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गंगा नदी के जलस्तर में वृद्धि होने से रबी फसल पर छाया संकट

गंगा नदी के जलस्तर में विगत दो दिनों से लगातार अप्रत्याशित वृद्धि हो रहा है, जिसको लेकर किसानों के चेहरे पर परेशानियां साफ नजर आ रही है.

बछवाड़ा.

गंगा नदी के जलस्तर में विगत दो दिनों से लगातार अप्रत्याशित वृद्धि हो रहा है, जिसको लेकर किसानों के चेहरे पर परेशानियां साफ नजर आ रही है. विगत कुछ दिन पूर्व गंगा नदी में बाढ़ आने के कारण किसानों की परेशानी बढ़ गयी थी, अभी किसान उन समस्याओं से उबर ही नहीं सके थे कि विगत दो दिनों में गंगा नदी का जलस्तर में अचानक वृद्धि होने लगी और देखते ही देखते करीब 48 घंटे में पांच फीट पानी बढ़ोतरी हुई है. दियारे इलाके के किसान रंजय राय, रौशन कुमार राय, दीपक कुमार, राजपति कुमार, राज कुमार, कृष्णचंद्र चौधरी,राधाकांत यादव, विश्वनाथ यादव, पप्पु यादव समेत अन्य लोगों ने बताया कि गंगा नदी के जलस्तर में अचानक वृद्धि होने से रबी फसल पर काले बादल मंडराने लगे हैं. उन्होंने बताया कि सावन माह में गंगा नदी के जलस्तर में वृद्धि के साथ ही खरीफ फसल में लगाए गये मक्के, मिर्च, सब्जी समेत मवेशी का चारा डूब गया. हमलोग मवेशी का चारा अपने घर से करीब दो से तीन किलोमीटर की दूरी तय कर भीड़ क्षेत्र से साइकिल पर लाते हैं और अपने मवेशी को आधा पेट ही खाना खिला पाते हैं. उन्होंने बताया कि घर के आस पास में चारा रहता था तो दो से तीन बार भी चारा काट कर ले आते थे, लेकिन दो से तीन किलोमीटर दूर जाने व चारा का व्यवस्था कर उसे लाने में समय ही शेष हो जाता है. जिस कारण मवेशियों को पर्याप्त मात्रा में चारा नहीं दे पाते हैं. किसानों का कहना है कि अब हमलोग खेत सुखने का इंतजार कर रहे थे, कि खेत सुखने ही खेत को जोतकर फसल लगाने के लिए तैयार करेंगे, लेकिन दुबारा पानी बढ़ने से लगता है कि इस बार समय से खेत जोत नहीं हो पाएगा और जब जोत नहीं होगा तो समय से फसल नहीं लग पाएगा,ऐसी स्थिति में किसानों को डबल नुकसान उठाना पड़ रहा है. किसानों का कहना है कि अभी 48 घटे में गंगा नदी के जलस्तर में लगातार वृद्धि हुई है, जिस कारण करीब पांच फीट पानी बढ़ गया है और जहां किसान खेत जोतने समेत फसल लगाने को मन बना लिए थे लेकिन जलस्तर की वृद्धि ने तो किसानों की तो नींद ही उड़ चुका है.

किसानों को नहीं मिल रहा है बाढ़ आश्रय टीला का लाभ : दियारे इलाके के किसानो को बाढ़ के समय अपने मवेशियों को लेकर इधर उधर भटकना पड़ता है. जिसको लेकर सरकार के द्वारा मनरेगा योजना से बाढ़ आश्रय टीला बनाया गया, लेकिन बाढ़ आश्रय टीला के लिए मनरेगा कार्यालय में पदाधिकारियों व जनप्रतिनिधियों के द्वारा एस्टीमेट भी बनाया गया. बाढ़ आश्रय टीला के नाम पर निकासी भी की गयी, लेकिन सरकार की योजना सिर्फ कागज पर ही सिमट कर रह गया. किसानों का कहना है कि मनरेगा योजना का जांच पटना टीम के द्वारा किया जा रहा है लेकिन हमें शंका है कि जांच टीम जांच भी कागज पर ही सिमट कर रह जायेगा. उन्होंने कहा बाढ़ आश्रय टीला नहीं रहने के कारण कुछ किसान झमटिया गंगा नदी पर बने पुल पर अपना मवेशी रखकर अपना गुजारा कर रहे हैं. वहीं दूसरी ओर गंगा के जलस्तर में लगातार वृद्धि से शाम्हो, बलिया, साहेबपुरकमाल, तेघड़ा, मटिहानी के इलाके में भी लोगों में एक बार फिर बाढ़ की संभावना से दहशत देखी जा रही है.

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