्चों को नया जीवन प्रदान किया जाता है. अभी जो शिशु भर्ती हैं, उनमें कुछ पीलिया से पीड़ित हैं, तो कुछ कम वजन वाले हैं. जबकि, कुछ शिशुओं को सांस लेने से संबंधित तकलीफ है. = लगातार भेजा जा रहा रिमाइंडर सदर अस्पताल उपाधीक्षक डॉ विनोद कुमार ने बताया कि सदर अस्पताल की चिकित्सकीय व्यवस्था पर लोगों का विश्वास बढ़ा है. नवजातों के इलाज को लेकर अस्पताल प्रबंधन पूरी तरह से गंभीर है. नवजातों की बढ़ती संख्या को देखते हुए सरकार को बेड की संख्या बढ़ाने का प्रस्ताव पूर्व में ही भेजा गया है, साथ ही वीसी के माध्यम से भी जानकारी दी जाती है. यहां दोबारा इस संबंध में सिविल सर्जन के माध्यम से राज्य मुख्यालय को रिमाइंडर भेजा जायेगा. इनसेट जागरूकता के अभाव में भी नहीं मिल पा रहा लोगों को एसएनसीयू का लाभ सदर अस्पताल में सभी सुविधाओं से युक्त गहन बाल चिकित्सा इकाई है स्थापित भभुआ सदर. गर्भावस्था में महिलाओं द्वारा विभिन्न प्रकार की सावधानी नहीं बरतने से नवजात शिशुओं के जन्म के साथ ही समस्या बढ़ रही है. हाल के वर्षों में नवजात शिशुओं के गंभीर होने के सिलसिले को बल मिला है. ऐसे शिशु जन्म के साथ बहुत तरह की बीमारियों से घिर जाते हैं, इससे तत्काल जांच व इलाज की आवश्यकता होती है. उन शिशुओं को समय पर हर प्रकार के इलाज के लिए सदर अस्पताल में नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई (एसएनसीयू) संचालित है. एसएनसीयू में विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा बच्चों का पर्याप्त इलाज किया जाता है. डीपीएम ऋषिकेश जायसवाल के अनुसार एसएनसीयू में बच्चों के इलाज के लिए पर्याप्त मात्रा में वार्मर (बच्चों का वेंटिलेटर), फोटोथैरेपी डिवाइस, सी-पैप जैसी सभी तरह की व्यवस्था है. उसे 24 घंटे चिकित्सक, प्रशिक्षित एएनएम, जीएनएम की निगरानी में संचालित किया जाता है, लेकिन इतनी सुविधाओं के बावजूद आज भी जागरूकता के अभाव में एक बड़ी आबादी अपने नवजात बच्चों को बिना सुविधा वाले निजी क्लिनिक या फिर नीम हकीमों से इलाज कराकर उनकी जान से खिलवाड़ कर रहे हैं.

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