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बाड़ीहाट दुर्गा मंदिर पर है बंगाल की छाप

इतिहास बहुत ज्यादा पुराना नहीं है पर यह हजारों लोगों की आस्था का केन्द्र

बाड़ी हाट दुर्गा मंदिर पर बांग्ला संस्कृति की छाप है. यहां प्रतिमा का निर्माण यदि बंगाल के मूर्तिकार करते हैं तो पूजा भी बंगाल के पंडित से करायी जाती है. यह अलग बात है कि पूजा की शुरूआत स्थानीय लोगों ने की थी. आज बाड़ीहाट का यह मंदिर शहर के प्रमुख पूजन स्थलों में एक है, जहां पूरे शहर के लोग श्रद्धा एवं आस्था के साथ पूजा-अर्चना करते हैं.

कैसा है मंदिर का इतिहास

इस मंदिर का इतिहास बहुत ज्यादा पुराना नहीं है पर यह हजारों लोगों की आस्था का केन्द्र है. चालीस के दशक में यहां लक्ष्मी पूजा हुई थी, जिसमें बड़ा मेला भी लगाया गया था. यह परंपरा आज भी कायम है. कहते हैं, यहीं से प्रेरणा मिली और 1966 में स्व.लक्ष्मी नारायण सिंह, रामस्वरूप राय, कमलेश्वरी चौधरी आदि ने जगदम्बा महामाया स्थान में दुर्गा पूजा की शुरूआत की. कालांतर में यहां जनसहयोग से मंदिर का निर्माण कराया गया. हालांकि सडक से बिलकुल सटे होने की वजह से यहां वृहत मेले का आयोजन तो नहीं किया जाता फिरभी सडक के किनारे खाने पीने से लेकर खेल खिलौने एवं साज सज्या के सामानों की छोटी छोटी अस्थायी दुकाने जरुर नजर आती हैं.

बंग्ला संस्कृति की छाप

बाड़ीहाट के बुजुर्ग बताते हैं कि शुरूआती दौर में दो वर्ष तक यहां पूर्णिया के स्थानीय पुजारी पूजा करते रहे किन्तु 1968 में मालदा के सिंघाबाद से बंगाल के पंडित को बुलाया गया. उस समय बंगाल के लाखो दा मूर्ति बनाया करते थे बाद के दिनों में खुश्कीबाग तथा अब कभी कभी स्थानीय कलाकारों द्वारा भी प्रतिमा का निर्माण किया जाता है. हालांकि पूजन और प्रतिमा दोनों में बंगाल की झलक मिल जाती है.

अकेली और अनोखी परम्परा

बाड़ीहाट में एक अनोखी परंपरा चलती आ रही है, जो अन्यत्र नहीं दिखती. यह दृश्य विसर्जन के दिन नजर आता है. यहां अमूमन हर घर में कलश स्थापित किया जाता है. विसर्जन के दिन पीत वस्त्र धारण किए महिलाएं माथे पर कलश लेकर घाट तक जाती है. घाट पर एक-दूसरे को सिंदुर लगाती हैं.

बोले कमेटी के लोग

साठ के दशक में वर्तमान स्थान से सटे गली में पूजा की शुरुआत हुई थी. बाद के दिनों में सामने की ओर पूजा स्थल और मंदिर निर्माण का कार्य किया गया जहां सामने कुछ भाग खाली रहने की वजह से टेंट पंडाल बनाकर पूजा का आयोजन किया जाता था. उसके बाद मंदिर को भव्यता प्रदान करते हुए बचे भाग में भी प्रशाल का निर्माण कराया गया. सभी कार्यों में माता के भक्तों का पूर्ण योगदान रहा है.

कन्हैया लाल, अध्यक्ष पूजा समिति

फोटो. 24 पूर्णिया 4हर वर्ष यहां सम्पूर्ण निष्ठा के साथ बंगला पद्धति से मालदा से पुरोहित जयंत झा द्वारा पूजा अर्चणा की जाती है. षष्ठी तिथि से ही प्रसाद वितरण का सिलसिला शुरू हो जाता है. हर दिन अलग अलग भोग लगाए जाते हैं, इनमें खिचड़ी, खीर, पुलाव, बुंदिया, खुरमा, फल वगैरह शामिल होते हैं. इस दफा भी पुरानी परम्पराओं का ख्याल रखते हुए पूर्ण भक्ति भाव से पूजा का आयोजन किया जा रहा है.

गौरव कुमार बबलू, सचिव पूजा समिति

फोटो. 24 पूर्णिया 5

फोटो. 24 पूर्णिया 6- बाड़ीहाट दुर्गा मंदिर

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