वरीय संवाददाता, रांची. झारखंड हाइकोर्ट ने राज्य भर के सिविल कोर्ट में बुनियादी सुविधा उपलब्ध कराने से संबंधित स्वत: संज्ञान से दर्ज जनहित याचिका पर सुनवाई की. एक्टिंग चीफ जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद व जस्टिस अरुण कुमार राय की खंडपीठ ने सुनवाई के दाैरान राज्य सरकार का पक्ष सुना. सुनवाई के दाैरान खंडपीठ ने जानना चाहा कि झालसा के नये भवन को लेकर कब तक प्रशासनिक स्वीकृति दी जायेगी. वहीं कोर्ट बिल्डिंग निर्माण के लिए केंद्र सरकार से राशि नहीं मिलने की बात कर खंडपीठ ने केंद्र सरकार के अधिवक्ता को सरकार से इंस्ट्रक्शन लेकर अगली सुनवाई में जानकारी देने का निर्देश दिया. मामले की अगली सुनवाई 26 सितंबर को होगी. इससे पूर्व राज्य सरकार की ओर से शपथ पत्र दायर किया गया. बताया गया कि राज्य के कई जिलों में कोर्ट बिल्डिंग का निर्माण हो रहा है. इसके निर्माण के लिए केंद्र सरकार से विगत तीन-चार वर्षों से राशि नहीं मिल रही है. केंद्र सरकार का अंशदान 60 प्रतिशत व राज्य का अंशदान 40 प्रतिशत है. केंद्र का अंशदान नहीं मिलने से कार्य में आर्थिक कठिनाई आ रही है. झारखंड स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी (झालसा) के धुर्वा में नये भवन के निर्माण के संबंध में बताया गया कि कुछ कटौती के बाद भवन के निर्माण का प्राक्कलन 57 करोड़ से घटकर 53 करोड़ हो गया है. इसके निर्माण को लेकर 53 करोड रुपये की तकनीकी स्वीकृति दी गयी है. प्रशासनिक स्वीकृति अभी नहीं मिली है. प्रशासनिक स्वीकृति मिलने पर सरकार द्वारा उपलब्ध करायी गयी जमीन पर झालसा के नये भवन का निर्माण संभव हो सकेगा. हाइकोर्ट की ओर से अधिवक्ता सुमित गाड़ोदिया ने कहा कि राज्य के सभी सिविल कोर्ट में सुरक्षात्मक दृष्टिकोण से मेटल डिटेक्टर लगाना चाहिए तथा फ्रिस्किंग के बाद ही लोगों को कोर्ट परिसर में प्रवेश मिलना चाहिए. झालसा की ओर से अधिवक्ता अतानु बनर्जी ने पैरवी की. हाइकोर्ट ने राज्य के जिला अदालतों में बुनियादी सुविधाओं की कमी को गंभीरता से लेते हुए स्वत: संज्ञान लिया था.
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