बांका. जिले के विभिन्न क्षेत्रों में शनिवार को हर्षों उल्लास के साथ करमा पर्व को मनाया गया. इस दिन बहन अपने भाई की लंबी उम्र के साथ सुख और समृद्धि की कामना की. जिसमें बहन ने अपने भाई की लंबी उम्र की कामना को लेकर दिनभर उपवास रखी और शाम में पूरे विधि विधान से करमा डाली की पूजा की. करम डाली की पूजा फूल, फल, जो, धान और बालू से किया गया. करमा पर्व को लेकर शहरी व ग्रामीण इलाकों में उत्सवी माहौल रहा. आज करमा डाली को विसर्जित करने के साथ यह पर्व संपन्न हो जायेगा. मालूम हो कि करमा पूजा भादो माह के शुक्ल पक्ष के एकादशी को मनाया जाता है. इस दिन करम वृक्ष की तीन डालियां को आंगन में विधि विधान के साथ गाड़ कर श्रद्धापूर्वक इस व्रत को किया गया. व्रत रखने वाली शंकरपुर व रीगा गांव की मधु कुमारी, काजल कुमारी, वंदना कुमारी, प्रिया कुमारी, सोनाक्षी कुमारी, नक्की कुमारी, राखी व ममता कुमारी ने बताया कि कुवांरी कन्याएं तीज के दूसरे दिन टोकरियों में नदी से बालू लेकर आती है और रात में भींगा कर रखे गये गेंहू, सरगुंजा, कुलथी, मकई, जौ, चना आदि को टोकरी में रखे बालू में लगा देती है. जौ को प्रतिदिन नहा कर पानी डाल कर आराधना की जाती है. अंकुर होने के बाद थोड़ा पौधा बढ़ जाने पर हल्दी पानी दिया जाता है. जिससे उसका रंग पीला हो जाता है. इसके बाद वो एकादशी के दिन विधिविधान से इस पर्व को मनाती है. साथ ही बहनें अपने भाई व लंबी उम्र की कामना के लिए घर के आंगन में बने पोखर को पार करवाते हुए करमा-धरमा दो भाइयों की कथा गांव की बजुर्ग महिलाएं सुनाया गया. कथा के बाद प्रसाद का वितरण किया गया.
कर्मा अपनी अधर्मी पत्नी से परेशान होकर घर छोड़ गये थे, घर वापस लौटने के खुशी में लोग मनाते हैं पर्व
ऐसी मान्यता है कि कर्मा धर्मा दो भाई था दोनों बहुत मेहनती व दयावान थे. कुछ दिनों बाद कर्मा की शादी हो गयी. उसकी पत्नी अधर्मी और दूसरों को परेशान करने वाली विचार की थी. यहां तक की वह धरती मां के ऊपर ही माड़ पसा देती थी. जिससे कर्मा को बहुत दुःख हुआ. वह धरती मां के पीरा से बहुत दुखी था और इससे नाराज होकर वे घर से चला गया. उसके जाते ही सभी के कर्म किसमत भाग्य चला गया और वहां के लोग दुखी रहने लगे. धर्मा से लोगों की परेशानी नहीं देखी गयी और वह अपने भाई को खोजने निकल पड़ा. कुछ दूर चलने पर उसे प्यास लग गयी. आस पास कही पानी न था दूर एक नदी दिखाई दिया. वहां जाने पर देखा की उसमे पानी नहीं है. नदी ने धर्मा से कहा की जबसे कर्मा भाई यहां से गये हैं तबसे हमारा कर्म फुट गए है. यहां का पानी सुख गया है, अगर वे मिले तो उनसे कह देना. कुछ दूर जाने पर एक आम का पेड़ मिला उसके सारे फल सड़े हुए थे. उसने भी धर्म से कहा की जब से कर्मा गए है तब से हमारा फल ऐसे ही बर्बाद हो जाते है. अगर वे मिले तो उनसे कह दीजियेगा और उनसे उपाय पूछ कर बताइयेगा. धर्म वहां से भी आगे बढ़ गया आगे उसे एक महिला मिली उसने बताई की कर्म से पूछ कर बताना की जबसे वो गए हैं खाना बनाने के बाद बर्तन हाथ से चिपक जाते है सो इसके लिए क्या उपाय करें. धर्म आगे चल पड़ा, चलते चलते एक रेगिस्तान में जा पहुंचा वहां उसने देखा की कर्मा धुप व गर्मी से परेशान है. उसके शरीर पर फोड़े पड़े हैं और वह ब्याकुल हो रहा है. धर्म से उसकी हालत देखी नहीं गयी और उसने करम से आग्रह किया की वो घर वापस चले. कर्मा ने कहा की मैं उस घर कैसे जाऊ जहां मेरी पत्नी जमीन पर माड़ फेक देती है. तब धर्म ने वचन दिया की आज के बाद कोई भी महिला जमीन पर माड़ नहीं फेंकेगी. फिर दोनों भाई वापस घर की ओर चला तो उसे सबसे पहले एक महिला मिली. महिला से कर्मा ने कहा की तुमने किसी भूखे को खाना नहीं खिलाया था इसी लिए तुम्हारे साथ ऐसा हुवा.आगे कभी ऐसा मत करना सब ठीक हो जायेगा. अंत में नदी मिला तो कर्मा ने कहा की तुमने किसी प्यासे को साफ पानी नहीं दिया आगे कभी किसी को गंदा पानी मत पिलाना आगे कभी ऐसा मत करना तुम्हारे पास कोई आये तो साफ पानी पिलाना. इस प्रकार उसने सबको उसका कर्म बताते हुए घर आया और पोखर में कर्म का डाल लगा कर पूजा किया उसके बाद पूरे इलाके में पुनः खुशहाली लौट आयी और सभी आनंद से रहने लगे. उसी को याद कर आज भी लोग करमा पर्व को मनाते है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है