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न्यायालयों में 17.27 लाख मामले लंबित, इनमें 14.13 लाख अभियुक्तों की उपस्थिति और अभियोजन साक्ष्य के चलते अटके

सूबे के न्यायालयों में ट्रायल को लेकर 17.27 लाख से अधिक मामले लंबित हैं. इनमें 1.08 लाख से अधिक मामले अभियुक्तों को पुलिस पेपर आपूर्ति नहीं किये जाने, 8.53 लाख मामले अभियुक्तों के न्यायालय में उपस्थित नहीं हो पाने और 5.60 लाख मामले अभियोजन साक्ष्य यानी सरकारी गवाही के अभाव में लंबित पड़े हैं.

संवाददाता, पटना

सूबे के न्यायालयों में ट्रायल को लेकर 17.27 लाख से अधिक मामले लंबित हैं. इनमें 1.08 लाख से अधिक मामले अभियुक्तों को पुलिस पेपर आपूर्ति नहीं किये जाने, 8.53 लाख मामले अभियुक्तों के न्यायालय में उपस्थित नहीं हो पाने और 5.60 लाख मामले अभियोजन साक्ष्य यानी सरकारी गवाही के अभाव में लंबित पड़े हैं. मुख्य सचिव अमृत लाल मीणा की अध्यक्षता में हुई एक उच्चस्तरीय बैठक में निकले इन आंकड़ों को अत्यंत चिंताजनक जताते हुए राज्य सरकार ने सभी जिलों के डीएम, एसपी और जिला अभियोजन पदाधिकारियों को इसकी समीक्षा के निर्देश दिये हैं. मुख्य सचिव ने टास्क दिया है कि जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अध्यक्षता में होन वाली जिलास्तरीय बैठकों में इन लंबित मामलों के ट्रायल को लेकर समयबद्ध कार्ययोजना तैयार की जाए. स्पीडी ट्रायल को लेकर लंबित 7650 मामलों की अलग कार्ययोजना तैयार हो.

समय पर गवाही नहीं होने से सबसे अधिक मामले लंबित

न्यायालयों में सबसे अधिक 8.50 लाख मामले अभियुक्तों की उपस्थिति नहीं होने से संबंधित हैं. अधिकारियों के मुताबिक न्यायालय द्वारा मामले में संज्ञान लिये जाने के बाद सही समय पर अभियुक्त की उपस्थिति नहीं हो पाने से केस लंबित होते जाते हैं. इसके पीछे न्यायालयों की कमी से लेकर अभियुक्तों की फरारी, उनका पता बदल जाना सहित कई अन्य कारण हैं. इससे बाद 5.60 लाख केस लंबित होने का कारण अभियोजना साक्ष्य की कमी बतायी गयी है. अभियोजन साक्ष्य में सबसे अहम भूमिका कांड के अनुसंधान व उससे जुड़े अन्य पदाधिकारियों की होती है, जिनका समय के साथ तबादला होता रहता है. इनके ट्रैकिंग की कोई एकीकृत डेटाबेस नहीं है. इससे सरकारी वकील भी न्यायालय को नहीं बता पाते कि अभियोजन साक्षी इस वक्त कहां और किस अवस्था में हैं. ऐसे में उनको बुलाने के लिए सम्मन ही निर्गत नहीं हो पाता है. तीसरा मामला पुलिस रिपोर्ट का है. अभियुक्त की उपस्थिति के बाद पुलिस द्वारा किये गये अनुसंधान की एक रिपोर्ट अभियुक्त को न्यायालय द्वारा नि:शुल्क दी जाती है. इसके बाद ही न्यायालय में ट्रायल शुरू होता है. इस स्टेज पर एक लाख से अधिक मामले लंबित है.

पदाधिकारियों की मदद से अनुसंधान के लंबित 2.76 लाख मामले निबटाएं

बैठक में अनुसंधान के स्तर पर भी 2.76 लाख मामले लंबित होने की जानकारी मिली. इसको देखते हुए मुख्य सचिव ने कहा कि राज्य सरकार के प्रयासों से पुलिस में अनुसंधान कर्मियों की संख्या बीते एक साल में नौ हजार से बढ़ कर 23 हजार हो चुकी है. क्षेत्रीय स्तर पर पुलिस पदाधिकारी अनुसंधान को लेकर लंबित मामलों के निबटारे की कार्ययोजना बनाएं. विभिन्न थानों में लंबित 86 हजार से अधिक गैर जमानती वारंटों का तामिला भी दो माह के अंदर सुनिश्चित कराये जाने का निर्देश दिया गया है. बैठक में गृ़ह विभाग के प्रधान सचिव अरविंद कुमार चौधरी, डीजीपी आलोक राज से लेकर गृह एवं पुलिस विभाग के राज्यस्तरीय पदाधिकारी, प्रमंडलीय आयुक्त, आइजी, डीआइजी, डीएम, एसपी आदि हाइब्रिड मोड में उपस्थित हुए.

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