जब 2022 में श्रीलंका में राजनीतिक और आर्थिक संकट पैदा हुआ था, तब लोगों का सबसे अधिक रोष दशकों से सत्ता पर काबिज पारंपरिक परिवारों और पार्टियों के विरुद्ध था. उस समय महिंदा राजपक्षे राष्ट्रपति थे और उनकी सरकार के सभी महत्वपूर्ण मंत्रालयों में उनके परिवार के सदस्य ही बैठे हुए थे. सरकार में दो-तिहाई से अधिक पद उनके परिजनों और संबंधियों के पास थे.
जनता के मन में यह बात बैठ चुकी थी कि देश में फैला भ्रष्टाचार इसी कारण है और वे एक बड़ा बदलाव चाहते थे. जन विद्रोह के बाद सत्ता में आये रानिल विक्रमसिंघे लोगों की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे. ऐसे में मुख्य मुकाबला विपक्षी नेता साजिथ प्रेमदासा और अनुरा कुमारा दिसानायके के बीच हुआ तथा दिसानायके अंतत: श्रीलंका के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए. दिसानायके की जीत यह इंगित करती है कि वहां बड़े बदलाव की उम्मीद लोग रखते हैं. नयी सरकार के सामने जो सबसे बड़ी चुनौती है, जो पिछली सरकार के समक्ष भी थे, कि देश की आर्थिक स्थिति में ठोस सुधार हो.
दो साल पहले श्रीलंका की अर्थव्यवस्था लगभग तबाह हो चुकी थी. उस समय अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और भारत समेत अनेक देशों और संस्थानों के सहयोग से स्थिति को संभाला जा सका था. दिसानायके के लिए सबसे बड़ी परीक्षा अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर ही होगी. दूसरी बड़ी चुनौती है कि आम जनता के मन में शासन और संबंधित संस्थाओं में फिर से भरोसा बहाल करना. यह भरोसा राजपक्षे के दौर में पूरी तरह से टूट चुका था, जिसके कारण व्यापक जन विद्रोह हुआ था. हालांकि कुछ समय से पर्यटन के क्षेत्र में उत्साहजनक बढ़ोतरी देखी गयी है, पर इसे मजबूत बनाने की एक प्रमुख जिम्मेदारी नयी सरकार के सामने होगी. पर्यटन श्रीलंका की अर्थव्यवस्था का एक मुख्य आधार है. इस क्षेत्र को विकसित किये बिना आर्थिक परिदृश्य को बेहतर कर पाना संभव नहीं होगा.
तमिल समेत विभिन्न अल्पसंख्यक समुदायों तथा समाज के अन्य हिस्सों के बीच सद्भाव और विश्वास बढ़ाना भी दिसानायके सरकार के लिए एक बड़ा कार्य है. राजपक्षे के कार्यकाल में सामाजिक और सामुदायिक ताने-बाने को भी बड़ा नुकसान हुआ था. उस समय बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले सामने आये थे. श्रीलंका जैसा छोटा देश दशकों तक तरह-तरह की हिंसा का शिकार रहा है. इसकी पुनरावृति न हो, इसका ध्यान नयी सरकार को रखना होगा. ये प्रमुख मुद्दे ही दिसानायके की प्राथमिकताओं में होंगे और इनसे संबंधित कार्यों से ही उनकी सफलता या असफलता का निर्धारण होगा.
पड़ोसी देशों, विशेष रूप से भारत और चीन, के साथ संबंधों को आगे बढ़ाना नयी सरकार की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण आयाम होगा. अनुरा दिसानायके ने अपने भाषणों और साक्षात्कारों में यह रेखांकित किया है कि उनके नेतृत्व में श्रीलंका न तो किसी खेमे का हिस्सा होगा और न ही भू-राजनीतिक रस्साकशी से कोई मतलब रखेगा. उन्होंने स्पष्ट कहा है कि वे चीन और भारत से संतुलित संबंध बनाने का प्रयास करेंगे. दिसानायके के सत्ता में आने को किसी भी तरह से भारत के लिए चिंता के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.
वे एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत चुने गये हैं तथा उनका निर्वाचन उनके देश की आंतरिक स्थिति और राजनीतिक परिस्थिति का परिणाम है. वामपंथी रुझान के दिसानायके को जीत के बाद भारत के शीर्ष नेताओं तथा भारतीय उच्चायोग ने गर्मजोशी के साथ बधाई दी है तथा परस्पर संबंधों में बेहतरी की उम्मीद जतायी है. कहीं से भी ऐसे संकेत नहीं हैं कि भारत उनके साथ गहरा संपर्क नहीं रखना चाहता है या वे भारत से दूरी बनाकर रखना चाहते हैं. अगर आप दक्षिण एशिया को देखें, तो केवल श्रीलंका ही नहीं, बल्कि सभी देश यह मानते हैं कि भारत और चीन दोनों से ही अच्छे संबंध आज के समय में उनकी आवश्यकता है.
श्रीलंका पर चीन का खासा कर्ज है और कई विशेषज्ञ मानते हैं कि वह भी उसकी आर्थिक दुर्दशा का एक कारक रहा है. ऐसे में मुझे नहीं लगता है कि नये नेतृत्व का झुकाव पूरी तरह से केवल चीन की ओर होगा.
उल्लेखनीय है कि जब श्रीलंका में आर्थिक संकट आया था, तब भारत ने सबसे पहले आगे आकर मदद मुहैया करायी थी. तत्काल तेल, अनाज, दवाइयां आदि भेजी गयीं थी तथा मौद्रिक सहयोग भी दिया गया था. इससे श्रीलंका में एक संदेश तो गया है कि भारत एक ऐसा पड़ोसी देश है, जो संकट में तुरंत सहायता पहुंचा सकता है. इस संदर्भ में हमें मालदीव का ध्यान रखना चाहिए, जहां नयी सरकार आने के बाद ऐसा लग रहा था कि दोनों देशों के संबंध बिगड़ जायेंगे, लेकिन बहुत जल्दी ही नकारात्मक पहलुओं को किनारे रखकर निकटता बढ़ाने के प्रयास हुए. मालदीव भी भारत से लगातार संपर्क में है और भारत भी सहायता उपलब्ध करा रहा है.
अगर तमिल मुद्दे को छोड़ दें, तो दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक रूप से कोई गंभीर मसला कभी नहीं रहा है. राजपक्षे के दौर में उनका चीन के प्रति अधिक झुकाव रणनीतिक रूप से भारत के लिए एक असहज स्थिति थी, पर पीछे की बात हो चुकी है. संकट के बाद श्रीलंका को यह अच्छी तरह समझ में आ चुका है कि केवल चीन के भरोसे रहने से फायदा नहीं है और भारत से भी नजदीकी रहना जरूरी है. तो ऐसी कोई खास चिंता की बात नहीं है, जैसा कि हमारी मीडिया में कभी-कभी बताया जाता है.
यह भी महत्वपूर्ण है कि राष्ट्रपति दिसानायके ने हरिणी अमरसुरिया को नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया है. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से पढ़ाई की है और भारत से अच्छी तरह से परिचित हैं. वे श्रीलंका की एक प्रतिष्ठित विद्वान भी हैं. यह भी स्वागतयोग्य है कि एक महिला विद्वान को प्रधानमंत्री बनाया गया है. यह भी उल्लेखनीय है कि अनुरा कुमारा दिसानायके और उनकी पार्टी जनता विमुक्ति पेरामुना भारत के लिए कोई अनजान नहीं है. सरकार और विपक्ष के अनेक दलों से उनका संवाद होता रहा है.
चुनाव अभियान के दौरान उनके नेशनल पीपुल्स पॉवर गठबंधन की तरफ से ऐसी कोई बात भी नहीं कही गयी, जिससे यह अंदेशा हो कि भारत के साथ नयी सरकार के संबंध अच्छे नहीं होंगे. हमें ऐसी कोई सोच भी इस समय नहीं बनानी चाहिए और यह इंतजार करना चाहिए कि उनकी विदेश नीति की दिशा क्या होती है. देशों के आपसी संबंध एक-दो दिन के लिए नहीं होते हैं. मालदीव को लेकर बहुत कुछ कहा गया, लेकिन हम देख रहे हैं कि परस्पर संबंध पहले की तरह ही हैं. हमें उम्मीद रखनी चाहिए.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)