बेरमो. आज विश्वकर्मा पूजा है. भगवान विश्वकर्मा सृजन के देवता हैं. शिल्प और श्रम के देवता हैं. सृजन का यह सिलसिला, जिसे भगवान विश्वकर्मा ने शुरु किया था,आज भी जारी है. करोड़ों लोग सृजन के कार्य में लगे हैं और अपने हुनर से देश दुनियां को खुशहाल बना रहे हैं. बड़ी- बड़ी फैक्ट्रियों से लेकर छोटे- छोटे कल कारखानों, यहां तक कि गांव- शहर में आज के विश्वकर्मा परंपरागत और आधुनिक टेक्नोलॉजी के दम पर निर्माण और मरम्मत कार्य में लगे हैं. विकास का रास्ता इनके श्रम से होकर ही गुजरता है.
बेरमो कोयलांचल में कई नामी मिस्त्री (मैकेनिक) हुए, इनके पास बेरमो के अलावा बाहर से लोग अपने वाहनों की मरम्मत कराने आते थे. कोलियरियों में चलने वाली शॉवेल, डोजर और हॉलपेक व पोकलेन मशीनों के अलावा पुराने जमाने में छह चक्का डंपरों का डाला बनाने का काम यहां के लोग करते थे. ऐसे कई मिस्त्रियों को पूरे कोल इंडिया में लोग जानते थे. बेरमो में 60-70 के दशक में मैकेनिकल में आजाम मिस्त्री, इंजन में शामू मिस्त्री, सेल्फ व डायनेमो में अकबर मिस्त्री, डेटिंग-पेटिंग में बंधु मिस्त्री आदि का बड़ा नाम था. मैकेनिक में टेनी मिस्त्री पूरे राज्य में चर्चित थे. वह टोयोटा, माजदा, इसुजू, डीआसजू आदि विदेशी गाड़ियां का इंजन यहां की गाड़ियों में फिट कर देते थे. बड़ी गाड़ियों की डेंटिंग-पेंटिंग में लुडू मिस्त्री भी चर्चित थे. नया डंपर बनाना हो तो लोग लीलधारी मिस्त्री को याद करते थे. फुसरो करगली में एक अन्य शामू मिस्त्री बुलेट मोटरसाइकिल के माहिर मिस्त्री थे. मैकेनिकल मिस्त्री के रूप में आजम व जसीम का काफी नाम था. 50-60 के दशक में बड़ी गाड़ियों का चेसिस बनाने में लखन मिस्त्री की ख्याति थी. फुसरो में कोहली इंजीनियरिंग व यूनाइटेड इंजीनियरिंग में वेल्डिंग व लेथ का काम हुआ करता था. मैकेनिकल में कनू मिस्त्री व हजारीबाग गैराज नामी था.हेल्पर का काम करते हुए क्षेत्र के चर्चित मिस्त्री बन गये थे शामू
वर्ष 1965 में शमशुद्दीन उर्फ शामू मिस्त्री अपने दो भाईयों के साथ रामगढ़ से फुसरो आये थे. हेल्पर का काम करते हुए क्षेत्र के चर्चित मिस्त्री बन गये. पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे, इंटक नेता रामाधार सिंह, पूर्व मंत्री राजेंद्र प्रसाद सिंह, पूर्व सांसद रामदास सिंह की एंबेसडर कार व जीप की मरम्मत वही करते थे, झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन की पुरानी जीप में उन्होंने ही नया डीजल इंजन लगाया था. 80 के दशक में पूर्व मंत्री स्व राजेंद्र प्रसाद सिंह ने पानागढ़ से एक जीप मंगवायी थी, इसका भी मॉडिफिकेशन उन्होंने किया था. शामू मिस्त्री पहले राजेश्वर सिंह की नेशनल कोल कंपनी में हेल्पर थे. इस कंपनी में हेमलाल मुख्य मिस्त्री हुआ करते थे. 1972 तक इस कंपनी में रहने के बाद शामू घुटियाटांड़ की केएमसीसी (करगली माइनिंग कंस्ट्रक्शन कंपनी) में चले गये. बाद में फुसरो बाजार में भारत मैकेनिकल गैराज खोला. इस गैराज में उस वक्त टाटा की सभी गाड़ियों, लोडर, ट्रक, एंबेसडर कार, जीप समेत कई वाहनों का काम होता था. 90 के दशक में गैराज को बंद कर नागपुर में फुसरो की सर्वेश्वरी व जुगनू कंपनी के साथ कोयला की ट्रांसपोर्टिंग करने लगे, पांच साल के बाद फिर से फुसरो आ गये तथा फिर से गैराज खोला. पुराने लोग बताते हैं कि शामू भाई के यहां सदाकत आश्रम पटना से एंबेसडर कार मरम्मत के लिए आया करती थी. 50-60 के दशक में बेरमो के जरीडीह बाजार के प्रसिद्ध उद्योगपति मणीलाल राघवजी कोठारी के पास विदेशी प्लाईमोथ कार हुआ करती थी. बाद के वर्षों में कई दफा उस कार को खराब होने पर शामू मिस्त्री ने बनाया. वर्ष 1978 में पूर्व सीएम बिंदेश्वरी दुबे की पेट्रोल एंबेसडर कार (बीएचएम-1818) में शामू ने ही डीजल इंजन लगाया था. उस समय हिंदुस्तान मोटर डीजल कार नहीं बनाती थी.जब बिंदेश्वरी दुबे के साथ विमान से पटना उतरे शामू मिस्त्री
80 के दशक में शामू मिस्त्री दिल्ली से पटना हवाई जहाज से आ रहे थे. इस प्लेन में पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे भी दिल्ली से पटना आ रहे थे. जब शामूू मिस्त्री पटना एयरपोर्ट पर उतरे तो वहां पहले से दुबे जी के स्वागत में कांग्रेसी नेता रामाधार सिंह सहित कई लोग मौजूद थे. शामू मिस्त्री को देखते ही जान-पहचान वाले लोगों ने उनसे पूछा कि दुबे जी कहां है. जबाब में शामू मिस्त्री ने कहा कि हमलोग साथ ही प्लेन से उतरे हैं. दुबे जी भी साथ में ही है.ट्रक का डाला बनवाने मंहगू मिस्त्री के यहां नेपाल से आते थे लोग
बेरमो में डाला मिस्त्री व लेथ मशीन के मास्टर महंगू मिस्त्री रहे. हाथ के हुनर ने उन्हें चर्चित कर दिया. सात मार्च 1972 को महंगू महतो ने बीएसएल में नौकरी ज्वाइन की थी. फुसरो से साइकिल से रोजाना बोकारो नौकरी करने जाते थे. शाम को लौटने के बाद रात में फुसरो में सतीश कोहली के वर्कशॉप में काम करते थे. उस वक्त इस वर्कशॉप में टेल्को व टिस्को का डंपर का चेसिस (डाला) बनाने का काम होता था. वर्ष 1991 में महंगू महतो ने नौकरी से उन्होंने गोल्डेन दे दिया. इससे पहले वर्ष 1963 में बेरमो के रामविलास उच्च विद्यालय से हायर सेकेंड्री पास करने के बाद महंगू महतो फरक्का डैम में काम करने चले गये. वहां पानी के जहाज पर डयूटी लगी. लेकिन 24 घंटे के अंदर ही वहां से वापस बेरमो आ गये. गोड्डा के हंसडीहा में उनके मामा पीडब्ल्यूडी में ओवरसियर थे. महंगू महतो की उन्होंने पीडब्ल्यूडी में मुंशी के रूप में रखवा दिया, यहां उन्होंने छह माह तक काम किया. बाद में बेरमो आ गये तथा अपने दोस्त लिलधारी के साथ एक वर्कशॉप खोल कर काम करना शुरू किया. वर्कशॉप में मुख्य रूप से डंपर का डाला बनाने व वेल्डिंग काम करते थे. बाद में पूरे कोल इंडिया में उन्हें काम मिलने लगा. वर्ष 1978 में सतीश कोहली ने अपना वर्कशॉप महंगू को दे दिया. 1992 में महंगू ने एक डाला ट्रक खरीदा तथा 1984 में फुसरो सिंहनगर में अपना एक खुद का वर्कशॉप खोला. फिलहाल इस वर्कशॉप में शॉवेल व पोकलेन मशीन का बकैट, हाइड्रोलिक, लेथ मशीन आदि का काम होता है. साथ ही यहां छह चक्का डंपर चेसिस का डाला बना करता था. कई राज्यों के अलावा उस वक्त नेपाल से भी यहां लोग चेसिस का डाला बनाने आते थे. जारंगडीह लोहा पुल के रिपेयरिंग के अलावा बोकारो थर्मल के निकट कोनार नदी पर लोहा पुल, स्वांग-गोविंदपुर परियोजना में लोहा पुल, कारो में बंकर, गोविंदपुर में वर्कशॉप, आरआर शॉप जारंगडीह वर्कशॉप का आधा निर्माण, जारंगडीह व तारमी में फीडर ब्रेकर आदि का निर्माण महंगू मिस्त्री ने किया.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है