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National News : एक देश एक चुनाव : जानिए कब गठित हुई उच्च स्तरीय समिति, कितने दिन में तैयार हुई रिपोर्ट

एक देश एक चुनाव व्यवस्था को अपनाने के लिए बनी उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को मंजूरी मिल गयी है. जानते हैं कब गठित हुई यह समिति, कौन-कौन थे इसमें शामिल...

National News : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल के सौ दिन पूरे होने के बाद मंत्रिमंडल की पहली बैठक हुई, जिसमें कई महत्वपूर्ण निर्णय लिये गये. इनमें से ‘एक देश एक चुनाव’ के लिए बनायी गयी उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को मंजूरी देना भी शामिल है. इसकी सूचना 18 सितंबर को सूचना और प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने दी. सरकार इस विधेयक को संसद के शीतकालीन सत्र में पेश करेगी. विदित हो कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व वाली समिति ने इस वर्ष मार्च में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. जहां भाजपा समेत उसके सहयोगी दलों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है, कहा है कि इससे समय और धन की बचत होगी, वहीं कांग्रेस समेत अनेक दलों का तर्क है कि यह कदम अव्यावहारिक और अनावश्यक है.

बीते वर्ष हुआ था उच्च स्तरीय समिति का गठन

देशभर में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हो सकते हैं या नहीं, इस संभावना को तलाशने के लिए बीते वर्ष सितंबर में केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था. इस समिति के सदस्य के रूप में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ सुभाष कश्यप, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (चीफ विजिलेंस कमिश्नर) संजय कोठारी शामिल थे. इसके अतिरिक्त, विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में कानून राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और डॉ नितेन चंद्रा भी समिति में शामिल थे. इस समिति ने सभी राजनीतिक पार्टियों, न्यायाधीशों, अलग-अलग क्षेत्रों से आने वाले विशेषज्ञों से विचार-विमर्श करने के बाद यह रिपोर्ट तैयार की है. विदित हो कि इसी वर्ष मार्च में समिति ने अपनी यह रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी थी.

191 दिनों में तैयार हुई रिपोर्ट

इस उच्च स्तरीय रिपोर्ट को तैयार करने में 191 दिन का समय लगा है. इसमें 47 राजनीतिक दलों ने अपने-अपने विचार समिति के साथ साझा किये हैं, जिनमें से 32 राजनीतिक दलों ने न केवल ‘एक देश एक चुनाव’ का समर्थन किया है, बल्कि संसाधनों की बचत, सामाजिक तालमेल बनाये रखने और आर्थिक विकास को गति देने के लिए इस विकल्प को अपनाने की पुरजोर वकालत भी की है. इसके साथ ही न्यायपालिका के सेवानिवृत्त उच्च पदाधिकारियों ने भी ‘एक देश एक चुनाव’ के विचार को स्वीकार किया है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि समिति के पास जनता के आये लगभग 21,000 सुझावों में से 80 प्रतिशत से अधिक इस कदम के पक्ष में हैं.

क्या है विरोधियों की दलील

देश के 15 राजनीतिक दलों ने ‘एक देश एक चुनाव’ के विचार का विरोध किया है. विरोधियों की दलील है कि इसे अपनाना संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन होगा. यह अलोकतांत्रिक, संघीय ढांचे के विपरीत, क्षेत्रीय दलों को अलग-अलग करने वाला और राष्ट्रीय दलों का वर्चस्व बढ़ाने वाला साबित होगा. उनका यह भी कहना है कि यह व्यवस्था राष्ट्रपति शासन की ओर ले जायेगी.

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