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वीटीआर की जमीन पर भी अतिक्रमणकारियों की नजर, कब्जा के बाद कर रहे खेती व बना रहे घर

वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के वन प्रक्षेत्रों के जंगल में वन भूमि पर अतिक्रमण का दायरा बढ़ता जा रहा है.

हरनाटांड़ वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के वन प्रक्षेत्रों के जंगल में वन भूमि पर अतिक्रमण का दायरा बढ़ता जा रहा है. इससे सटे करीब एक दर्जन इलाकों में 300 एकड़ से अधिक वन भूमि पर स्थानीय लोगों का कब्जा है. इनमें कई जगह अतिक्रमणकारियों द्धारा पका मकान, झोपड़ी गन्ने की खेती हो रही तो कुछ लोग झोपड़ी तक बना लिए हैं. जंगल में अतिक्रमण के साथ ही अतिक्रमणकारी पेड़-पौधों को काटने के साथ ही वन्यजीवों की तस्करी तक को अंजाम देते हैं. 890 वर्ग किमी में फैले वीटीआर में छह रेंज हैं. वन विभाग की जमीन को एक तरफ से जहां गंडक नदी अपनी पेटी में ले रही. वहीं वाल्मीकिनगर वन क्षेत्र के सुस्ता व चकदहवा में 150 एकड़ भूमि पर नेपालियों का कब्जा है. मदनपुर वन क्षेत्र के सिरसिया, रामपुर, नौरंगिया, वाल्मीकिनगर के कोतराहा, गोनौली के संतपुर, भठहिया टोला आदि गांवों के लोगों ने भी करीब 150 एकड़ वन भूमि पर कब्जा जमा लिया है. यही हाल गोबर्धना के अमहवा में भी है. यहां 25 एकड़ अतिक्रमित जमीन पर खेती हो रही है. सूत्रों की मानें तो अतिक्रमणकारी पहले पेड़ों को काटते हैं. झाड़ियों को काटकर सुखने देते हैं. कुछ दिन बाद उसमें आग लगा देते हैं. इसके बाद उसपर खेती शुरू कर देते हैं. वन विभाग की टीम गश्ती करती है. अतिक्रमण दिखने पर कार्रवाई होती है. हालांकि बहुत कम ही अतिक्रमणकारी चिह्नित हो पाते हैं. वन क्षेत्र सिमटने का मतलब वन्यजीवों के रहवास में हस्तक्षेप पर्यावरण प्रेमी गजेंद्र यादव व निप्पू पाठक का कहना है कि वन क्षेत्र सिमटने का मतलब वन्यजीवों के प्राकृतिक रहवास में हस्तक्षेप है. जगह नहीं मिलने के कारण वे आसपास के इलाकों में भटकने लगेंगे. हाल के दिनों में दियारा या अन्य रिहायशी इलाकों में बाघों, तेंदुओं, भालू या अन्य जीवों के भटकाव के पीछे एक वजह जंगल की जमीन का सिमटना भी है. इससे बचने का उपाय है कि वन विभाग जंगल की जमीन को अतिक्रमण मुक्त कराने के लिए अभियान चलाए. खाली भूमि पर पौधारोपण कराए. निगरानी के लिए वनकर्मी या टाइगर ट्रैकरों की मदद ली जा सकती है.

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