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Binod Bihari Mahto Jayanti: झारखंड के आंबेडकर थे बिनोद बाबू, राजनीति से ज्यादा समाज सुधार की थी चिंता

Binod Bihari Mahto Jayanti: बिनोद बाबू का नारा ही था- पढ़ो और लड़ो. उनके समर्थक उन्हें श्रद्धा से बाबू कहकर पुकारते हैं.

Binod Bihari Mahto Jayanti|धनबाद, संजीव झा : झारखंड आंदोलन के पुरोधा बिनोद बिहारी महतो का जन्म धनबाद जिले के बलियापुर प्रखंड स्थित बड़ादाहा गांव में हुआ था. उन्होंने शिबू सोरेन, एके राय के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) का गठन किया था. झारखंड आंदोलन को धार देने में उनकी बड़ी भूमिका रही. समाज सुधार व शिक्षा को ले कर कई बड़े अभियान चलाये.

बिनोद बाबू का नारा ही था- पढ़ो और लड़ो. उनके समर्थक उन्हें श्रद्धा से बाबू कहकर पुकारते हैं. बिनोद बिहारी महतो 2 बार बिहार विधानसभा के सदस्य तथा एक बार सांसद बने. सांसद रहते ही उनका निधन हो गया था. 23 सितंबर को उनकी 101वीं जयंती है. इस मौके पर प्रभात खबर ने उनके बेटे चंद्रशेखर महतो से बातचीत की.

चंद्रशेखर महतो ने बताया कि जिस टाइपिंग मशीन का उपयोग अलग झारखंड राज्य के आंदोलन के पुरोधा एवं वरिष्ठ अधिवक्ता बिनोद बिहारी महतो महत्वपूर्ण मुकदमों का जवाब दाखिल करने के लिए उपयोग करते थे. उसे आज तीन दशक से भी अधिक समय बीत जाने के बाद भी उनके एकमात्र जीवित पुत्र चंद्रशेखर महतो ने आज भी संजोकर रखा है.

समता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े थे बिनोद बाबू के बेटे चंद्रशेखर

पेशे से अधिवक्ता चंद्रशेखर महतो झारखंड आंदोलन के पुरोधा बिनोद बिहारी महतो के पांच पुत्रों तथा दो पुत्रियों में से एकमात्र जीवित संतान हैं. श्री महतो के अनुसार, उनके पिता अंतिम समय तक उनके साथ ही रहे. पिता के निधन के बाद समता पार्टी से एक बार वर्ष 1995 में टुंडी से विधानसभा चुनाव लड़े.

इसके बाद कुछ कारणों से खुद को राजनीति से अलग कर लिया. वकालत एवं समाज सेवा करना शुरु किया. आज भी घर में बने दफ्तर में पिता एवं मां की बड़ी तस्वीर लगा रखे हैं. कहा कि सुबह प्रति दिन मां-पिता की पूजा-अर्चना कर ही कोई काम करते हैं. दफ्तर में एक टाइप राइटर रखा हुआ है. बताया कि इस टाइप राइटर पर ही उनके पिता बड़े-बड़े मुकदमों का जवाब तैयार कराते थे. वह आज भी इसका उपयोग करते हैं. इसे पिता की धरोहर की तरह रखा है.

शोषण, सामाजिक कुप्रथा के खिलाफ चलाते रहे अभियान

श्री महतो कहते हैं कि उनके पिता बिनोद बिहारी महतो झारखंड के आंबेडकर थे. उनके तरह ही हमेशा शोषण, सामाजिक कुप्रथा के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाते रहे. उनके पिता ने हमेशा सिद्धांत की राजनीति की. चुनाव जीतने के लिए कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किये. ऐसा करते तो बहुत पहले ही विधायक, सांसद बन गये होते. कई चुनावों में पराजय झेलने के बावजूद लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर विश्वास बनाये रखा.

1980 में पहली बार बिहार के विधायक बने बिनोद बिहारी महतो

पहली बार 1980 में अविभाजित बिहार विधानसभा के सदस्य बने. जबकि संसद में पहली बार 1991 में पहुंचे. झारखंड अलग राज्य के आंदोलन को धार दिये. इसके लिए झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन, पूर्व सांसद एके राय सरीखे नेताओं को एक मंच पर लाकर झामुमो का गठन किया था. तीनों दिग्गज अलग-अलग क्षेत्र को संभाल रहे थे. देश के बड़े वाम नेताओं, आंदोलनकारियों से उनका नजदीकी संबंध रहा.

समाज सुधार के लिए खूब काम किया

श्री महतो के अनुसार बिनोद बाबू राजनीति से ज्यादा समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ ज्यादा संघर्ष किये. इसको लेकर चिंतित रहते थे. शिवाजी समाज की स्थापना की थी. शिक्षा को अस्त्र बनाया. इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल, कॉलेज खुलवाते रहे. अपने पैसों से इनका संचालन करते थे.

वकील की टिप्पणी से आहत होकर छोड़ दी सरकारी नौकरी

चंद्रशेखर महतो के अनुसार उनके पिता डीसी कार्यालय में आपूर्ति विभाग में कार्यरत थे. एक दिन किसी वकील ने कुछ ऐसी टिप्पणी कर दी की आहत हो कर बिनोद बाबू ने तत्काल नौकरी से इस्तीफा दे दिया. पटना जा कर एलएलबी किया. उसके बाद वकील के रूप में गरीबों का मुकदमा ज्यादा लड़ते थे. विस्थापितों को जमीन के बदले नौकरी एवं मुआवजा दिलाने की शुरुआत बिनोद बाबू ने ही की थी. इसको कानूनी मान्यता भी दिलायी.

और बिनोद बाबू के साथ राय दा ने ठेली जीप

बिनोद बिहारी महतो ने एक संस्मरण सुनाते हुए बताया कि एक बार किसी आंदोलनात्मक बैठक में अचानक बिनोद बिहारी महतो एवं एके राय को जमशेदपुर जाना था. कोई ड्राइवर नहीं था. तब उन्होंने (चंद्रशेखर महतो) जीप चलाकर दोनों नेता को लेकर धनबाद से जमशेदपुर के लिए निकले. रास्ते में कहा कि जीप में पेट्रोल खत्म होने वाली है. लेकिन, उनके पिता ने कहा कि पहुंच जायेगा जमशेदपुर तक, चलते रहो. कुछ दूर जाने के बाद जीप का पेट्रोल खत्म हो गया. उसके बाद बिनोद बाबू तथा राय दा जीप को ठेल कर पेट्रोल पंप तक ले गये.

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