वरीय संवाददाता, मुजफ्फरपुर हिंदी की सुप्रसिद्ध कवयित्री शांति सुमन की जयंती पर थिंक बिहार रिसर्च फाउंडेशन के तत्वावधान में वेबिनार का आयोजन हुआ. इसमें देशभर के सौ से अधिक साहित्य प्रेमी जुड़े. जिले के प्राध्यापक व साहित्यकारों ने कवयित्री शांति सुमन की रचनाओं पर चर्चा की. साहित्यकारों ने बिहार की पृष्ठभूमि पर लिखित शांति सुमन की रचनाओं पर गंभीरता से प्रकाश डाला. कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए लंगट सिंह कॉलेज के सहायक आचार्य सह भारतीय भाषा मंच के राष्ट्रीय संयोजक डॉ राजेश्वर कुमार ने कहा कि शांति सुमन एमडीडीएम की विभागाध्यक्ष रह चुकी हैं. उन्होंने अनवरत साहित्य साधना से हिन्दी को समृद्ध किया है. मुख्य रूप से शांति सुमन हिंदी नवगीत की जानी-मानी चेहरा हैं और नवगीत आंदोलन में एकमात्र कवयित्री हैं. उनकी सबसे बड़ी ताकत है कि वे देशज बिंबो की कवयित्री हैं. मुख्य वक्ता के रूप में चितरंजन कुमार ने कहा कि ””””””””जल चुका हिरण”””””””” एक मात्र प्रकाशित उपन्यास है. वह उपन्यास अद्वितीय है, 1985 में प्रकाशित यह उपन्यास इतना महत्वपूर्ण है अगर शांति सुमन और कुछ नहीं लिखती तब भी वह हमारी स्मरण में बनी रहती. उन्हें हिंदी नवगीत और हिंदी जनगीत की प्रथम कवयित्री होने का गौरव भी प्राप्त है. मुख्य अतिथि आरबीबीएम कॉलेज की सहायक आचार्य सह कवयित्री शांति सुमन की पुत्री डॉ चेतना वर्मा ने उनकी जीवन यात्रा पर पर प्रकाश डाला. कहा कि संघर्ष की ️विरासत को संभालते हुए उन्होंने साहित्य की ऊंचाईयों को भी छुआ. 1960 से जिस साहित्यिक यात्रा की शुरुआत की, वह आज भी जारी है. कार्यक्रम के दौरान थिंक बिहार रिसर्च फाउंडेशन के सचिव कुलभूषण ने बताया कि थिंक बिहार रिसर्च फाउंडेशन बिहार के गुमनाम साहित्यकारों और व्यक्तित्वों पर केंद्रित विमर्श को आगे बढ़ाने का काम करता है. धन्यवाद ज्ञापन ओडिसा केंद्रीय विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य डॉ विकास कुमार ने किया.
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