आरा.
राष्ट्रीय पोषण माह के अवसर पर अंतरराष्ट्रीय संस्थान हार्वेस्ट प्लस बिहार, ओड़िशा एवं कृषि विज्ञान केंद्र भोजपुर के संयुक्त तत्वावधान आंगनबाड़ी, जीविका, एफपीओ के निदेशक मंडल स्वयंसेवी संस्थाएं एवं किसानों के लिए एक संगोष्ठी सह प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉक्टर रवींद्र गिरी, कार्यक्रम प्रबंधक बिहार के साथ ही रोहित रंजन सामुदायिक विकास पदाधिकारी हार्वेस्ट प्लस उपस्थित थे. डॉक्टर द्विवेदी ने अपने विचार रखते हुए बताया कि आज पूरे विश्व में डिजिटल क्रांति चल रही है और सोशल मीडिया के माध्यम से सूचनाओं का निरंतर प्रवाह जारी है. आवश्यकता है कि उन सूचनाओं का अपने कृषि कार्यों में प्रयोग कर कृषि को और बेहतर कैसे बनाया जाये. इस पर एक बार पुनः विचार करना आवश्यक है. वर्तमान समय में पूरे बिहार में दो लाख से ज्यादा किसान पौष्टिकता से युक्त अनाजों एवं अन्य फसलों की खेती कर रहे हैं और इनका बाजार भी धीरे-धीरे विकसित हो रहा है, जिससे किसानों को आनेवाले समय में बेहतर लाभ मिलने की प्रबल संभावना है. कार्यक्रम के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कृषि विज्ञान केंद्र के हेड डॉक्टर द्विवेदी ने जानकारी दी कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य वर्तमान पोषण माह अभियान के संदर्भ में तकनीक एवं फसल प्रणालियों में हो रहे परिवर्तन तथा भोजन में पोषक तत्वों की भूमिका तथा कुपोषण पर सबकी सहभागिता से कार्यक्रम की रूपरेखा तय करना है. डॉ गिरी ने जानकारी दी कि वर्तमान समय में उपलब्ध फसलों में पोषक तत्वों में काफी कमी देखी जा रही है. उत्पादन बढ़ रहा है, परंतु फसलों की गुणवत्ता में सुधार विशेष तौर पर नहीं देखा जा रहा है. इनका अंतरराष्ट्रीय संस्थान पूरे विश्व में विभिन्न देशों में वहां के नीति निर्धारक संस्थाओं के साथ मिलकर खेती के बेहतर प्रबंधन एवं कुपोषण उन्मूलन पर कार्यक्रम कर रहा है. भारत वर्ष में भी भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली, कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केंद्र, जीविका, आइसीडीएस, कृषि विभाग के साथ मिलकर इसी दिशा में कार्य करना प्रारंभ कर चुका है और इसमें हार्वेस्ट प्लस की महत्वपूर्ण भूमिका है तथा इनके समस्त कार्यक्रमों में विविध संस्थाओं के साथ किसानों की सक्रिय सहभागिता रहती है. आज के कार्यक्रम में सभी को भविष्य के कार्य योजना के प्रारूप से अवगत कराया जायेगा. रोहित रंजन ने जानकारी दी कि क्षेत्र में कुपोषण एवं जलवायु में हो रहे परिवर्तन के साथ बदलाव कर किसानों के खाद्य सुरक्षा के साथ ही उनकी आर्थिक उन्नति भी संभव है. कृषि वैज्ञानिक शशि भूषण कुमार शशि ने जानकारी दी कि आज धान व गेहूं के अतिरिक्त मक्का, बाजरा, रागी के नवीन प्रभेद अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के द्वारा विकसित किये जा रहे हैं और भारतवर्ष में भी विभिन्न विश्वविद्यालय एवं शोध संस्थानों के द्वारा इनके ऊपर अनुसंधान किया गया है और नवीन प्रभेदो का विकास हुआ है. इनका जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम से जुड़े गांवों तथा जीविका दीदी के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों में प्रदर्शन भी किया गया. इनका उपयोग करने में एवं उत्पादन में किसी भी प्रकार की चुनौती नहीं है. इनका उपयोग करके आपके शरीर में जिंक आयरन विटामिन ए जैसे आवश्यक भोजन के घटकों का प्रचुर आपूर्ति संभव हो रहा है जो हमारे कुपोषण को कम करने में काफी ज्यादा प्रभावि है. आइसीडीएस की महिला पर्यवेक्षिका आशा ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि आंगनबाड़ी केंद्रों में और अपने निजी घर पर भी सब्जियों के छिलके एवं अन्य अवशेषों को बोरे में बंद कर कुछ दिनों के लिए रख देने पर एक बहुत अच्छी खाद बन जाती है, जिससे स्वच्छता भी बनी रहती है और उर्वरकों की भी बचत होती है तथा उत्पादन की जो गुणवत्ता होती है वह बेहतर हो जाती है. विद्या रानी सिंह ग्राम खेसरिया ने बताया कि वह नियमित रूप से अपने परिवार के कुपोषण को दूर करने के लिए श्रीअन्न की खेती कर रही है और इसके बहुत ही अच्छे परिणाम उन्हें देखने को मिले.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है