22.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Hindi Diwas Poem: हिन्दी दिवस पर सुनियें रामधारी सिंह दिनकर की ये कविता

भारत में हिंदी भाषा की सुंदरता, शक्ति और गौरव का सम्मान करते हुए, रामधारी सिंह दिनकर की प्रेरक कविता के साथ हिंदी दिवस मनाएं।

Hindi Diwas Poem: हर वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है, आधुनिक हिंदी साहित्य के सबसे महान कवियों में से एक रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar) को हिन्दी साहित्य जगह में उनकी कालजयी रचनाओं के लिए आज भी पूजा जाता हैं.

दिनकर एक भारतीय हिंदी कवि, निबंधकार और चिकित्सक थे, जिन्हें सबसे महत्वपूर्ण आधुनिक हिंदी कवियों में से एक माना जाता है. दिनकर राष्ट्रवादी कवियों में राष्ट्रवादी कविता के साथ एक विद्रोही कवि के रूप में उभरे. आज हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में उनके शब्दों को याद करना आवश्यक है.

दिनकर, जिन्हें अक्सर “राष्ट्रकवि” के रूप में जाना जाता है, हिंदी के प्रति गहरी श्रद्धा रखते थे क्योंकि यह जन-जन की भाषा थी और इसे भारत को एकजुट करने वाली शक्ति मानते थे.

Untitled Design 5 1
Ramdhari singh dinkar

कौन थे राष्ट्रकवि दिनकर?

23 सितंबर, 1908 को बिहार में जन्मे रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar) का काम स्वतंत्रता संग्राम से गहराई से प्रभावित है. उनकी प्रतिष्ठित कविता में राष्ट्रवाद, वीरता और दर्शन का मिश्रण है.’रश्मिरथी’ और ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ जैसी उनकी उल्लेखनीय कृतियों ने हिंदी साहित्य पर एक अमिट छाप छोड़ी है.

अपने शब्दों के माध्यम से, दिनकर(Ramdhari Singh Dinkar) ने हिंदी को सिर्फ संचार के एक माध्यम से कहीं ज़्यादा के रूप में देखा- उन्होंने इसे भारतीय एकता और पहचान का सार माना. हिंदी दिवस पर, आइए भाषा के प्रति उनके योगदान को याद करें और उनका सम्मान करें.

सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं

स्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैं

बँधा हूँ, स्वप्न हूँ, लघु वृत हूँ मैं

नहीं तो व्योम का विस्तार हूँ मैं

समाना चाहता, जो बीन उर में

विकल उस शून्य की झंकार हूँ मैं

भटकता खोजता हूँ, ज्योति तम में

सुना है ज्योति का आगार हूँ मैं

जिसे निशि खोजती तारे जलाकर

उसी का कर रहा अभिसार हूँ मैं

जनम कर मर चुका सौ बार लेकिन

अगम का पा सका क्या पार हूँ मैं

कली की पंखुडीं पर ओस-कण में

रंगीले स्वप्न का संसार हूँ मैं

मुझे क्या आज ही या कल झरुँ मैं

सुमन हूँ, एक लघु उपहार हूँ मैं

मधुर जीवन हुआ कुछ प्राण! जब से

लगा ढोने व्यथा का भार हूँ मैं

रुंदन अनमोल धन कवि का,

इसी से पिरोता आँसुओं का हार हूँ मैं

मुझे क्या गर्व हो अपनी विभा का

चिता का धूलिकण हूँ, क्षार हूँ मैं

पता मेरा तुझे मिट्टी कहेगी

समा जिसमें चुका सौ बार हूँ मैं

न देंखे विश्व, पर मुझको घृणा से

मनुज हूँ, सृष्टि का श्रृंगार हूँ मैं

पुजारिन, धुलि से मुझको उठा ले

तुम्हारे देवता का हार हूँ मैं

सुनुँ क्या सिंधु, मैं गर्जन तुम्हारा

स्वयं युग-धर्म की हुँकार हूँ मैं

कठिन निर्घोष हूँ भीषण अशनि का

प्रलय-गांडीव की टंकार हूँ मैं

दबी सी आग हूँ भीषण क्षुधा का

दलित का मौन हाहाकार हूँ मैं

सजग संसार, तू निज को सम्हाले

प्रलय का क्षुब्ध पारावार हूँ मैं

बंधा तूफान हूँ, चलना मना है

बँधी उद्याम निर्झर-धार हूँ मैं

कहूँ क्या कौन हूँ, क्या आग मेरी

बँधी है लेखनी, लाचार हूँ मैं।।

Also Read:रामधारी सिंह दिनकर जयंती: संघर्ष भरा बचपन और राष्ट्रकवि के बारे में जानिए दिलचस्प बातें..

Also Read: जानें कौन थे राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर, 48वीं पुण्यतिथि पर उनके जीवन की फिर से एक झलक

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें