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सदर अस्पताल में जीवन रक्षक दवाएं, स्लाइन, ग्लव्स, किट व टेप भी नहीं

सदर अस्पताल में जीवन रक्षक दवाएं, स्लाइन, ग्लव्स, किट व टेप भी उपलब्ध नहीं

गढ़वा जिले के 15 लाख की आबादी को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के लिए बना सदर अस्पताल, गढ़वा इन दिनों भगवान भरोसे चल रहा है. यहां जरूरी जीवन रक्षक दवाएं भी उपलब्ध नहीं है. वहीं ओपीडी अथवा आपातकालीन सेवा में चिकित्सकों की अनुपस्थिति आम बात हो गयी है. इस कारण मरीज के परिजनों का अस्पताल में अक्सर हंगामा होता रहता है. स्थिति यहां तक पहुंच जाती है कि स्थिति नियंत्रित करने के लिए पुलिस बुलानी पड़ती है. ऐसा कोई ऐसा सप्ताह नहीं होता, जिसमें स्वास्थ्य सुविधा व अन्य कारणों से हंगामा न हुआ हो. अस्पताल प्रबंधन चाहे जो दावे कर ले, यहां भर्ती मरीजों को अस्पताल से दवा नहीं मिलती है. बाहर से दवा लेना मरीज व उनके परिजनों की जिम्मेवारी है. सदर अस्पताल में आरएल, डीएनएस, मेट्रोन व एनएस, पेंटाजोल, पेन 40 सहित कई जीवन रक्षक दवाएं उपलब्ध नहीं है. यहां तक की स्लाइन भी नहीं है. यहां तक की इलाज के लिए जरूरी ग्लव्स, किट व टेप तक खरीदना पड़ता है. इधर सदर अस्पताल के सरकारी दवा केंद्र में गैस की दवा व कफ-सीरप सहित बच्चों की दवा भी उपलब्ध नहीं है. यही नहीं, यहां के चिकित्सकों पर आरोप लगाया जाता है कि दुर्घटना में घायल मरीजों का तत्पर होकर इलाज करने के बजाय ज्यादातर मरीजों का यहां से रेफर कर देते हैं. गौरतलब है कि सदर अस्पताल में जिले के सभी 20 प्रखंडों से मरीजों के अलावे पड़ोसी राज्य यूपी और छत्तीसगढ़ की सीमा क्षेत्र से भी हर रोज काफी संख्या में मरीज आते हैं. इन मरीजों को सदर अस्पताल की लचर व्यवस्था से परेशानी होती है.

जरूरी दवा बाहर से खरीदनी पड़ी

गढ़वा शहर के उंचरी मुहल्ला निवासी रामजी राम की पत्नी मीना देवी बाइक की चपेट में आकर घायल हो गयी थी. उसे गढ़वा सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया. यहां कहा गया कि दवा उपलब्ध नहीं है. इसके बाद उसके परिजनों को जरूरी दवा बाहर से खरीदनी पड़ी. परिजनों ने बताया कि दूर-दराज से गरीब एवं असहाय लोग काफी उम्मीद से यहां आते हैं. लेकिन यहां आने के बाद निजी अस्पताल की तरह सभी दवा खरीदनी पड़ती है. बाहंर के लोगों के लिए पैसे की तुरंत व्यवस्था करना मुश्किल हो जाता है.

सिर्फ दर्द की दवा मिल रही

गढ़वा थाना क्षेत्र के बानुटीकर निवासी अंजू उरांव की पत्नी सरोज देवी के पैर में घाव होने के बाद उसे गढ़वा सदर अस्पताल में भर्ती किया गया. उसके भाई रविशंकर उरांव ने बताया कि उसे अस्पताल से सिर्फ दर्द की दवा मिल रही है. बाकी दवाएं वह बाहर से खरीद कर लाते हैं. उन्होंने बताया कि वह काफी गरीब है. आठ सितंबर से लगातार सदर अस्पताल में कर्ज लेकर दवा खरीदनी पड़ रही है. यही स्थिति प्रसव कक्ष की भी है.

अक्सर होता है हंगामा

सदर अस्पताल में दूर-दराज से आये गरीब खासकर कम पड़े-लिखे या निरक्षर मरीज व उसके परिजन ओपीडी अथवा इमरजेंसी में चिकित्सकों के अनुपस्थित रहने पर घंटों इंतजार कर लेते हैं. अस्पताल कर्मियों के कहने पर वे लोग किसी तरह बाहर से भी दवा खरीदकर ले आते हैं. लेकिन जागरूक मरीज व परिजन जब अस्पताल पहुंचते हैं, तो वे इस स्थिति को लेकर हंगामा करने लगते हैँ. खासकर अस्पताल में ड्यूटी के दौरान चिकित्सकों की अनुपस्थिति अथवा इलाज में लापरवाही बरते जाने पर वे हंगामा शुरू कर देते हैं. इन्हें समझाने में प्रशासन को काफी मशक्कत करनी पड़ती है.

कमियां दूर की जा रही हैं : उपाधीक्षक

इस संबंध में सदर अस्पताल के उपाधीक्षक हेरनचंद्र महतो ने बताया कि जीवन रक्षक जो दवाइयां नहीं है, उसका ऑर्डर दिया गया है. जल्द से जल्द सभी दवाएं तथा स्लाइन (पानी) सदर अस्पताल में उपलब्ध हो जायेगा. वह सारी कमियों को दूर कर रहे हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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