मिहिजाम. उत्तम तप धर्म के पालन से मानव का जीवन सार्थक बनता है. शास्त्रों में 12 प्रकार के तप का वर्णन है, जो भी मानव अपने जीवन में तन मन जीवन को परिमार्जित या शुद्ध करता है. उसके समस्त जन्मों-जन्मों के गलत कर्म नष्ट हो जाते हैं. दशलक्षण पर्व के सातवें दिन जैन श्रद्धालुओं ने उत्तम तप के इस सार्थक संदेश को अपनाने का संदेश दिया. दिगंबर जैन मंदिर में प्रातः भगवान शांतिनाथ का जलाभिषेक, पूजन एवं आरती की गयी. भगवान शांतिनाथ एवं महावीर के जय घोष से मंदिर प्रांगण गूंजता रहा. श्रद्धालुओं ने बताया कि उत्तम तप का अर्थ भूखा रहना नहीं बल्कि अपनी इच्छाओं को मिटाने का नाम है, जो तप शरीर के स्तर पर किया जाएं वह शारीरिक तप है. शारीरिक तप आवश्यक है, लेकिन यह पूर्ण नहीं अपूर्ण है, जब तक मानसिक तप के साथ नहीं जुड़ जाय. बाहर का तप सार्थक नहीं है. मौके पर जैन समाज के अध्यक्ष अशोक छाबड़ा, मंत्री अनिल जैन, नीरू जैन, संजय जैन, बबलू जैन, पूर्णिमा जैन, पूर्णिमा जैन, सुमित्रा जैन, मोना देवी काला, प्रदीप काला, ममता देवी आदि मौजूद थीं.
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